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शर्म के चार साल, जरुर पढ़ें होश उड़ा देने वाला खुलासा

शर्म के चार साल, जरुर पढ़ें होश उड़ा देने वाला खुलासा
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नया इंडिया' के संपादक हरिशंकर व्यास जी की छवि हिन्दूत्व पत्रकार की है। उन्होंने आज प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चार साल के कार्यकाल को शर्मनाक बताया है।
हरि शंकर व्यास

इसलिए कि इन चार सालों में दुनिया ने जाना, समझा, देखा कि हिंदुओं को राज करना नहीं आता! मेरे इस निष्कर्ष से कोई सहमत हो या न हो लेकिन चार साल की जो दास्तां है उससे क्या दुनिया ने यह नहीं जाना कि भारत का प्रधानमंत्री, हिंदूओं का पृथ्वीराज चौहान गधों से प्रेरणा लेता है! वह हार्वड मतलब ज्ञान का सम्मान करने के बजाय हार्ड वर्क की डुगडुगी बजा कर पकौड़ा बेचने को रोजगार सृजन बताता है। जिसका अर्थशास्त्र नोटबंदी है, बैंकों का लगातार दिवालिया होना है। जिसके राज ने सवा सौ करोड़ नागरिकों पर यह चाबुक चलाया कि तुम सब चोर हो, टैक्स नहीं देते हो इसलिए तुम लोग पहले लेन-देन का व्यवहार सुधारो। कैसलेश बनो! इधर चाबुक, उधर इनकम टैक्स, सरकारी एजेंसियों के नोटिसों का वह सिलसिला जिसने उद्यमशीलता, काम की इच्छा और जोश सबको सोख डाला है।
सोचें, एक फुदकती, दौड़ती आर्थिकी के खून को सोख कर उसे डायलिसिस पर ला डालने का जो अर्थशास्त्र नरेंद्र मोदी-अरूण जेतली ने पिछले चार सालों में दिखलाया है वैसा दुनिया के किसी देश में क्या पहले कहीं देखने को मिला और यदि नहीं तो इससे क्या दुनिया में मैसेज नहीं बना होगा कि हिंदुओं को राज करना नहीं आता!
तभी मैं नोटबंदी की घोषणा और उसके असर को समझते हुए यह थीसिस लिए हुए हूं कि इससे बड़ा हिंदूओं से दूसरा कोई विश्वासघात नहीं हो सकता कि आए थे हिंदूओं का मान बढ़ाने मगर उलटे आपने उन्हे चोर करार दिया। आए थे मुसलमानों को ठीक करने और ठोक दे रहे हंै हिंदू व्यापारियों को! आए थे हिंदूओं को एकजुट बनाने के लिए और करोड़ो-करोड़ हिंदूओं को टीवी चैनलों से जयचंद, राष्ट्रद्रोही करार करवा दे रहे हैं। आए थे पाकिस्तान को ठीक करने और चीन को औकात दिखलाने के लिए लेकिन बिना गैरत के लाहौर जा कर नवाज शरीफ के यहां पकौड़े खा लिए तो चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के साथ झूला झुले!
क्या तो अर्थ नीति, क्या सुरक्षा नीति, क्या विदेश नीति और क्या समाज नीति और क्या धर्म नीति और क्या शासन नीति!
हां, है कोई बात जिससे झलका हो कि 90 साल से जिस संघ ने हिंदू वैकल्पिक राजनैतिक ख्याल में अपने प्रचारक तैयार किए, विचार बनाए और नेहरू के आईडिया ऑफ इंडिया के विकल्प में हिंदुओं ने मोदी के आईडिया ऑफ इंडिया को 2014 में जो अभूतपूर्व जनादेश दिया तो उसके बाद देश के चाल, चेहरे, चरित्र में बुनियादी परिवर्तन का कोई काम हुआ है! जो मौलिक हो, कांग्रेस से चुराया हुआ नहीं हो?
एक काम, एक बात कोई बताए जो देश की बुनियादी तासीर के सत्व-तत्व को बदलने वाली हो। वही नौकरशाही वाला ढर्रा, नौकरशाही की फाइलों में बनती योजनाओं, उससे बनते फर्जी-झूठे आंकड़े और जनता रामभरोसे! आंकडों, योजनाओं की फेहरिस्त, जुमलों को ले कर नरेंद्र मोदी, अमित शाह के रट्टे में कुछ भी मौलिक, नया नहीं है। पंडित नेहरू की विशाल पंचवर्षीय योजनाओं से ले कर अटलबिहारी वाजपेयी के शाईनिंग इंडिया आज के वक्त से ज्यादा जनता की फील लिए हुए आंकड़े बने थे।
और नोट करें, तब किसी ने यह नहीं सुना कि पकौड़े बेचो, पान की दुकान खोलो तो देश बनेगा या यह कि प्रधानमंत्री और उनके मंत्री अपनी कर्मवीरता इन बातों से साबित करेंगे कि वे कितने घंटे काम करते हैं या कितने पुश अप, दंड-बैठक लगाते हैं।
सचमुच शर्म के इन चार सालों में वह सब है जो हम हिंदूओं को बुद्वीविहीनता, कर्महीनता में कनवर्ट कर दे रहा है। 2014 में मुझे उम्मीद थी कि हिंदूओं के बुद्वी युग, कर्म युग और साहस युग में प्रवेश का वक्त आया! मगर सोचंे, इन चार सालों में क्या हुआ? मानों नरेंद्र मोदी के राज के साथ सरस्वती, लक्ष्मी, दुर्गा सभी का हम हिंदुओं को श्राप लगा जो भारत से, भारत के विचार-बहस और नेरैटिव से बुद्वी विलुप्त हुई पड़ी है और उसकी जगह संकल्प है हिंदुओं को मूर्ख बनाने का। उन्हे भक्त बनाने का, उन्हे डराने का। तभी आज जो बुद्वी, विचार, सोच के संस्कार लिए हुए है उनका न पढ़ने का मन होता है, न टीवी चैनल देखने का होता है और न बहस में हिस्सा लेने का।
भारत में आज बुद्वी रूठ गई है। सरस्वती का श्राप ऐसा लगा है कि जिन नरेंद्र मोदी की जुबां चार साल पहले भरोसे, विश्वास, कर्म के तर्क लिए हुए थी वह अब काली हुई, चिल्लाती हुई, बेसुरी, बेतरतीब घटिया जुमलों को उगलती लगती है तो उनके साथ उनके भक्तों की सोशल मीडिया पर दशा सिर्फ रूदाली और गालियों वाली हो गई है। देवी सरस्वती रूठ गई हंै इसलिए हिंदू आज सरस्वती, बुद्वी का पुजारी नहीं मूर्खताओं में जी रहा तो लक्ष्मीजी का रूठना भी नोटबंदी की बुद्वीहीनता के चलते जैसे जो हुआ इसे बूझना मुश्किल नहीं है। साहस युग याकि देवी दुर्गा के रूठने, उनके श्राप की हकीकत यह है कि इन चार सालों में प्रमाणित हुआ है कि दुनिया के सर्वाधिक कायर, गुलाम, डरपोक जीव यदि कोई है तो वह हिंदू है।
हां, यह शर्म का सबसे बड़ा बिंदु है कि नरेंद्र मोदी-अमित शाह नाम के दो लोगों ने अपनी सत्ता भूख में ऐसा आंतक बना डाला कि संघ हो, उसके संगठन हो, भाजपा के नेता हो सब साष्टांग लेटे हुए है। मैं पहले भी इस बात को लिख चुका हूं कि सत्ता से हिंदू कितना डरता है। हिंदू की हजार साल की गुलामी ने उसके ऐसे डीएनए बना डाले है कि उसमें देवी दुर्गा की निडरता का आर्शीवाद फल ही नहीं सकता। कितने कायर है हम हिंदू यह पिछले चार सालों में न केवल मीडिया, उद्योगपतियों, अफसरों, जजों, समाजसेवियों, धर्मगुरूओं ने जाहिर किया है बल्कि इसे सर्वाधिक किसी ने जाहिर किया है तो वह संघ परिवार और भाजपाई हिंदूओं ने किया है। सोचंे, चार सालों के मोदी-शाह के राज में ऑमेजन-वालमार्ट-रिटेल की जो परिघटना है उससे क्या संघ, उसके स्वदेशी संगठनों को हिल नहीं जाना चाहिए था। पर चू करने की हिम्मत तक नहीं। मोदी-शाह का चार साल का व्यवहार सचमुच में संघ की कथित सामाजिकता, पारिवारिकता, बुर्जगों का मान-सम्मान, सामूहिक निर्णय प्रक्रिया की ईंट-ईंट पर बुलडोजर है। क्या नहीं लगता कि चार साल में लालकृष्ण आडवाणी, डा मुरलीमनोहर जोशी सहित तमाम बुजुर्गों की जो अनदेखी हुई, जो उनका असम्मान हुआ वह संघ, भाजपा के कथित संस्कारों के लिए जहां शर्मनाक है वहीं इस जमात के चुपचाप सहते जाने की कायरता का प्रतिमान भी है?
मगर कायर, गुलाम, भक्त के डीएनए और यह बुद्वीहीनता कि इस पृथ्वीराज के साथ ही हिंदूओं का मरना-जीना है वाली सोच में राष्ट्रवादी हिंदू भी उतना ही डरा हुआ है जितना आम हिंदू हाकिम के आगे डरा हुआ रहता है।
डर, गुलामी, भक्ति क्योंकि हिंदू का इतिहास अनुभव है इसलिए इसमें अस्वभाविकता नहीं। मगर इनसे भी गंभीर चार साल का त्रासद मसला यह है कि मोदी-शाह राज मतलब हिंदू शर्म का यह अनुभव कि हिंदूओं को राज करना नहीं आता!
हां, 15 अगस्त 1947 से ले कर 26 मई 2018 का भारत राष्ट्र-राज्य का बार-बार रेखांकित होता तथ्य है कि अवसर बार-बार आए। सबकों मिले लेकिन वह उम्मीदों, वक्त-दुनिया के विकास, उसकी चाल की कसौटी पर खरा नहीं उतरा। वह भयावह तौर पर जाया हुआ और तभी चार सालों के अनुभव ने अपनी यह थीसिस बनाई है कि हिंदूओं को राज करना नहीं आता। 90 साल के हिंदू आईडिया अनुष्ठान का यदि यह हश्र है तो बतौर कौम हम हिंदूओं को क्या सोचना नहीं चाहिए?
पर हम हिंदू सोच भी कैसे सकते हैं आख़िर ? हमें सरस्वती का श्राप है और भक्ति हमारी नियति है!
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