राष्ट्रीय

मेरे हुजूर बड़ा जुर्म है ये बेखबरी

Shiv Kumar Mishra
12 Jan 2020 1:44 PM GMT
मेरे हुजूर बड़ा जुर्म है ये बेखबरी
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प्रो. दिग्विजय नाथ झा

चौंकिए मत! वाणी में व्याप्त विरोधाभास के इससे बेहतरीन उदाहरण ढूंढ़ने से भी नहीं मिलेंगे। गत 19 दिसंबर 2019 को भारतीय वाणिज्य एवं उद्योग मंडल (एसोचैम) के शताब्दी समारोह को संबोधित करते हुए भाजपा के श्रेष्ठ नेता नरेंद्र दामोदरदास मोदी ने कहा है कि प्राय: देशहित में ही पीएम को भारतीयों का गुस्सा झेलना पड़ रहा है, बावजूद इसके कि सत्रहवीं लोकसभा के चुनावी नतीजे से अति उत्साहित होकर गत 23 मई, 2019 को सार्वजनिक तौर पर उन्होंने स्वीकार किया था कि फकीर पीएम की झोली भारतीयों ने भर दिया है। हो सकता है कि श्रीयुतनरेंद्र दामोदर दास मोदी हमारी इस राय से सहमत न हों कि एनडीए विरोधी बिखरे राजनीतिक दलों की भारतीय राजनीति में मौजूदगी से मतदाता गत 23 मई, 2019 से पहले भी गुस्से में था और आज भी गुस्से में हैं, अन्यथा इससे तो कतई भी इनकार नहीं किया जा सकता है कि एनडीए हुक्मरानों के गैर जिम्मेदाराना कार्यशैली से आम भारतीय बुरी तरह आहत है। आज की तारीख में भारत में बेरोजगारी की दर 45 सालों के सर्वोच्च स्तर पर है, खाद्य-पदार्थों की कीमतों में आयी जबर्दस्त उछाल की वजह से खुदरा महंगाई तीन सालों में सर्वोच्च स्तर पर है, भारत की जीडीपी विकासदर साढ़े छह सालों के न्यूनतम स्तर पर है, जमा की तुलना में कर्ज देने की रफ्तार 47 सालों के सर्वोच्च स्तर पर है, बैंक डिपॉजिट ग्रोथ रेट 50 सालों के न्यूनतम स्तर पर है, निजी एवं सरकारी निवेश की दर 14 सालों के न्यूनतम स्तर पर है, ग्रामीण क्षेत्रों में मजदूरी दर में बढ़ोतरी की रफ्तार छह सालों के न्यूनतम स्तर पर है, एग्रीकल्चर ग्रोथ रेट पांच सालों के न्यूनतम स्तर पर है, मैन्युफैक्चरिंग का पहिया लगभग थम सा गया है, सभी श्रेणी के वाहनों की बिक्री बीस सालों के न्यूनतम स्तर पर है, अर्थव्यवस्था में घरेलू खपत चालीस सालों के न्यूनतम स्तर पर है, इकोनॉमी में करेंसी सर्कुलेशन 60 सालों के सर्वोच्च स्तर पर है, जीडीपी में अंतर्राष्ट्रीय व्यापार (निर्यात-आयात) की हिस्सेदारी नौ सालों के न्यूनतम स्तर पर है, पब्लिक सेक्टर के बैंकों की मौजूदगी 50 सालों के न्यूनतम स्पर पर है, जबकि पब्लिक सेक्टर के बैंकों का कुल एनपीए पचास सालों के सर्वोच्च स्तर पर है, आयकर रिटर्न दाखिल करने वालों की तादाद दो सालों के न्यूनतम स्तर पर है, वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) संग्रह की रफ्तार नॉर्मल है, कोयला, कच्चा तेल, प्राकृतिक गैस, स्टील एवं बिजली के उत्पादन में जारी गिरावट का सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा है, घरेलू गैस सिलिंडर के दाम चालीस सालों के सर्वोच्च स्तर पर है, यात्री ट्रेनों के हर श्रेणी के किराये 166 सालों के सर्वोच्च स्तर पर है, कार्पोरेट घरानों से अमित भाई अनिल चंद्र शाह के नेतृत्व वाली भाजपा को मिले चंदे चालीस सालों के सर्वोच्च स्तर पर है, भारत संचार निगम लिमिटेड (बीएसएनएल) की वित्तीय बदहाली बीस सालों के सर्वोच्च स्तर पर है और मोबाइल मार्केट में इसकी हिस्सेदारी न्यूनतम स्तर पर है, भारत के मौजूदा प्रधानमंत्री का विदेश दौरा 72 सालों के सर्वोच्च स्तर पर है, महात्मा गांधी राष्ट्रीय रोजगार गारंटी योजना के युवा लाभार्थियों की तादाद तीन सालों के सर्वोच्च स्तर पर है, कैशलेस ट्रांजेक्शन तीन सालों के न्यूनतम स्तर पर है, प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि योजना के लाभार्थियों की तादाद बारह महीनों के न्यूनतम स्तर पर है। दुनिया के टॉप 300 विश्वविद्यालयों की सूची में भारत का नामोनिशान नहीं है, स्वास्थ्य सुविधाओं तक पहुंच और इनकी गुणवत्ता मामले में भारत अपने पड़ोसी देश चीन, बांग्लादेश, श्रीलंका व भूटान तक से पीछे है। शिशु मृत्यु दर मामले में भारत की स्थिति अपने पड़ोसी देश चीन, भूटान, नेपाल, श्रीलंका एवं बांग्लादेश से भी बदतर है। महिला उत्पीड़न के लिए कुख्यात दुनिया के शीर्ष दस देशों में भारत प्रथम स्थान पर है। नागरिकों को दूषित पेयजल उपलब्ध कराने के मामले में विश्व के 122 देशों के समूह में भारत तीसरे स्थान पर है। भारत वैश्विक भूख सूचकांक (ग्लोबल हंगर इंडेक्स) में 117 देशों की रैकिंग में 102 वें स्थान पर है और इस रैकिंग में पाकिस्तान तथा बांग्लादेश तक भारत से बेहतर पायदान पर है। दुनिया के 30 सबसे प्रदूषित शहरों में से 22 भारत के है। दुनिया के पांच बड़े रेल नेटवर्क में भारत अब भी चौथे नंबर पर है और शर्मनाक तो यह है कि भारत में प्रतिवर्ष औसतन तीन सौ छोटी-बड़ी रेल दुर्घटनाएं होती है। सड़क यातायात नियमों के उल्लंघन पर लगने वाला जुर्माना 72 सालों के सर्वोच्च स्तर पर है, बावजूद इसके कि भारत में प्रतिदिन 1317 सड़क दुर्घटनाएं होती है और सड़कों पर गड्ढों की वजह से हर दिन दस लोगों की मौत होती है। भारत की बदहाल ट्रैफिक व्यवस्था की वजह से यात्रियों को सालाना 15 लाख 78 हजार 742 करोड़ रुपये का नुकसान होता है एवं प्रतिदिन 403 लोगों की मृत्यु होती है। राज्यों के विधानसभा के चुनावी सभाओं में प्रधानमंत्री की मौजूदगी 63 सालों के सर्वोच्च स्तर पर है, बावजूद इसके कि वैश्विक वित्तीय विषमता सूचकांक में 157 देशों की रैंकिंग में भारत 147 वें स्थान पर है, वैश्विक लैंगिंक समानता सूचकांक में 129 देशों की रैंकिंग में भारत 95वें स्थान पर है, वैश्विक लैंगिंक असमानता सूचकांक में 149 देशों की रैंकिंग में भारत 112 वें स्थान पर है, वैश्विक लिंगानुपात सूचकांक में 153 देशों की रैंकिंग में भारत 149वें स्थान पर है, जबकि महिलाओं के स्वास्थ्य के मामले में 153 देशों की सूची में भारत 150वें पायदान पर है, नारी शिक्षा के मामले में 153 देशों की सूची में भारत 112 वें पायदान पर, समान काम के लिए समान वेतन के मामले में 153 देशों की सूची में भारत 112वें पायदान पर, समान काम के लिए समान वेतन के मामले में 153 देशों की सूची में भारत 149वें पायदान पर, राजनीति में महिलाओं की मौजूदगी के मामले में 153 देशों की सूची में भारत 18वें पायदान पर है, किंतु महिलाओं की संसद में मौजूदगी के मामले में 153 देशों की सूची में इंडिया 122वें स्थान पर है।

वैश्विक गरीबी सूचकांक में 157 देशों की रैंकिंग में भारत 116वें स्थान पर है, जबकि नेपाल, श्रीलंका, भूटान, बांग्लादेश व चीन की स्थिति गरीबी के मामले में इंडिया से बेहतर है। मानव विकास सूचकांक में 189 देशों की रैंकिंग में भारत 130वें स्थान पर है, मानव पूंजी सूचकांक में 157 देशों की रैंकिंग में भारत 115 वें स्थान पर है, ग्लोबल कनेक्टिविटी सूचकांक में 80 देशों की रैंकिंग में भारत 64वें स्थान पर है, ग्लोबल खुशहाली सूचकांक में 156 देशों की रैंकिंग में भारत 140वें स्थान पर है, इन्क्लूसिव इंटरनेट इंडेक्स में 100 देशों की रैंकिंग में भारत 47 वें स्थान पर है, वैश्विक बौद्घिक संपदा सूचकांक में 50 देशों की रैंकिंग में 36 वें स्थान पर भारत है, वैश्विक प्रतिभा प्रतिस्पर्द्घा सूचकांक में 119 देशों की रैंकिंग में भारत 80वें स्थान पर है, वैश्विक समृद्घि सूचकांक में 149 देशों की रैंकिंग में भारत 94वें स्थान पर है, वैश्विक डिजिटल प्रतिस्पर्द्घात्मक सूचकांक में 141 देशों की रैंकिंग में भारत 44वें स्थान पर है, वैश्विक शांति सूचकांक में 163 देशों की रैंकिंग में भारत 141 वें स्थान पर है, ग्लोबल हैप्पीनेस इंडेक्स में 28 देशों की रैंकिंग में भारत 9वें स्थान पर है, किड्स राइट इंडेक्टस में 180 देशों की रैंकिंग में भारत 117 वें स्थान पर है, ग्लोबल क्लाइमेट रिस्क इंडेक्स में 53 देशों की रैंकिंग में भारत 14वें स्थान पर है, वर्ल्ड प्रेस स्वतंत्रता सूचकांक में 180 देशों की रैंकिंग में भारत 140 वें स्थान पर है, वैश्विक प्रति व्यक्ति आय सूचकांक में 156 देशों की रैंकिंग में भारत 133वें स्थान पर है, वैश्विक ऊर्जा संक्रमण सूचकांक में 115 देशों की रैंकिंग में भारत 76 वें स्थान पर है, वैश्विक भ्रष्टाचार सूचकांक में 180 देशों की रैंकिंग में भारत 78 वें स्थान पर है, रियल एस्टेट वैश्विक पारदर्शिता सूचकांक में 100 देशों की रैंकिंग में भारत 35 वें स्थान पर है, वैश्विक लोकतांत्रिक व्यवस्था सूचकांक में 167 देशों की रैंकिंग में भारत 41 वें स्थान पर है, वैश्विक नवाचार सूचकांक में 129 देशों की रैंकिंग में भारत 52 वें स्थान पर है, ईज ऑफ डूइंग बिजनेस सूचकांक में 190 देशों की रैंकिंग में भारत 63 वें स्थान पर है, वैश्विक प्रतिस्पर्धा सूचकांक में 141 देशों की रैंकिंग में भारत 68 वें स्थान पर है, वैश्विक नव परिवर्तन सूचकांक में 126 देशों की रैंकिंग में भारत 57 वें स्थान पर है, जलवायु परिवर्तन प्रदर्शन सूचकांक में 56देशों की रैंकिंग में भारत 11वें स्थान पर है वैश्विक जलवायु जोखिम सूचकांक में 56 देशों की रैंकिंग में भारत 14वें स्थान पर है, वैश्विक प्रत्यक्ष विदेशी निवेश विश्वास सूचकांक में 25 देशों की रैंकिंग में भारत 11वें स्थान पर है, वैश्विक वित्तीय स्वतंत्रता सूचकांक में 186 देशों की रैंकिंग में भारत 130वें पायदान पर है, पर्यावरण प्रदर्शन सूचकांक में 180 देशों की रैंकिंग में भारत 177 वें स्थान पर है, वैश्विक समावेशी विकास सूचकांक में 74 देशों की रैंकिंग में भारत 62 वें स्थान पर है, वैश्विक विनिर्माण सूचकांक में 100 देशों की रैंकिंग में भारत 30वें स्थान पर है और वैश्विक उद्यमिता सूचकांक में 137 देशों की रैंकिंग में भारत 68 वें पायदान पर है। बहरहाल, मौजूदा प्रधानमंत्री के तमाम दावे-वादे और विकास के लगभग सभी प्रमुख मानकों पर भारत की जमीनी हकीकत के बीच के शर्मनाक फर्क के मद्देनजर मुझे यहां परमादरणीय नरेंद्र दामोदर दास मोदी के लिए ताज भोपाली के मशहूर शेर याद आ रही है कि,

""तुम्हारी बज्म के बाहर भी एक दुनिया है

मेरे हुजूर बड़ा जुर्म है ये बेखबरी!!''

सच पूछिए तो वित्तीय तौर पर बीजेपी को सशक्त करने की कला में दक्ष मौजूदा पीएम संसद के भीतर और बाहर गैर मुस्लिम शरणार्थियों को भारत में हरसंभव संरक्षण प्रदान करने की चर्चा तो लगातार कर रहे हैं, लेकिन किसी भी दिन श्रीयुत्त नरेद्र दामोदर दास मोदी ने संसद के भीतर अथवा कि बाहर इसकी चर्चा नहीं की है कि 500 और 1000 रुपये के नोटों का लीगल टेंडर निरस्त करने के सरकार के 8 नवंबर, 2016 के आधी रात के फैसले के बाद भी भारत की शीर्ष 10 फीसदी आबादी के पास देश की कुल सम्पत्ति का 77.40 प्रतिशत हिस्सा है और ताज्जुब की बात तो यह है कि इनमें से सिर्फ व सिर्फ एक फीसदी आबादी के पास देश की कुल संपत्ति का 51.37 प्रतिशत हिस्सा है। सर्वाधिक दुर्भाग्यपूर्ण तो यह है कि निर्धन परिवार में जन्मे मौजूदा प्रधानमंत्री के अब तक के कार्यकाल में भारत के शीर्ष एक प्रतिशत अमीरों की संपत्ति में 37 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है, जबकि भारत की सर्वाधिक गरीब दस फीसदी आबादी गत सोलह सालों से कर्जदार बनी हुई है। गरीबी उन्मूलन की दिशा में काम करने वाली मशहूर गैर सरकारी अंतर्राष्ट्रीय संगठन ऑक्सफैम इंटरनेशनल ने अपनी रिपोर्ट में खुलासा किया है कि देश की करीब 60 फीसदी आबादी के पास भारत की सिर्फ 4.80 फीसदी संपत्ति है, जबकि इंडिया के शीर्ष नौ अमीरों की संपत्ति भारत की पचास फीसदी गरीब आबादी की संपत्ति के बराबर है। यद्यपि, प्रधानमंत्री नोबेल पुरस्कार विजेता अमर्त्ससेन एवं अभिजीत बनर्जी के बजाय वित्तीय वर्ष 2020-21 में अर्थव्यवस्था को रफ्तार देने के लिए मुकेश अंबानी, दिलीप सांधवी, अजीम प्रेमजी, शिवनादर, साइरस एस पूनावाला, लक्ष्मी मित्तल, उदय कोटक, कुमार मंगलम बिड़ला, सुनील मित्तल, देश बंधु गुप्ता, गौतम अडानी, आनंद महिंद्रा, वेणु श्रीनिवासन व अनिल अग्रवाल सरीखे सुपर भारतीय रईसो के साथ विचार-विमर्श करने में मशगूल हैं और देश की माननीय वित्त मंत्री बदहाल बैंकिंग प्रबंधन से मुंह मोड़ने में लगी है।

बावजूद इसके कि बैंकिंग प्रबंधन दुनिया के किसी भी अर्थव्यवस्था की रीढ़ की हड्डी होती है और आज की तारीख में भारत के बैंकों में खाताधारकों की संख्या पचास सालों के सर्वोच्च स्तर पर है, जबकि बैंकों में बचत बढ़ने की दर दस सालों के न्यूनतम स्तर पर है एवं यही वजह है कि भारतीय बैंकों का बुनियादी कारोबारी मॉडल लड़खड़ाया हुआ है। बैंकिंग फ्रॉड के मामलों में लगातार हुई बढ़ोतरी ने जमाकर्ताओं के भरोसे को लगभग नेस्तनाबूद कर दिया है और भारतीय बैंकिंग सिस्टम की खामियों को सरेआम उजागर कर दिया है। स्वयं ही माननीया वित्त मंत्री ने संसद में स्वीकार किया हे कि वित्तीय वर्ष 2019-20 के पहले 6 महीनों में बैंकिंग फ्रॉड के कुल 5743 मामले उजागर हुए हैं और इनमें 95143 करोड़ रुपये की लूट हुई, जबकि 2018-19 में बैंकिंग फ्रॉड के कुल 6801 मामले उजागर हुए और इनमें 71543 करोड़ रुपये की लूट हुई, 2017-18 में बैंकिंग फ्रॉड के कुल 5916 मामले उजागर हुए और इनमें तकरीबन 41167 करोड़ रुपये की लूट हुई, 2016-17 में बैंकिंग फ्रॉड के कुल 5076 मामले सामने और इनमें 23984 करोड़ रुपये की लूट हुई 2015-16 में बैंकिंग फ्रॉड के कुल 4693 मामले उजागर हुए और इनमें 18698 करोड़ रुपये की लूट हुई तथा वर्ष 2014-15 में बैंकिंग फ्रॉड के कुल 4639 मामले उजागर हुए और इनमें 19445 करोड़ रुपये की लूट हुई है। इतना ही नहीं डायमंड कारोबारी नीरष मोदी व मेहुल चौकसी ने तकरीबन 11500 करोड़ किंगफिशर सुप्रीमो विजय माल्या ने करीब 9432 करोड़, रोटोमैक पेन के प्रमोटर विक्रम कोठारी ने 3695 करोड़ एवं कंप्यूटर निर्माता आरपी इंफोसिस्टम ने 515 करोड़ रुपये का चूना बैंकों को बीते चार सालों में लगाया है।

सूचना का अधिकार अधिनियम के सुसंगत प्रावधानों के तहत रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया की ओर से उपलब्ध करायी गयी जानकारी के मुताबिक वर्ष 2019 के दिसंबर महीने में सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों का कुल नॉन परफॉर्मिंग एसेट्स (एनपीए) 7 लाख 27 हजार 296 करोड़ रुपये है और कुल एनपीए का तकरीबन 44 फीसदी हिस्सा मशहूर भारतीय रईसों के सिर्फ व सिर्फ एक सौ खातों में हैं, लेकिन सरकार की मंशा बैंकों के कर्ज के रुपये से गुलछर्रे उड़ाने वाले सौ रईसों से निपटने के बजाय बैंकों में आम नागरिकों का जमा लगभग 127 लाख करोड़ रुपये को हड़पने की है। इसे बेशर्मी की हद ही कहेंगे कि पंजाब एंड महाराष्ट्र को ऑपरेटिव बैंक (पीएमसी) के 22 फीसदी खाताधारक अपनी जमा राशि वापस पाने के लिए इन दिनों दर-दर भटक रहे हैं और दुर्भाग्यपूर्ण तो यह है कि छह से अधिक खाताधारकों ने आत्महत्या तक कर ली है, जबकि वर्ष 2014 से 2019 के बीच बैंकों ने 4.80 लाख करोड़ रुपये के कर्ज राइट आफ किये हैं तथा न्यूनतम बैलेंस नहीं रखने के एवज में खाताधारकों से 6244 करोड़ रुपये वसूले हैं और इसके बीच ही वर्ष 2018 में नरेंद्र दामोदर दास मोदी के नेतृत्व वाली एनडीए की सरकार ने बैंकों में जमा पर मिलने वाली इंश्योरेंस सुविधा को खत्म करने के मकसद से फाइनेंशियल रिजॉल्यूशन एंड डिपॉजिट इंश्योरेंस विधेयक संसद में पारित कराने की तैयारी प्रारंभ कर दी, परंतु बढ़ते विरोध के कारण सफलता नहीं मिली तथा इसी विफलता से आक्रोशित नरेंद्र दामोदर दास ने अपने चहेते इतिहास में स्नातकोत्तर शशिकांत दास की नियुक्ति भारतीय रिजर्व बैंक के गर्वनर के पद पर कर दी। इन दिनों बैंकों में जमा रकम का महज 28 फीसदी राशि ही इंश्योरेंस से सुरक्षित है, जबकि, 1990 के दशक में जमा रकम का 75 फीसदी राशि इंश्योरेंस से सुरक्षित थी। बावजूद इसके कि भारत में इन दिनों पब्लिक सेक्टर के बैंकों की संख्या 12, प्राइवेट सेक्टर के बैंकों की संख्या 21, विदेशी बैंकों की संख्या 49, क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों की संख्या 56, अर्बन कोआपरेटिव बैंकों की संख्या 1562 तथा रुलर कोऑपरेटिव बैंकों की तादाद 94384 है, परंतु विदेशी बैंकों के अलावा सभ के खजाने की हालत डांवाडोल है और देश को पांच ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनाने के दावों की चुगली खाती है।

बैंकों का पूंजी बाजार इतनी तेजी से गिरा है कि बैंकों के आपस में विलय से भी बात बनने की उम्मीद नहीं है। अपने प्रमुख लोकलुभावन मिशन बैंकों पर लाद देने के मौजूदा पीएम के फैसले ने बैंकिंग कारोबार का कबाड़ा कर दिया है। जन धन, इंश्योरेंस, डायरेक्ट बेनीफिट ट्रांसफर, आधार सरीखे सेवाओं के मद में किये गये बैंकिंग नेटवर्क का इस्तेमाल की अपनी लागत है जनाब! आज गर इंफ्रास्ट्रक्चर से जुड़े मोदी सरकार के सौकड़ों बड़े प्रोजेक्ट के जमीनी असर नहीं दिख रहे हैं अथवा कि भारतीयों के हाथों से रोजगार छिनते जा रहे हैं तो उसकी बड़ी वजह यह है कि बैंकों की हालत किसी भी अनुमान से अधिक वित्तीय तौर पर प्रतिकूल है। अंतर्राष्ट्रीय मुद्राकोष (आईएमएफ) की ताजा रिपोर्ट बताती है कि एशिया की अन्य अर्थव्यवस्थाओं की तुलना में पब्लिक सेक्टर के भारतीय बैंकों की स्थिति बेहद ही बदतर है, क्योंकि इसके लोन में नॉन परफॉर्मिंग एसेट्स का हिस्सा अन्य एशियन देशों के बैंकों की तुलना में सबसे ज्यादा है। परंतु सरकार को दीवार पर लिखी इबारत को स्वीकारने में अगर अब भी संकोच है तो यहां यह कहना बिल्कुल ही लाजिमी है कि पीएमओ के आसपास की छोटी बिरादरी अर्थव्यवस्था को क्रैशहोने से नहीं बचा सकता है। मसलन, आगामी पांच सालों में इंफ्रास्ट्रक्चर पर 102 लाख करोड़ रुपये खर्च करने का दावा पीएम कर रहे हैं, जबकि केंद्रीय सांख्यिकी एवं कार्यक्रम क्रियान्वयन मंत्रालय के अधीन कार्यरत केंद्रीय सांख्यिकी संगठन सीएओ की ताजा रिपोर्ट बताती है कि निर्धारित समय सीमा के भीतर धन राशि की अनुपलब्धता की वजह से इंफ्रास्ट्रक्चर से जुड़े 1623 प्रोजेक्ट्स की लागत में अब तक तकरीबन बीस फीसदी की बढ़ोतरी हो चुकी है यानी कि शुरू करते वक्त इन 1623 प्रोजेक्टस का खर्च 19 लाख 33 हजार 390 करोड़ रुपये आंका गया था, वह बढ़कर आज की तारीख में 23 लाख 21 हजार 502 करोड़ रुपये हो चुका है। कल की नहीं बता सकते हैं।

रिपोर्ट में यहां तक बताया गया है कि इंफ्रास्ट्रक्चर से जुड़े इन 1623 में से 366 प्रोजेक्ट्स तय समय सीमा से देरी से चल रहे हैं। 366 में से 100 प्रोजेक्ट्स में 1 से 12 महीने तक की देरी के आसार है, 69 प्रोजेक्ट्स में 13 से 24 महीने तक की देरी हो सकती है। 91 प्रोजेक्ट्स में 24 से 60 महीने और 106 प्रोजेक्ट्स में 61 से 65 महीने तक की देरी हो सकती है। सीएसओ ने अपनी रिपोर्ट में यहां तक खुलासा किया है कि बैंकों की सेहत में आयी सुस्ती की वजह से वर्ष 2016 से 2019 के बीच असंगठित क्षेत्र में सर्वाधिक जहां 2 करोड़ 88 लाख से अधिक भारतीयों की नौकरियां जा चुकी है, वहीं संगठित क्षेत्र की 62 लाख से अधिक, मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर की 35 लाख से अधिक, ऑटोसेक्टर की 5 लाख से अधिक, रियल एस्टेट सेक्टर की 3 लाख से अधिक, माइनिंग सेक्टर की 2 लाख 65 हजार से अधिक, आईटी सेक्टर की 56 हजार से अधिक और बैंकिंग सेक्टर में 36 हजार से अधिक नौकरियों पर कैंची चल चुकी है। दर्दनाक तो यह है कि बीते चार सालों में ऑटोपाट्र्स सेक्टर में साढ़े आठ लाख से अधिक संविदा श्रमिकों (कांट्रेक्ट लेबर) की छुट्टी हुई है, जबकि कृषि एवं खनन क्षेत्र में 2 करोड़ 50 लाख से अधिक ग्रामीण महिला श्रमिकों के रोजगार खत्म हुए हैं। ग्लोबल कॉस्ट ऑफ इंटरनेट शट डॉउन की वर्ष 2019 की रिपोर्ट सिस्टम के डिजिटलीकरण के पीएम के दावे की हकीकत बयां करती है और बताती है कि इंटरनेट बंद होने से सबसे ज्यादा नुकसान उठाने वाले देशों में इराक और सूडान के बाद भारत तीसरे पायदान पर है, जहां वर्ष 2019 में 4196 घंटे इंटरनेट बंद रहा और करीब 9245 करोड़ रुपये का देश को नुकसान हुआ है। क्या नरेंद्र दामोदर दास मोदी के नेतृत्ववाली केंद्र की एनडीए सरकार लोकतांत्रिक जवाबदेही के तहत आगामी बजट सत्र में हमें कुछ बताएगी?

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Shiv Kumar Mishra

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