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राहुल गांधी ने अध्यक्ष पद से इस्तीफे की पेशकश की? कांग्रेस ने नकारा
नई दिल्ली : लोकसभा चुनाव 2019 में कांग्रेस को मिली करारी हार के बाद अध्यक्ष राहुल गांधी ने इस्तीफे की पेशकश की है. मिल रही जानकारी के मुताबिक, यूपीए चेयरपर्सन सोनिया गांधी को इस्तीफे की पेशकश की है. लेकिन समाचार एजेंसी ANI के अनुसार कांग्रेस प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने ऐसी खबरों को नकार दिया है उन्होंने कहा कि राहुल ने इस्तीफे कि पेशकश नहीं की है. इससे पहले राहुल ने कांग्रेस मुख्यालय पर आयकर पत्रकार वार्ता की थी.
राहुल गांधी ने कहा कि मैंने चुनाव अभियान में कहा था कि जनता मालिक है. आज जनता ने अपना फैसला दे दिया है. मैं पीएम मोदी को बधाई देता हूं. हमारे जो उम्मीदवार लड़े, उनका धन्यवाद करता हूं. हमारी लड़ाई विचारधारा की लड़ाई है. हमें मानना पड़ेगा कि इस चुनाव में मोदी जीते हैं. उन्होंने कहा कि आज फैसले का दिन है. मैं इस फैसले को कोई रंग नहीं देना चाहता. आज कोई फर्क नहीं पड़ता कि मैं इसके पीछे क्या वजह मानता हूं. फैसला है कि मोदी देश के पीएम होंगे.
इसके अलावा राहुल गांधी ने कहा कि अमेठी में स्मृति ईरानी जीती हैं. मैं चाहूंगा कि स्मृति ईरानी जी बहुत प्यार से अमेठी की देखभाल करें. उन्हें जीत के लिए बधाई. राहुल गांधी ने हार मान ली लेकिन अभी निर्वाचन आयोग ने अमेठी के रिजल्ट की घोषणा नहीं की है.
अमेठी सीट का इतिहास
आजादी के बार पहली बार लोकसभा चुनाव हुए तो अमेठी संसदीय सीट वजूद में ही नहीं थी. पहले ये इलाका सुल्तानपुर दक्षिण लोकसभा सीट में आता था और यहां से कांग्रेस के बालकृष्ण विश्वनाथ केशकर जीते थे. इसके बाद 1957 में मुसाफिरखाना सीट अस्तित्व में आई, जो फिलहाल अमेठी जिले की तहसील है. केशकर यहां से जीतने में भी सफल रहे. 1962 के लोकसभा चुनाव में राजा रणंजय सिंह कांग्रेस के टिकट पर सांसद बने. रणंजय सिंह वर्तमान राज्यसभा सांसद संजय सिंह के पिता थे.
अमेठी लोकसभा सीट 1967 में परिसीमन के बाद वजूद में आई. अमेठी से पहली बार कांग्रेस के विद्याधर वाजपेयी सासंद बने. इसके 1971 में भी उन्होंने जीत हासिल की, लेकिन 1977 में कांग्रेस ने संजय सिंह को प्रत्याशी बनाया, लेकिन वह जीत नहीं सके. इसके बाद 1980 में इंदिरा गांधी के बेटे संजय गांधी चुनावी मैदान में उतरे और इस तरह से इस सीट को गांधी परिवार की सीट में तब्दील कर दिया. हालांकि 1980 में ही उनका विमान दुर्घटना में निधन हो गया. इसके बाद 1981 में हुए उपचुनाव में इंदिरा गांधी के बड़े बेटे राजीव गांधी अमेठी से सांसद चुने गए.
साल 1984 में इंदिरा गांधी की हत्या के बाद हुए चुनाव में राजीव गांधी एक बार फिर उतरे तो उनके सामने संजय गांधी की पत्नी मेनका गांधी निर्दलीय चुनाव लड़ीं, लेकिन उन्हें महज 50 हजार ही वोट मिल सके. जबकि राजीव गांधी 3 लाख वोटों से जीते. इसके बाद राजीव गांधी ने 1989 और 1991 में चुनाव जीते. लेकिन 1991 के नतीजे आने से पहले उनकी हत्या कर दी गई, जिसके बाद कांग्रेस के कैप्टन सतीश शर्मा चुनाव लड़े और जीतकर लोकसभा पहुंचे. इसके बाद 1996 में शर्मा ने जीत हासिल की, लेकिन 1998 में बीजेपी के संजय सिंह हाथों हार गए.
सोनिया गांधी ने राजनीति में कदम रखा तो उन्होंने 1999 में अमेठी को अपनी कर्मभूमि बनाया. वह इस सीट से जीतकर पहली बार सांसद चुनी गईं, लेकिन 2004 के चुनाव में उन्होंने अपने बेटे राहुल गांधी के लिए ये सीट छोड़ दी. इसके बाद से राहुल ने लगातार तीन बार यहां से जीत हासिल की.