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उम्मीदों का बोझ लिए मंदिर मंदिर घूमते राहुल क्या बन पायेंगे गेम चेंजर?

Special Coverage News
31 Oct 2018 6:23 AM GMT
उम्मीदों का बोझ लिए मंदिर मंदिर घूमते राहुल क्या बन पायेंगे गेम चेंजर?
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शकील अख्तर

क्रिकेट की भाषा में कहते हैं कि क्लास बैट्समेन हमेशा बड़े मुकाबले से पहले फार्म में आते हैं। कांग्रेसियों को फिलहाल यहीं लग रहा है। अपने अध्यक्ष राहुल गांधी की सक्रयिता देखकर उन्हें लग रहा है कि पहले पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव और फिर लोकसभा चुनाव में राहुल गेम चेंजर साबित होंगे। राहुल को भी अपने कार्यकर्ताओं की बड़ी हुई उम्मीदों का अहसास है। और कांग्रेस की इन बड़ी हुई आशा और अपेक्षाओं की बोझ लिए राहुल इन दिनों वाकई सड़कों पर विरोध प्रदर्शन से लेकर गिरफ्तारी तक और पीताम्बरा पीठ से लेकर महाकाल मंदिर तक कोई कोना अछूता नहीं छोड़ रहे।

उन्हें काफी हद तक सफलता भी मिल रही है। पहले जहां उनकी मुख्य प्रतिद्वंद्वी पार्टी भाजपा उनका उपहास उड़ाने में लगी थी और उन्हें नजरअंदाज करने की रणनीति पर चल रही रही थी वहीं अब वह उनसे हर मुद्दे पर इस तरह सवाल पूछने लगी है जैसे राहुल सत्ता में हों और वह विपक्ष में। उन्हें सबसे ज्यादा तकलीफ राहुल के मंदिर- मंदिर जाने में है। कभी वह राहुल से उनका धर्म पूछती है तो कभी गौत्र। भारत की राजनीति में यह पहली बार हो रहा है कि किसी राष्ट्रीय पार्टी के अध्यक्ष से उनका धर्म, जाति और गौत्र पूछा जा रहा हो।

राजनीतिक पर्यवेक्षकों का मानना है कि इससे राहुल को फायदा ही हो रहा है। उन्हें इस बहाने जो प्रचार मिल रहा है उससे उनके कद में इजाफा होता है। अभी तक भाजपा से यह सवाल पूछा जाता था कि 2019 में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के सामने कौन है? खुद विभाजित विपक्ष भी किसी एक नेता के नाम पर सहमत नहीं दिख रहा था। लेकिन अब भाजपा के साथ विपक्षी दल भी राहुल को गंभीरता से लेने लगे हैं। खासतौर से राहुल ने राफेल लड़ाकू विमान मामले को जिस तरह उठाया और उस पर दिल्ली के लोदी कालोनी थाने में गिरफ्तारी दी उससे राजनीतिक क्षेत्रों में सीधा मैसेज गया कि राहुल न केवल राजनीतिक तौर पर परिपक्व हो रहे हैं बल्कि सड़कों पर संघर्ष के लिए भी तैयार हैं।

दूसरी बात जिससे कांग्रेसी कार्यकर्ताओं का मनोबल बड़ा है वह है राहुल द्वारा भाजपा की हिन्दुत्ववादी राजनीति के मुकाबले सुरक्षात्मक होने के बदले उनसे से भी बढ़कर मंदिरों में जाकर विधि विधान से पूजा पाठ करके खुद को आस्थावान या जैसा कि काग्रेंस की कोर कमेटी के मेम्बर और मीडिया विभाग के चेयरमेन रणदीप सिंह सुरजेवाला ने कहा था " जनेऊधारी हिन्दु " बताने से कोई गुरेज नहीं करना।

हमारे यहां यह बहस हमेशा से रही है कि धार्मिक होने का क्या मतलब है? या आपका धर्म किसी और की भावनाओं को तो ठेस नहीं पहुंचा रहा? कांग्रेस का कहना है कि राहुल अपनी नीजि आस्था के साथ जहां भी जाते हैं उससे किसी और धर्मावलंबी की भावनाओं के ठेस पहुंचने का सवाल ही नहीं है। और यह बात काफी हद तक सही भी है। राहुल के मंदिर जाने पर किसी मुसलमान, ईसाई, सिख या अन्य धर्मावलंबी कोई शिकायत नहीं है। और न ही किसी ने कहा कि राहुल अन्य धर्मस्थलों पर क्यों नहीं जाते हैं।

देश में इस बात को सब समझ रहे हैं कि पिछले तीस साल की मंडल और कंमडल की राजनीति ने देश में बहुत जहर घोल दिया है। असहिष्णुता इस कदर बढ़ गई है कि धर्म और जाति से होते हुए यह विभाजन प्रान्तवाद, भाषा और स्त्री पुरुष के बंटवारे तक पहुंच गया है। और इसका कारण किसी पार्टी या नेता की अपनी आस्था और विश्वास नहीं बल्कि दूसरों की आस्था पर सवाल उठाने की राजनीति है। राहुल जब तक किसी दूसरे के विश्वासों को ठेस नहीं पहुंचा रहे है उनके मंदिर जाने या गुरुद्वारे जाने से किसी को कोई तकलीफ नहीं है।

विभाजन की राजनीति देश में इतनी तीखी कभी नहीं थी। यह विभाजन और नफरत देश को खाईयों में किस तरह बांट चुका है इसका नजारा देश ने उस समय देखा जब गुजरात से हिन्दी भाषियों को मार- मार कर निकाला गया। उत्तर प्रदेश, बिहार मध्य प्रदेश , राजस्थान के वे लोग जो बरसों से गुजरात में काम कर रहे थे इस लिए भगाए गए क्योंकि बिहार के एक व्यक्ति पर छोटी बच्ची के साथ बलात्कार का आरोप लगा था। बलात्कार जैसे जघन्य अपराध में कड़ी से कड़ी सजा मिलना चाहिए मगर एक साथ कई राज्यों के हजारों व्यक्तियों को इसके लिए भीड़ द्वारा सजा देना देश के कानून व्यवस्था का तो उपहास उड़ाना है ही साथ ही भाषा, प्रान्त और संस्कृति के आधार पर लोगों में भय और अविश्वास का बढ़ावा देना है। देश में अगर लोगों का विश्वास कानून और सिस्टम से उठ जाएगा तो वह किसी भी सरकार और समाज लिए सबसे खतरनाक बात होगी।

अभी तीन हिन्दी प्रदेशों में चुनाव हो रहे हैं। इसमें कई जगह दलित और सवर्ण विभाजन बहुत तीखा होकर उभर रहा है। खासतौर से मध्य प्रदेश में जहां बाकायदा सवर्णों का संगठन सपाक्स और दलितों का संगठन जयास चुनाव लड़ने की तैयारी में है। सरकारी दफ्तरों में जहां आमतौर पर कामकाजी संबंध जातियों के आधार पर नहीं होते थे वहां इन दिनों सारे रिश्ते जातियों पर निर्भर हो गए हैं। चर्चाओं के विषय, जातियों तक सिमट गए हैं।

यह बहुत ही खतरनाक स्थिति है। भारत जैसे गौरवशाली अतीत वाले देश ने बहुत उतार चढ़ाव देखे हैं। मगर जैसा कि कांग्रेस महासचिव अशोक गहलोत ने कहा कि पिछले कुछ सालों में जो नफरत, विभाजन और हिंसा का विषाक्त वातावऱण बनाया जा रहा है वह पहले कभी नहीं देखा गया।

ऐसे संक्रमण काल में राहुल का यह कहना कांग्रेसियों के ही नहीं देश के आम आदमी के मन में भी विश्वास और भरोसा जगाता है कि हम प्रेम से नफरत करने वालों को जीतेंगे। विभाजन से देश मजबूत नहीं होगा जोड़ने से ही लोंगों में भरोसा बढ़ेगा।

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