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भारत का एक ही ब्रांड है जो दुनिया में चमकता है, "लोकतंत्र" , मोदी जी को 400 नहीं 545 दीजिए लेकिन इसे बचा लीजिये!

रवीश कुमार
24 Jan 2020 9:19 AM GMT
भारत का एक ही ब्रांड है जो दुनिया में चमकता है, लोकतंत्र , मोदी जी को 400 नहीं 545 दीजिए लेकिन इसे बचा लीजिये!
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मोदी जी को 400 नहीं 545 दीजिए लेकिन उनकी भाषा मत लीजिए। अपनी प्यार वाली भाषा भी 545 के साथ दे दीजिए। भारत बदल जाएगा। देखिए तो।

भारत का एक ही ब्रांड है जो दुनिया में चमकता है। लोकतंत्र। अगर उसी में भारत फिसलता हुआ दिखे तो चिन्ता कीजिए। इन्हीं पत्रिकाओं के कवर पर देख रहा गया कि दुनिया में कितना नाम हो रहा है। अब क्या क्या छप रहा है। ख़ारिज करने का यही आधार न हो कि कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता। मोदी को चार सौ सीटें आएँगी। क्या ऐसे ही नतीजों के लिए चार सौ सीटें दी गईं थीं? छह साल बाद अर्थव्यवस्था फेल है। इस दौरान जिनकी ज़िंदगी बर्बाद हुई उसे सुधरने में बहुत वक्त लग जाएगा। आप प्रधानमंत्री से लेकर मुख्यमंत्री की भाषा देखिए। एक समुदाय के लिए अलग से विशेषण होता है। उनका संबोधन ख़ास तरह से किया जाने लगा है। पहले पाँच साल लगाकर हमारी सोच को खंड खंड कर दिया गया अब भाषा भी बंट गई है। संवैधानिक पदों पर बैठे लोग मुसलमानों के लिए अलग से भाषा का इस्तमाल करने लगे हैं। जब एक बार यह स्वीकृत होगा तो हिन्दुओं के लिए भी इसी भाषा का इस्तमाल होगा। क्योंकि हिन्दुओं से संवाद की भाषा भी उतनी ही ख़राब हो गई है।

मीडिया ने भारत के लोकतंत्र की छाती पर छुरा भोंका है। लोकतंत्र को सुंदर बनाने की कोई भी लड़ाई बिना मीडिया से लड़े शुरू ही नहीं हो सकती है। मोदी समर्थकों से ही अपील की जा सकती है कि आप बेशक आजीवन उनके समर्थन मे रहें लेकिन ऐसी भाषा और ऐसे बँटवारे का विरोध करते रहें। मुसलमानों से नफ़रत कहाँ फैलाई जा रही है? हिन्दुओं में। एक सुंदर और उदार समाज में जब ज़हर फैलेगा तो ख़राबी कहाँ आएँगी? ठंडे मन से सोचिएगा। आपके ही बच्चे ख़राब भाषा बोलेंगे। भाई और पिता बोलने भी लगे हैं। क्या ऐसा हो सकता है कि राजनीति में आप अलोकतांत्रित भाषा का इस्तमाल करें और घर आते ही संस्कारी हो जाएं ? ऐसा नहीं हो सकता है। बोलना शुरू कीजिए। नहीं बोल सकते तो जो बोल रहा है उसके साथ खड़े हो जाइये। आपको इस राजनीति ने ख़राब बनाया है। मैं यही कह रहा हूँ कि आप उसी राजनीति में रहिए लेकिन अच्छे बन जाइये। आपमें संभावनाएँ हैं। अच्छे दिन तो नहीं आएंगे। आप अच्छे दिन बन जाइये। किसी से वतनपरस्ती का सबूत मत माँगिए। न किसी को कपड़े से पहचानिए।

सोचिए आपने प्रधानमंत्री को कितना प्यार किया। अपनों से झगड़ कर चाहा। उनके लिए सड़कों पर गए। और उन्होंने आपको कैसी भाषा दी है ? कपड़े से पहचानने की भाषा। यह सिर्फ़ मुसलमान के लिए नहीं है। आप कहीं जाएँ और आपको कपड़े से आँका जाने लगे तो अपमानित महसूस करेंगे कि नहीं। कपड़ों का वर्गीकरण सिर्फ़ हिन्दू और मुसलमान के बीच ही नहीं हो सकता। वो अमीर और गरीब के बीच भी हो सकता है। हमारे और आपके बीच हो सकता है। हमें तो यही सिखाया गया कि फ़लाँ हमारे रिश्तेदार हैं। पैसे और कपड़े में कम हैं तो क्या हुआ। ख़ून का रिश्ता नहीं बदल सकता। हिन्दू और मुसलमान का इस भारत से ख़ून का रिश्ता है। कपड़ों का नहीं है। याद कीजिए। आप कहीं गए हों और आपके कपड़े से आपके बारे में अंदाज़ा लगाया गया हो तो क्या आप उस वाक़ये को भूल पाएंगे? याद करते ही कितनी पीड़ा होती है।

फ़िल्मों में ही ऐसे दृश्य देखकर हम सबके आंसू निकल जाते थे जब सेठ हमारे कपड़ों में झांकता था। उनमें लगे पैबंद की तरफ़ देखता था। कपड़ों से देखे जाने का दृश्य क्रूर होता था। अब उसी तरह हमारे प्रधानमंत्री आपके कपड़ों को देखने लगे हैं।मुख्यमंत्री योगी जी मुख्यमंत्री की भाषा नहीं बोल रहे। उनकी भाषा में पुलिस से पिटवाने कूटवाने का भाव ख़तरनाक है। ऐसी भाषा भाषा नहीं होती है। अवैध हथियार बन जाती है। उसका मुसलमानों के खिलाफ इस्तमाल होगा तो हिन्दुओं के ख़िलाफ़ भी होगा। क्या हिन्दू किसान, नौजवान या कोई भी इस तरह से आंदोलन नहीं करेगा? करेगा तो उसे वही भाषा मिलेगी जो हिन्दुओं के नाम पर मुसलमानों के लिए दी जा रही है। समाज हमारा है। अगर यहाँ ख़राब भाषा का इस्तमाल होगा तो उसका प्रसाद हर घर में बंटेगा। मिलावटी प्रसाद से लोग बीमार पड़ जाते हैं। सोचिएगा एक बार के लिए। मोदी जी को 400 नहीं 545 दीजिए लेकिन उनकी भाषा मत लीजिए। अपनी प्यार वाली भाषा भी 545 के साथ दे दीजिए। भारत बदल जाएगा। देखिए तो। कीचड़ में कमल सुंदरता का प्रतीक था। काँटे पर कमल को देखकर उन्हें अच्छा नहीं लगना चाहिए जो मोदी जी को 545 देना चाहते हैं ।

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रवीश कुमार

रवीश कुमार

रविश कुमार :पांच दिसम्बर 1974 को जन्में एक भारतीय टीवी एंकर,लेखक और पत्रकार है.जो भारतीय राजनीति और समाज से संबंधित विषयों को व्याप्ति किया है। उन्होंने एनडीटीवी इंडिया पर वरिष्ठ कार्यकारी संपादक है, हिंदी समाचार चैनल एनडीटीवी समाचार नेटवर्क और होस्ट्स के चैनल के प्रमुख कार्य दिवस सहित कार्यक्रमों की एक संख्या के प्राइम टाइम शो,हम लोग और रविश की रिपोर्ट को देखते है. २०१४ लोकसभा चुनाव के दौरान, उन्होंने राय और उप-शहरी और ग्रामीण जीवन के पहलुओं जो टेलीविजन-आधारित नेटवर्क खबर में ज्यादा ध्यान प्राप्त नहीं करते हैं पर प्रकाश डाला जमीन पर लोगों की जरूरतों के बारे में कई उत्तर भारतीय राज्यों में व्यापक क्षेत्र साक्षात्कार किया था।वह बिहार के पूर्व चंपारन जिले के मोतीहारी में हुआ। वह लोयोला हाई स्कूल, पटना, पर अध्ययन किया और पर बाद में उन्होंने अपने उच्च अध्ययन के लिए करने के लिए दिल्ली ले जाया गया। उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय से स्नातक उपाधि प्राप्त की और भारतीय जन संचार संस्थान से पत्रकारिता में स्नातकोत्तर डिप्लोमा प्राप्त किया।

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