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बढ़िया हल्ला है? लिंच कर दो ..फांसी दे दो? क्या मस्त उत्तेजना है, निकम्मे हुल्लड़बाजो को नेताई चमकाने का एक और सुनहरा मौका

Special Coverage News
3 Dec 2019 6:07 AM GMT
बढ़िया हल्ला है? लिंच कर दो ..फांसी दे दो? क्या मस्त उत्तेजना है, निकम्मे हुल्लड़बाजो को नेताई चमकाने का एक और सुनहरा मौका
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मनीष सिंह

होने को रेप सोसायटी की एक सामान्य परिघटना है। हमारी शुद्ध भारतीय संस्कृति का हिस्सा.. और लेटर स्टेज में गंगा जमुनी तहजीब का भी। सृष्टि की शरुआत ही ब्रम्हा से होती है, पालनहार विष्णु जी भी शालिग्राम हुए। आश्चर्य तो ये है कि उच्छऋंखलो के आराध्य महेश कैसे बेदाग रहे। मार्गदर्शक मंडल से नीचे उतर के नापिये, तो केबीनेट के मुखिया देवेंद्र तो जगत प्रसिद्ध हइये हैं।

उधर गजवा ए हिन्द और गजवा ए वर्ल्ड वाले कहाँ पीछे रहे। रक्तपात औऱ वीर्यपात तो थ्रूआउट हिस्ट्री, विश्वविजय के उनके तरीके रहे हैं। कहते है दुनिया की 12 प्रतिशत आबादी में चंगेजी डीएनए है। पता कीजिये तो वे इस तथ्य पर शर्मिन्दा नही, फख्रमंद मिलेंगे।

आजाद भारत मे असम राइफल्स के मुख्यालय के सामने नग्न महिलाओं का प्रदर्शन याद है? छोड़िए, वो गूगल न कर पाएं तो टालमेटला कांड की ताजा जांच रिपोर्ट पढ़ लें। उनकी भी छोड़िए, हम सिविलियन्स की जुबान से च और फ दिन में किंतनी बार निकलता है, गिनना कठिन है।

जब साइकोलॉजी वैसी हो तो घटनाएं तो होंगी। और आजकल जिस कबायली समाज को रिक्रिएट करने की कोशिश हो रही है, उसमे ये और भी आम होगा। बलात्कार कौम के हिसाब से बांटे जाएंगे, अपने वालों को मालाएं पहनाई जाएंगी, दूजों को लिंच करने की बात होगी। बलात्कारियों के हक में आंदोलन (दंगे) करने वाले अनोखे जीव हैं हम।

तब खुदा के लिए, ये सात दिन में फांसी देने, और सड़क पर लिंच करने की जुमलेबाजी बन्द हो। और बन्द हो बेटियों को आत्मरक्षा के तरीके बताने वाले फारवर्ड संदेशे। अगर पुलिस और सरकार सुरक्षा का माहौल देने में नाकाम है तो जुडो कराटे सीखने का ज्ञान देने के बजाय बेटी पैदा होते ही परिवार को कट्टे पिस्टल का लाइसेंस दे दे, और फायरिंग सीखना कम्पलसरी कर दें।

कानून कितने भी बना लीजिए। लागू करने वाली कोर्ट और पुलिस की अपनी गति है ,दुर्गति है। ऊपर से नेताओ के अपने अपने स्वैग, सो उम्मीद न रखिये। समाज के नाते हम खुद देखें। बचाव के उपाय बेटियों पर लादने की बजाय बेटों पर लादिये। समस्या की जड़ वहीं है।

निर्भया और रेड्डी कांड में 14-15 साल के छोकरे अपराधी हैं। उस उम्र के सारे छोकरे, जाने कहाँ कहाँ से, दिन रात मर्दानगी की नई नई परिभाषाएं सीख रहे हैं। जब जोश चढ़ जाता है, और पाशविकता फूट कर निकलती है, तब गाली,रेप, मर्डर कुछ भी हो सकता है।

परिवार में और रिश्तेदारी में किशोरवय का कोई लड़का हो, हाथ मे मोबाइल और स्कूटी हो, घर मे भयंकर संस्कारी माहौल है, तो बस चुपचाप मान लीजिए कि एक पोटेंशियल बलात्कारी है। कम से कम उसे बिठाकर दायरे ही समझा दीजिये, कभी कहीं मोमबत्तियों की एक बारात निकलने से बच जाएगी। और आप बच जाएंगे शर्मिंदगी, अपमान और अपने बच्चो को न्याय के नाम पर लिंच होते देखने से।

मर्जी है आपकी, आखिर लड़का है आपका ..

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