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पॉक्सो एक्ट में दया याचिका का प्रावधान पर राष्ट्रपति कोविंद का आया बड़ा बयान
नई दिल्ली। देश के राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने महिला सुरक्षा को लेकर एक बड़ा बयान दिया है। उनका कहना है कि पॉक्सो एक्ट में सजायाफ्ता को माफी नहीं मिलनी चाहिए। ऐसे मामलों में दया याचिका का प्रावधान खत्म हो। राष्ट्रपति ने राजस्थान के सिरोही में एक कार्यक्रम के दौरान कहा, 'महिला सुरक्षा एक गंभीर मसला है। पॉक्सो अधिनियम के तहत दुष्कर्म के दोषियों को दया याचिका दायर करने का अधिकार नहीं होना चाहिए। संसद को दया याचिकाओं की समीक्षा करनी चाहिए।'
जानिए क्या होता है पॉक्सो एक्ट
बच्चों के साथ आए दिन यौन अपराधों की ख़बरें समाज को शर्मसार करती नजर आती हैं. इस तरह के मामलों की बढ़ती संख्या देखकर सरकार ने वर्ष 2012 में एक विशेष कानून बनाया था. जो बच्चों को छेड़खानी, बलात्कार और कुकर्म जैसे मामलों से सुरक्षा प्रदान करता है. उस कानून का नाम पॉक्सो एक्ट।
पास्को एक्ट और सजा
पॉक्सो शब्द अंग्रेजी से आता है. इसका पूर्णकालिक मतलब होता है प्रोटेक्शन आफ चिल्ड्रेन फ्राम सेक्सुअल अफेंसेस एक्ट 2012 यानी लैंगिक उत्पीड़न से बच्चों के संरक्षण का अधिनियम 2012. इस एक्ट के तहत नाबालिग बच्चों के साथ होने वाले यौन अपराध और छेड़छाड़ के मामलों में कार्रवाई की जाती है. यह एक्ट बच्चों को सेक्सुअल हैरेसमेंट, सेक्सुअल असॉल्ट और पोर्नोग्राफी जैसे गंभीर अपराधों से सुरक्षा प्रदान करता है।
वर्ष 2012 में बनाए गए इस कानून के तहत अलग-अलग अपराध के लिए अलग-अलग सजा तय की गई है. जिसका कड़ाई से पालन किया जाना भी सुनिश्चित किया गया है इस अधिनियम की धारा 4 के तहत वो मामले शामिल किए जाते हैं जिनमें बच्चे के साथ दुष्कर्म या कुकर्म किया गया हो. इसमें सात साल सजा से लेकर उम्रकैद और अर्थदंड भी लगाया जा सकता है.।
पॉक्सो एक्ट की धारा 6 के अधीन वे मामले लाए जाते हैं जिनमें बच्चों को दुष्कर्म या कुकर्म के बाद गम्भीर चोट पहुंचाई गई हो. इसमें दस साल से लेकर उम्रकैद तक की सजा हो सकती है और साथ ही जुर्माना भी लगाया जा सकता है इसी प्रकार पॉक्सो अधिनियम की धारा 7 और 8 के तहत वो मामले पंजीकृत किए जाते हैं जिनमें बच्चों के गुप्तांग से छेडछाड़ की जाती है. इसके धारा के आरोपियों पर दोष सिद्ध हो जाने पर पांच से सात साल तक की सजा और जुर्माना हो सकता है.।
पॉक्सो एक्ट की धारा 3 के तहत पेनेट्रेटिव सेक्सुअल असॉल्ट को भी परिभाषित किया गया है. जिसमें बच्चे के शरीर के साथ किसी भी तरह की हरकत करने वाले शख्स को कड़ी सजा का प्रावधान है 18 साल से कम उम्र के बच्चों से किसी भी तरह का यौन व्यवहार इस कानून के दायरे में आ जाता है. यह कानून लड़के और लड़की को समान रूप से सुरक्षा प्रदान करता है. इस कानून के तहत पंजीकृत होने वाले मामलों की सुनवाई विशेष अदालत में होती है.