राष्ट्रीय

परिणाम से पहले की बौखलाहट सामने आई, चुनाव आयोग में हुए दो फाड़, लिखी एक आयुक्त ने लिखी चिठ्ठी

Special Coverage News
19 May 2019 3:07 AM GMT
परिणाम से पहले की बौखलाहट सामने आई, चुनाव आयोग में हुए दो फाड़, लिखी एक आयुक्त ने लिखी चिठ्ठी
x
Election Commissioner Ashok Lavasa

चुनाव आयोग अंदर ही अंदर दो टुकड़ों में बँट चुका है। चुनाव आयुक्त अशोक लवासा ने मुख्य चुनाव आयुक्त सुनील अरोड़ा को चिट्ठी लिख कर इस बात पर असंतोष जताया है कि आचार संहिता के उल्लंघन के मामलों पर विचार करने वाली बैठकों में उनकी असहमतियों को दर्ज नहीं किया जाता है। लवासा ने कहा है कि 'अल्पसंख्यक विचार' या 'असहमित' को दर्ज नहीं किए जाने की वजह से वह इन बैठकों से ख़ुद को दूर रखने पर मजबूर हैं।


चुनाव आचार संहिता के उल्लंघन के मामलों पर विचार करने के लिए अंतिम बैठक 3 मई को हुई थी, जिसमें बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर लगे आरोपों की जाँच की गई थी। दोनों को 'क्लीन चिट' दी गई थी।


उस बैठक की इसलिए भी चर्चा हुई थी कि उसमें मोदी के ख़िलाफ़ दो शिकायतें की गई थीं। एक में कहा गया था कि मोदी ने कहा था कि जो समुदाय पूरे देश में अल्पसंख्यक है लेकिन वायनाड में बहुसंख्यक है, राहुल गाँधी उस क्षेत्र से चुनाव लड़ रहे हैं। दूसरी शिकायत में कहा गया था कि मोदी ने पहली बार वोट डालने वालों से कहा था कि बालाकोट में हमला करने वालों और पुलवामा में शहीद होने वालों के लिए उनका वोट समर्पित होगा या नहीं। इन दोनों ही मामलों में मोदी को क्लीन चिट दी गई थी।

लेकिन इन फ़ैसलों की काफ़ी आलोचना हुई थी। यह बात भी खूबी फैली थी कि मोदी और शाह को 'क्लीन चिट' चुनाव आयुक्तों की आम सहमति से नहीं दी गई थी। इसमें यह साफ़ कहा गया था कि एक चुनाव आयुक्त की आपत्तियों को दरकिनार करते हुए मोदी और शाह को 'क्लीन चिट' दी गई थी।

अंग्रेज़ी अख़बार हिन्दुस्तान टाइम्स की ख़बर के मुताबिक़, लवासा ने इसके बाद ही चिट्ठी लिखी थी और सवाल उठाया था कि आचार संहिता के उल्लंघन के मामले में उनकी असहमित को क्यों नहीं शामिल किया गया। समझा जाता है कि लवासा चाहते थे कि मोदी को चिट्ठी लिख कर उनका जवाब माँगा जाए और उसके बाद ही कोई फ़ैसला लिया जाए। पर उनकी सलाह को दरकिनार कर सीधे फ़ैसला ले लिया गया और मोदी को निर्दोष क़रार दिया गया।

अंग्रेज़ी अख़बार 'द ट्रिब्यून' की ख़बर के मुताबिक़, लवासा ने इसके बाद मुख्य चुनाव आयुक्त अरोड़ा से मिलने का व़क्त माँगा था। यह पता नहीं चल सका कि दोनों की बैठक हुई या नहीं। लेकिन अरोड़ा ने अख़बार से यह ज़रूर कहा था कि वे अस्वस्थ हैं, ऑफ़िस नहीं जा रहे हैं, लिहाज़ा, उन्हें वह चिट्ठी नहीं मिली है।

चुनाव आयोग ने कहा था कि मोदी के मामले में दिया गया फ़ैसला अर्द्ध-न्यायिक फ़ैसला नहीं था, इसलिए उस फ़ैसले में असहमति को शामिल नहीं किया गया। लेकिन कुछ जानकारों की राय है कि आचार संहिता उल्लंघन के मामले में असहमति को शामिल किया जाना चाहिए।

मुख्य चुनाव आयुक्त सुनील अरोड़ा ने इस पर प्रतिक्रिया जताते हुए कहा है कि ये बातें ऐसे समय की जा रही हैं जब सातवें और अंतिम चरण का मतदान होने को है और तमाम मुख्य चुनाव अधिकारी इसमें लगे हुए हैं। उन्होंने एक बयान जारी कर विस्तार से अपनी बात कही और बग़ैर लवासा का नाम लिए उनकी आलोचना की है।

"

सारे चुनाव आयुक्त एक तरह नहीं होते हैं, वे एक दूसरे के क्लोन नहीं होते न ही एक टेमप्लेट पर काम करते हैं। अलग-अलग मत हो सकते हैं, होते हैं और होने भी चाहिए। लेकिन ये बातें चुनाव आयुक्त के अंदर ही रहती हैं।

सुनील अरोड़ा, मुख्य चुनाव आयुक्त

सवाल उठता है कि क्या इस तरह किसी चुनाव आयुक्त को दरकिनार किया जा सकता है? सवाल यह भी उठता है कि मुख्य चुनाव आयुक्त और दूसरे आयुक्तों के क्या रिश्ते हों? चुनाव आयोग अधिनियम, 1991, के अनुसार सभी चुनाव आयुक्त बराबर होते हैं। यदि किसी मुद्दे पर चुनाव आयुक्त की राय से दूसरे आयुक्त इत्तिफ़ाक नहीं रखते तो बहुमत के आधार पर फ़ैसला लेने का प्रावधान है।

यह मुद्दा दिलचस्प इसलिए है कि चुनाव आयोग इस बार काफ़ी विवादों में रहा है। इसकी निष्पक्षता पर एक नहीं कई बार सवाल उठे हैं। लोकसभा चुनाव के पहले पाँच राज्यों में हुए विधानसभा चुनावों की तारीख का एलान करने के लिए प्रेस कॉन्फ़्रेंस का समय बदला गया था तो यह कहा गया था कि नरेंद्र मोदी की मदद करने के लिए ऐसा किया गया था। इसकी वजह यह थी कि मोदी को कुछ घोषणाएँ करनी थीं, चुनाव आचार संहिता लागू होने से वह ऐसा नहीं कर सकते थे और प्रेस कॉन्फ्रेंस शुरू होते ही आचार संहिता लागू हो जाती।

उस समय से लेकर अब तक कई बार आयोग की निष्पक्षता पर सवाल उठे हैं। चुनाव ख़त्म होने तक आरोप का सिलसिला बना रहा। अंतिम चरण के मतदान के पहले जब आयोग ने पश्चिम बंगाल का प्रचार समय से पहले ख़त्म करने का आदेश देते हुए कहा कि रात के 10 बजे प्रचार रोक दिया जाए, तो एक बार फिर उस पर अंगुली उठी थी। यह कहा गया था कि उस दिन नरेंद्र मोदी को दो रैलियों में भाग लेना था, इसलिए आयोग ने रात के 10 बजे तक का समय दिया, ताकि वह ये रैलियाँ कर सकें। यह आरोप बार-बार लगाया गया है कि मोदी सरकार में तमाम संस्थानों को कमज़ोर कर दिया गया है। चुनाव आयोग इसकी ताज़ा मिसाल है।

Tags
Special Coverage News

Special Coverage News

    Next Story