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2013 में इन्हीं पांच राज्यों चुनाव से चला बीजेपी का विजय रथ रुकने का नाम नहीं ले रहा था. जो एक ही झटके में पानी के बुलबुले की तरह फूट गया. जिसमें बीजेपी के चाणक्य की हैसियत बना चुके अमित शाह अब तक इस सदमें से बाहर भीं निकल पा रहे है. सभी साम दाम दंड भेद अपनाने के बाद पांच प्रदेशों में से चार में करारी हार तो एक प्रदेश में सत्ता से दूर रह गये.
यह पहला मौका है जब एक साथ इतने प्रदेशों में चुनाव होने पर बीजेपी का कोई सीएम शपथ ग्रहण नहीं करेगा. यह बीजेपी के लिए बहुत बड़ा सदमा है. यह बड़ा झटका इसलिए भी है क्योंकि लोकसभा चुनाव सर पर तैयार खड़ा है. और कांग्रेस अपना हमलावर रुख अख्तियार किये हुए है. राफेल मुद्दे पर सुप्रीमकोर्ट का साथ मिलने पर भी एक बार फिर से बैकफुट पर आती नजर आ रही है. उसमें अंग्रेजी के शब्दों के हेरफेर में पढ़कर फिर एक बार बनती हुई बात बिगडती नजर आरही है. बीजेपी के लिए यह मुद्दा कांग्रेस का बोफोर्स सौदा बनता नजर आ रहा है.
दुसरे यह चुनाव बीजेपी के अंदर आरएसएस और सभी सहयोगी संगठनों में भी नाराजगी बनाये हुए है. सूत्रों के अनुसार आरएसएस तो अमित शाह को बीजेपी अध्यक्ष के पद पर कभी पसंद नहीं करता है. जबकि बीजेपी के अंदर भी एक ग्रुप इसकी खुली मुखालफत करता नजर आ रहा है. अगर कांग्रेस पर परिवारवाद का आरोप लग रहा था तो अब बीजेपी पर गुजरात वाद का आरोप भी लगने वाला है. कुछ लोग इस हार बीजेपी के नेताओं के अहंकार से भी जोड़कर देख रहे है. जिनका हर बात पर बडबोला पन भी है.
इस मौके पर कल यानी सोमवार को शपथ ग्रहण के दौरान पहली बार शांति से बैठना होगा. कोई नेता किसी शपथ ग्रहण कार्यक्रम में भाग नहीं लेगा. लेकिन इस चुनाव ने बीजेपी की चूलें हिला दी है तो भाजपा के कांग्रेस मुक्त भारत नारे का खात्मा भी कर दिया. अब कांग्रेस को पूरी तरह से संजीवनी तो मिल गई है लेकिन यह असर कब रहेगा यह अभी गर्त में छिपा हुआ है. अब कांग्रेस के साथ सभी विपक्षी चलने को तैयार है.