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मनीष सिंह
अल्पसंख्यकों के विरुद्ध सायास या अनायास जहर उगलने वाले, या जहर उगलने को चुपचाप सपोर्ट करने वाले विभूतियों में एक चीज जरूर कॉमन होती है। उनका एक दोस्त या अनुयायी मुस्लिम होता है। नही तो ड्राइवर, कर्मचारी, या कोई और छोटा मोटा काम करने वाला एक मुस्लिम जरूर पाया जाएगा।
नही तो किसी मुस्लिम परिवार की मदद, बच्चे को पढ़ाना या किसी और प्रकार की मदद अवश्य करते है। निजी बातचीत में अपनी उच्चता को प्रदर्शित करने वाला रिफरेंस का ऐसा पॉइंट अवश्य उठेगा। साबित करने के लिए की उनका दिल तो यूँ साफ है। उन्हें अब्दुल या अतहर से कोई समस्या नही। वो भला हिंदुस्तानी है, तथैव मेरा दिल उंसके लिए धड़कता है।
लेकिन..!!
बाकी, ये समाज दुष्ट है। इतिहास देखो। देखो पाकिस्तान, देखो इस्लामिक देश, देखो फलां स्टेट, फलां शहर में क्या हुआ, फलां अखबार में ये खबर आई, फलां न्यूज ने ये बताया। व्हाट्सप पर आए कंटेंट तो फिर लाजवाब हैं ही। सारे वाचन के बाद, उपसंहार ये कि सारा समाज अगर उस उदाहरणस्वरूप मुस्लिम परिवार की तरह अवलंबित, अहसानमंद, मित्रवत रहे तो जान हाजिर है।
कोई समाज किसी दूसरे समाज के तले कैसे रह सकता है। क्या ये करोड़ो लोगों को कांस्टेन्ट थ्रेट में रखने की अभिलाषा नही है। फिर तमाम धमक के बाद आप मित्रवत व्यवहार की आशा रखते हैं, क्या सम्भव है?? यदि है, तो इसे ही दबाकर रखना कहते हैं। दरअसल यही आपकी अभिलाषा है।
और यही हिन्दू राष्ट्र की सरलतम कल्पना है।