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#BREAKINGNEWS : SupremeCourt का आदेश- J&K में Internet को अनिश्चिकाल के लिए बंद नहीं किया जा सकता

Shiv Kumar Mishra
10 Jan 2020 5:32 AM GMT
#BREAKINGNEWS : SupremeCourt का आदेश- J&K में Internet को अनिश्चिकाल के लिए बंद नहीं किया जा सकता
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सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि इंटरनेट लोगों का मौलिक अधिकार है. जम्मू-कश्मीर में इंटरनेट पर लगी पाबंदी को हटाने के लिए सरकार स्थिति की समीक्षा तत्काल करे.

नई दिल्ली: जम्मू-कश्मीर (Jammu Kashmir) में अनुच्छेद 370 (Article 370) हटाने के बाद लगाई गई पाबंदियों के खिलाफ दायर याचिकाओं पर फैसला सुनाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि 'जम्‍मू कश्‍मीर में पाबंदियों के आदेश की समीक्षा के लिए कमेटी बनेगी. यह कमेटी समय-समय पर पाबंदी की समीक्षा करेगी. सरकार पाबंदियों पर आदेश जारी करके इनकी जानकारी दे'.

इंटरनेट लोगों का मौलिक अधिकार- SC

सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि इंटरनेट लोगों का मौलिक अधिकार है. J&K में इंटरनेट अनिश्चितकाल के लिए बंद नहीं किया जा सकता. जम्मू-कश्मीर में इंटरनेट पर लगी पाबंदी को हटाने के लिए सरकार स्थिति की समीक्षा तत्काल करे. इंटरनेट का अस्थायी निलंबन, नागरिकों की बुनियादी स्वतंत्रता में मनमानी नहीं होनी चाहिए, न्यायिक समीक्षा के लिए खुलापन होना चाहिए. जम्‍मू कश्‍मीर में इंटरनेट निलंबन की तत्‍काल समीक्षा की जानी चाहिए.

जम्‍मू कश्‍मीर ने बहुत हिंसा देखी है- सुप्रीम कोर्ट

जस्टिस एनवी रमना की अध्यक्षता वाली पीठ ने यह फैसला सुनाया. सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि लोगों के अधिकारों को सुरक्षित करना होगा. आजादी और सुरक्षा में संतुलन जरूरी है. राजनीति में दखल देना हमारा काम नहीं है. जम्‍मू कश्‍मीर ने बहुत हिंसा देखी है.

दरअसल, पिछले साल नवंबर में सुप्रीम कोर्ट ने सभी पक्षों को सुनने के बाद अपना फैसला सुरक्षित रखा लिया था. आपको बता दें कि कांग्रेस नेता और जम्मू कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री गुलाम नबी आजाद और कश्मीर टाइम्स की संपादक अनुराधा भसीन सहित कई लोगों ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर लगाई गई पाबंदियों को चुनौती दी थी.

70 लाख लोगों को इस तरह बंद करके नहीं रखा जा सकता- सिब्‍बल

सुनवाई के दौरान गुलाम नबी आजाद की ओर से पेश वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने नियंत्रण का विरोध करते हुए कहा था कि वह ये समझते हैं कि वहां राष्ट्रीय सुरक्षा का मसला है, लेकिन 70 लाख लोगों को इस तरह बंद करके नहीं रखा जा सकता. यह जीवन के अधिकार का उल्लंघन है. राष्ट्रीय सुरक्षा और जीवन के अधिकार के बीच संतुलन होना चाहिए.कश्मीर टाइम्स की संपादक अनुराधा भसीन की ओर से पेश वकील वृन्दा ग्रोवर ने कहा था कि जम्मू-कश्मीर में जारी पाबंदियां असंवैधानिक हैं.ऐसे मामलों में संतुलन का ध्यान रखा जाना चाहिए.

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