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जिसका चालक हो अनाड़ी, वो क्या चलाएगा गाड़ी, डूबती कांग्रेस को खरी-खोटी

जिसका चालक हो अनाड़ी, वो क्या चलाएगा गाड़ी, डूबती कांग्रेस को खरी-खोटी
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एक कहावत है "जिसका चालक हो अनाड़ी, वो क्या चलाएगा गाड़ी"। मैं बात कर रहा हूँ कांग्रेस की।
एक कहावत है "जिसका चालक हो अनाड़ी, वो क्या चलाएगा गाड़ी"। मैं बात कर रहा हूँ कांग्रेस की। कांग्रेस का चालक यानी राहुल गांधी देश तो क्या पार्टी चलाने में भी पूरी तरह अनाड़ी, नादान और नौसिखिया है । कांग्रेस फिर से देश मे सत्ता पर काबिज होने का ख्वाब देख रही है। राहुल के रहते हुए यह मुमकिन नही असम्भव है।

कांग्रेस का यह दुर्भाग्य है कि इस पार्टी के नेताओ और कार्यकर्ताओं को गांधी परिवार के अलावा कोई दिखाई नही देता है। इस बात में थोड़ी बहुत सच्चाई हो सकती है। लेकिन कांग्रेस नेताविहीन है या अन्य कोई नेता नेतृत्व करने की क्षमता नही रखता, बात कुछ हजम नही होती है। दरअसल कांग्रेसियो के मन मे एक खौफ समाया हुआ है। अधिकांश नेताओ को यह खौफ है कि उन्होंने गांधी परिवार के खिलाफ बगावत का बिगुल बजाया तो उसकी मय्यत तय है। इसी खौफ के चलते सारे नेता भीगी बिल्ली बने बैठे है। यह खौफ ही था जिसकी वजह से डॉ मनमोहन सिंह जैसा व्यक्ति भी मौनी बाबा बनकर कई साल तक रबर स्टेम्प की माफिक प्रधानमंत्री बने रहे। कई लोगो ने गांधी परिवार का साथ छोड़कर अलग पार्टी बनाई। अंततः उन्हें वापिस गांधी परिवार की शरण मे आना पड़ा। इसी खौफ की वजह से अनेक प्रतिभाओं का सत्यानाश हो रहा है।

राजनीति में नेतृत्व करने वाले व्यक्ति में कई गुणों के साथ-साथ बोलने की क्षमता, होमवर्क, राजनीतिक सूझबूझ, सामयिक विषयो की जानकारी तथा अध्ययन करना आवश्यक है। राहुल गांधी में इनमें से एक भी गुण नही है। अपनी बचकानी हरकतों की वजह से वे अक्सर हँसी के पात्र बनते रहते है। दरअसल जिसके पास खुद का दिमाग नही होता, उसे दूसरे से उधार में बुद्धि लेनी पड़ती है। इसके अलावा इस अभिनेता का कोई एक डायरेक्टर नही है। अनेक डायरेक्टरों के चंगुल से घिरे होने की वजह से वे अपनी बुद्धि का भी धीरे धीरे क्षरण करते जा रहे है।

राहुल गांधी कभी जयतिदित्या राव सिंधिया के तो कभी सचिन पायलेट, अहमद पटेल, राज बब्बर, जतिन प्रसाद या फिर भंवर जितेंद्र प्रसाद के निर्देशन में अभिनय करने लगते है। यही इनकी विफलता का सबसे बड़ा कारण है। राजनीतिक अपरिपक्वता की वजह से कांग्रेस को हर जगह मात खानी पड़ रही है। पंजाब में कांग्रेस नही जीती। बल्कि अकाली दल और भाजपा हारी है। इसी प्रकार राजस्थान या अन्य प्रदेश में हुए उप चुनावो में सत्ताधारी दल हारा है ना कि कांग्रेस जीती है। राहुल की आज करीब 45 साल की उम्र होगई है। लेकिन परिपक्वता का इनमे आज भी नितांत अभाव है।

इस साल कई प्रदेशों और अगले साल देश मे लोकसभा के चुनाव होने वाले है। हो सकता है कि इन चुनावों में कांग्रेस को अपेक्षित सफलता हासिल हो जाये। लेकिन इसका श्रेय राहुल गांधी को नही, अमित शाह और मोदी को देना होगा। क्योंकि देश मे मोदी की असफलता और जुमलेबाजी से लोग उकता चुके है। रोजगार ठप्प हो चुके है। व्यापार अंतिम साँसे ले रहा है। मंदी ने देश की अर्थ व्यवस्था की कमर तोड़ दी है। भाजपा के कांग्रेसीकरण से देश की अवाम में भाजपा के प्रति तीखी नाराजगी है। भाजपा का वोट बैंक माने जाने वाला व्यापारी वर्ग पार्टी से बेहद खफा है। ऐसे में निश्चित रूप से भाजपा को काफी क्षति उठानी पड़ेगी।

अगर कांग्रेस को फिर से खड़ा होना है तो राहुल गांधी की बैसाखियों को दूर फेंककर पुराने और अनुभवी नेता जैसे खड़गे, चिदम्बरम, गुलाम नबी आजाद या आनंद शर्मा जैसे लोगो को आगे लाना होगा। अगर कोई युवक ही लाना है तो ज्योतिदित्या राय सिंधिया से बेहतर कोई व्यक्ति नही हो सकता है। पायलट, जतिन प्रसाद, मिलिंद देवड़ा और भंवर जितेंद्र प्रसाद आदि सब फ्यूज बल्ब है। ज्योतिदित्या राय में शालीनता है, राजनीतिक परिपक्वता, सामयिक विषयो की जानकारी के अलावा नेतृत्व संभालने का गुर भी है। यही गुण अशोक गहलोत में भी है। लेकिन वे सर्वग्राह्य नही है। हा, वफादारी अवश्य कूट कूट कर भरी है।

अगरचे भाजपा को शिकस्त देनी है तो राहल गांधी को पार्टी की खातिर कुछ दिन का अवकाश लेकर नानी के पास चले जाना चाहिए ताकि पार्टी के ऊपर से शनि की महादशा हट सके। अपनी बेवकूफियों और बचकानी हरकतों से राहुल गांधी आज पप्पू के नाम से ज्यादा कुख्यात है। नोटबन्दी के वक्त लोगो की लाइन में लगना, अपनी खाली जेब दिखाना राजनीतिक अपरिपक्वता का इससे बड़ा उदाहरण क्या हो सकता है ? यूपी में खाट की जो नौटंकी की उससे क्या हासिल हुआ ? यह कांग्रेसी भी जानते है और जनता भी। इसलिए प्लीज छोड़िए इस कांग्रेस का पिंड। वरना लोग अपने बच्चों को बताया करेंगे कि किसी जमाने मे कांग्रेस नामक एक पार्टी हुआ करती थी जिसकी पप्पू और उसकी मम्मी ने निर्मम हत्या कर दी।
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