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नई कहानी अभियान के समय, लेखिका मन्नू भंडारी और लेखक निर्मल वर्मा, राजेंद्र यादव,भीष्म साहनी,कमलेश्वर साहब, मनोहर श्याम जोशी और प्रसिद्ध आलोचक नामवर सिंह अग्रणी रहे हैं लेकिन मन्नू भंडारी का नाम कुछ मायनों में विशिष्ट है। रूढ़िवादी विचारधारा से जिस तरह मन्नू भंडारी ने अपनी कहानी के जरिए आन्दोलन चलाया है वो उनको खुदरंग बनाता है। दुर्भाग्य से ये तत्व अन्य किसी लेखक में उतना नजर नही आते। मन्नू जी ने अपने लेखन से रूढ़िवादी समाज पर तीखा कटाक्ष किया है। "बिना दिवारों के घर" नाटक मेें मन्नू जी पति के दकियानूसी दृष्टिकोण का चित्रण करती हैैं। वर्गभेेद ,जातिभेद, धार्मिक कलुुुषता, अन्धविश्वास आदि मन्नू जी की रचनाओंं के मुख्य पात्र रहेे हैं।
"आपका बन्टी" उपन्यास में मन्नू जी ने बालक कीअतिशय सहानुभूति का परिचय कराया है। उपन्यास में हर रूढ़िवादी भावना के प्रति आक्रोश व्याप्त है। उसके विचार नई चेतना और नये मूल्यो के प्रतीक हैं।मन्नू भंडारी ने अपने इस उपन्यास में एक बालक के माध्यम से संसार का बहुत बड़ा हिस्सा रचने का प्रयास किया है।
संवेदनाओ का सामाजिक-राजनीतिक चेतना के नित नए आयामों का उद्घाटन ही उनकी रचनाओ की सबसे बड़ी खूबी है। मूलत: यही कारण है, जहां अन्य रचनाकार अपने लेखन में स्वयं को दोहराना शुरू कर देते हैं वहां मन्नू जी ने वह गलती नही की। हर एक विधा में नये सिरे से लेखन किया है, और अहम बात ये भी है कि विषयो की विभिन्नता का भी पूरा ध्यान रखा गया है। एक संवाद के दौरान अजितकुमार से बातचीत में उन्होंने कहा भी था - कि कभी-कभी कोई "ब्रिलियंट आइडिया" लिखने के लिए जरूर उकसाता है, पर जब तक वो जीवन में पूरी तरह गुथ नही जाता, कहानी के रूप में उसे उतारना मेरे लिए आसान नही होता।
जीवन की धड़कन से भरपूर स्थितियाँ, विचार या समस्याएँ ही मुझे लिखने के लिए प्रेरित करती हैं। दूसरों से जुड़ी घटनाओं को भी वे पूरी शिद्दत से जीती हैं। मन्नू जी का लेखन ताजगी से भरा रहता है। मैं मोहन गुप्त जी के शब्दो में कहना चाहूँगा, कि मन्नू भंडारी ने नारीवादी मनोविज्ञान को बहुत बारीकी से चित्रित किया है। वहीं राजेंद्र यादव मन्नू जी बारे में लिखते हैं व्यर्थ के भावोच्छवास में नारी के आँचल का दूध और आंखो का पानी दिखाकर मन्नू जी ने पाठको की दया नहीं वसूली। वह एकदम यथार्थ के धरातल पर नारी का नारी की दृष्टि से अंकन करती है , मन्नू जी की नारी हांड-मांस ," देवी और दानवी के दो छोरों के बीच टकराती 'पहेली' नहीं, हाड-मांस की मानवी भी है।
- प्रत्यक्ष मिश्रा ( स्वतंत्र पत्रकार )