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जुनून और संघर्ष की मिसाल हैं शिवानी पांडेय!

Special Coverage News
8 May 2019 1:16 PM GMT
जुनून और संघर्ष की मिसाल हैं शिवानी पांडेय!
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बारहवीं के छात्रों को लेनी चाहिए शिवानी से सीख

लेखक- शिव कुमार मिश्र

बारहवीं के परीक्षा परिणाम आ चुके हैं। बारहीं पास करने वाले अमूमन सभी छात्र भविष्य को लेकर चिंतित हैं। उनकी चिंता यह है कि उनका करियर कैसे बेहतर बन सकता है? कौन सा कोर्स करें कि पैकेज अच्छा हो? ऐसे में आगे क्या करना चाहिए? तो इसका जवाब यह है कि आपको वहीं करना चाहिए, जो आप करना चाहते हैं, जो आप बनना चाहते हैं। ऐसे छात्र शिवानी पांडेय से सीख ले सकते हैं। शिवानी ने वही किया जो वह करना चाहती थीं। वह फोटोग्राफी करना चाहती थीं, फिल्में बनाना चाहती थीं, राइटर बनना चाहती थीं। इसके लिए वह कारपोरेट की अपनी अच्छी खासी नौकरी छोड़ देती हैं। आज उन्हें प्रोफेशनल फोटोग्राफर, फिल्ममेकर और राइटर के तौर पर पहचाना जाता है। वह देश दुनिया घूम कर फोटोग्राफी करती हैं। ट्रैवेल राइटिंग करती हैं। विभिन्न मुद्दों पर लिखती हैं। सामाजिक मुद्दों खासकर जन स्वास्थ्य यानी पब्लिक हेल्थ और कला पर फिल्में बनाती हैं। भारत से लेकर अमेरिका तक में उनकी फोटो एक्जीबिशन लग चुकी है और फिल्मों की स्क्रिनिंग की जा चुकी है। शिवानी कहती हैं, "अगर आप अपने मन की करते हैं, तो आप जो करेंगे, निसंदेह वह सर्वश्रेष्ठ करेंगे। साथ ही इससे आपके मन को संतुष्टि भी मिलेगी।"





शिवानी पांडेय क्रिएटिव यानी रचनात्मक हैं। बचपन से ही वह कुछ अलग, कुछ रचनात्मक करना चाहती थीं। लेकिन, करियर बनाने के दबाव ने उन्हें भी प्रोफेशनल कोर्स करने के लिए प्रेरित किया। उन्होंने एक प्रतिष्ठित संस्थान से एमबीए किया फिर कारपोरेट की नौकरी शुरु कर दी। उनका अच्छा पैकेज भी था। देखा जाए तो उनका जीवन पटरी पर आ चुका था। लेकिन, इन सब के बीच शिवानी को लगता कि वह, वह नहीं कर रही हैं, जो करना चाहती हैं। वह बचपन से ही फोटोग्राफर और फिल्ममेकर बनना चाहती थी। उन्होंने निर्णय ले लिया कि उन्हें वहीं करना है जो वह करना चाहती हैं। एक दिन वह कारपोरेट की अपनी अच्छी-खासी नौकरी छोड़ कर घर आ जाती हैं। लोगों को जब शिवानी के फैसले का पता चलता है तो उनकी प्रतिक्रिया थी, "यह लड़की तो पागल हो गई है।" शिवानी का अपनी कंपनी में परफॉरमेंस बहुत अच्छा था। कंपनी के सीनियर मैनेजमेंट को लगा कि उसे कोई कंपनी शायद ज्यादा सेलरी का ऑफर दे रही होगी, इसलिए नौकरी छोड़ रही है। उन्होंने शिवानी को मनाने की कोशिश की। लेकिन जब उन्हें शिवानी की मंशा पता चली तो उन्होंने भी नसीहत दे डाली, "आप गलत फैसला ले रही हो, देख लीजिए, कहीं बाद में पछताना न पड़े?"




लेकिन, शिवानी को इसकी कहां परवाह? शिवानी को फोटोग्राफी करनी थी, देश-दुनिया की यात्रा करनी थी, ट्रेवेल राइटिंग करनी थी, फिल्में बनानी थी। लिहाजा उन्होंने फोटोग्राफी और फिल्ममेकिंग कोर्स में एडमिशन ले लिया। शिवानी कहती हैं, "मुझे फिर से सबकुछ जीरो से शुरु करना था। नौकरी छोड़ कर यह सब करना मेरे लिए इतना आसान नहीं था। मै जिस सोसायटी से आती हूं, वहां करियर का मतलब अच्छी नौकरी और अच्छा पैकेज होता है।" देश के सबसे प्रतिष्ठित शिक्षण संस्थान दिल्ली विश्वविद्यालय से पढ़ाई करने वाली शिवानी को लोगों ने ताना देना शुरु कर दिया, "शिवानी तो अब शादी ब्याह में फोटो खिचेगी।" कुछ लोगों ने शिवानी को "एबनार्मल" करार दिया और कहने लगे कि एमबीए करने के बाद लोग अच्छे पैकेज की तरफ भागते हैं और यह लड़की सब कुछ छोड़कर फोटोग्राफी सीख रही है। फिर ट्रैवेल राइटिंग और फोटोग्राफी तो लड़कों का काम है। करीबी समझाते की वह बेकार का काम कर रही है। करियर और कमाई धमाई के लिहाज से भी उसका फैसला ठीक नहीं है। लेकिन शिवानी की डॉक्टर मां ने न केवल उनका हौसला बढ़ाया, बल्कि उनका पूरा साथ दिया। शिवानी कहती हैं, "मेरे पेरेंट्स ने मुझे हमेशा सपोर्ट किया। मैं सभी माता-पिताओं से बस यही कहना चाहती हूं कि वह अपनी मर्जी और और सपनों को बच्चों पर जबरन न थोपें। उन्हें उनकी प्रतिभा को निखरने का अवसर दे। सभी में कुछ "खास" होता है। बस आपको उसी "खास" को पहचानने की जरूरत है।"

अपनी लगन, मेहनत और दृढ इच्छा शक्ति से शिवानी का फोटोग्राफर, फिल्ममेकर और राइटर बनने का सपना पूरा हो गया है। भारत से लेकर यूरोप-अमेरिका तक की हजारों किलोमीटर यात्रा कर वह फोटोग्राफी कर चुकी हैं। उनके पास दो लाख से ज्यादा फोटोग्राफ का कलेक्शन है। दिल्ली के प्रतिष्ठित इंडिया हैबिटेट सेंटर और ललित कला अकादमी से लेकर अमेरिका के कई शहरों में शिवानी की फोटो एक्जिबिशन लग चुकी है और डाक्यूमेंट्री फिल्मों का प्रदर्शन हो चुका है। वह ज्यादातर सामाजिक मुद्दों खासकर पब्लिक हेत्थ यानी जन स्वास्थ्य और कला पर डाक्यूमेंट्री फिल्में बनाती हैं। हाल ही उनकी फाइलेरिया पर बनाई गई डाक्यूमेंट्री को खूब सराहना मिली है। शिवानी कुछ सालों से भारत की गुमनाम और लुप्त होती कलाओं पर स्वतंत्ररूप से शोध कर रही हैं। इनमें से कुछ पर डाक्यूमेट्री भी बनाई है। उन्हें कला पर शोध, फोटोग्राफी और फिल्म के लिए भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय की एक फेलोशिप भी मिली है।

शिवानी ने यह साबित कर दिया कि जो आप करना चाहते हैं, वह आप कर सकते हैं। बशर्ते आप में जुनून और संघर्ष करने का माद्दा होना चाहिए। आज उन्हें एक प्रोफेशलन फिल्ममेकर, राइटर और फोटोग्राफर के रूप में जाना जाता है। उन्हें एक इंडिपेंडेंट थिंकर के रूप में भी तमाम मंचों पर विचार व्यक्त करने और समारोहों में अतिथि के रूप में आमंत्रित किया जाता है। मीडिया शिक्षण संस्थानों में उन्हें अध्यापन के लिए बुलाया जाता है। फिल्म फेस्टिवल में उन्हें जूरी बनाया जाता है। वह हिंदी के नंबर वन अखबार दैनिक जागरण द्वारा आयोजित प्रतिष्ठित जागरण फिल्म फेस्टिवल की जूरी मेंबर भी रह चुकी हैं। उन्हें कई सम्मान और पुरस्कार भी मिल चुके हैं। वह कई इंटरनेशनल एनजीओ से संबद्ध हैं और उनके लिए फिल्में बनाती हैं। शिवानी का सक्सेस मंत्रा है, "पैसे के पीछे नहीं, अपनी रचनात्मकता के पीछे भागिए।" बारहवीं के छात्रों को शिवानी के इस सक्सेज मंत्र को गुरु मंत्र बना लेना चाहिए। उन्हें अपने अंदर छिपी क्रिएटीविटी यानी रचनात्मकता को पहचानना चाहिए और उसी के अनुसार अपने करियर का चयन करना चाहिए।

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