राष्ट्रीय

श्रद्धांजलि सफरनामा : आमजन को विदेश मंत्रालय से जोड़ने वाली सुषमा

Special Coverage News
8 Aug 2019 5:09 AM GMT
श्रद्धांजलि सफरनामा : आमजन को विदेश मंत्रालय से जोड़ने वाली सुषमा
x
कहते हैं कि भारत में विदेश मंत्रालय पीएमओ से चलता है, लेकिन सुषमा स्वराज ने इस धर्म को न सिर्फ बदल दी बल्कि उसे नई पहचान दी।

पटना से शिवानन्द गिरि की विशेष रिपोर्ट

एक वकील से लोकप्रिय वक्ता और किसी राष्ट्रीय पार्टी की पहली महिला प्रवक्ता तक सुषमा स्वराज की तमाम विशिष्ट पहचानें रही हैं. लेकिन इन सबके बीच सबसे नई यह थी कि उन्होंने आम आदमी को विदेश मंत्रालय से जोड़ा. ऐसा 2014 में उनके विदेश मंत्री बनने के बाद हुआ. सिर्फ एक ट्वीट पर सुषमा स्वराज विदेश में फंसे किसी भारतीय की मदद के लिए तुरंत सक्रिय हो जाती थीं. इराक से लेकर लीबिया तक तमाम जगहों पर मुश्किल में फंसे भारतीय नागरिकों को उनका सहारा मिला.

सुषमा स्वराज का जन्म 14 फरवरी 1952 को हरियाणा के अंबाला में हुआ था. इसी शहर से कॉलेज की पढ़ाई करने के बाद उन्होंने पंजाब विश्वविद्यालय, चंडीगढ़ से कानून की डिग्री ली. हिंदी वक्ता के रूप में सुषमा स्वराज तब भी असाधारण थीं. उन दिनों हरियाणा सरकार के भाषा विभाग द्वारा आयोजित राज्य स्तरीय प्रतियोगिता में उन्होंने लगातार तीन बार सर्वक्षेष्ठ हिंदी वक्ता का पुरस्कार जीता था.




1973 में सुषमा स्वराज ने सुप्रीम कोर्ट में वकालत की प्रैक्टिस शुरू की. यहीं उनकी मुलाकात स्वराज कौशल से हुई जो 1975 में उनके जीवनसाथी बने. स्वराज कौशल के नाम 34 साल की उम्र में देश के सबसे युवा महाधिवक्ता और 37 साल की उम्र में देश के सबसे युवा राज्यपाल बनने की उपलब्धि दर्ज है.

सुषमा स्वराज के पिता हरदेव शर्मा राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ से जुड़े थे. इसे देखते हुए यह स्वाभाविक माना जा सकता है कि उन्होंने अपनी राजनीति की शुरुआत संघ के आनुषंगिक संगठन अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से की. आपातकाल के दौरान सुषमा स्वराज ने जेपी के संपूर्ण क्रांति आंदोलन में हिस्सा लिया. बाद में वे जनता पार्टी की सदस्य बन गईं.




1977 का साल सुषमा स्वराज के लिए एक बड़ी उपलब्धि लेकर आया. उन्होंने हरियाणा विधानसभा का चुनाव जीता और चौधरी देवी लाल सरकार में श्रम मंत्री बनीं. तब उनकी उम्र थी महज 25 साल. यानी वे देश में सबसे युवा कैबिनेट मंत्री बन गई थीं. हालांकि इसके बाद उनका अपने गृह प्रदेश की राजनीति में तजुर्बा अच्छा नहीं रहा. सुषमा स्वराज हरियाणा के करनाल से तीन बार लोकसभा चुनाव लड़ीं और हारीं. यह भी दिलचस्प है कि तीनों बार उन्हें एक ही उम्मीदवार ने हराया और वे थे कांग्रेस के चिरंजी लाल शर्मा. इसके बाद वे हरियाणा से कभी चुनाव नहीं लड़ीं.

1979 में उन्हें जनता पार्टी की हरियाणा इकाई का अध्यक्ष चुना गया. बाद में भाजपा बनी तो सुषमा स्वराज इसमें शामिल हो गईं. 1990 में भाजपा ने उन्हें राज्य सभा भेजा. इसके छह साल बाद वे 1996 में दक्षिण दिल्ली से लोकसभा चुनाव जीतीं. अटल बिहारी वाजपेयी की 13 दिनों की सरकार में सुषमा स्वराज सूचना प्रसारण मंत्री बनाई गयीं. इसी दौरान उन्होंने लोकसभा में चल रही बहस के दूरदर्शन पर सीधे प्रसारण का फैसला किया था.




1998 के आम चुनाव में सुषमा स्वराज फिर दक्षिण दिल्ली से लोकसभा पहुंचीं. इस बार अटल बिहारी वाजपेयी ने उन्हें सूचना प्रसारण मंत्रालय के साथ ही दूरसंचार मंत्रालय का अतिरिक्त प्रभार भी सौंपा. उनके इस कार्यकाल की सबसे बड़ी उपलब्धि थी भारत में फिल्म निर्माण को उद्योग का दर्जा देना जिसकी वह काफी समय से मांग कर रहा था. उसी साल अक्टूबर में उन्होंने कैबिनेट से इस्तीफा दिया और दिल्ली की पहली महिला मुख्यमंत्री बनीं. उन पर राज्य में बढ़ती महंगाई के चलते जनता की नाराजगी से भाजपा सरकार को बचाने का जिम्मा था. वे तो अपनी सीट जीत गईं पर पार्टी हार गई.

इसके बाद दिसंबर 1998 में विधानसभा सीट से इस्तीफा देकर सुषमा स्वराज राष्ट्रीय राजनीति में लौट आईं. 1999 में वे कर्नाटक के बेल्लारी से कांग्रेस की तत्कालीन अध्यक्ष सोनिया गांधी के खिलाफ लड़ीं, लेकिन हार गईं. साल 2000 में भाजपा ने उन्हें एक बार फिर राज्यसभा भेज दिया और अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में वे फिर से सूचना प्रसारण मंत्री बनाई गयीं. बाद में उन्होंने स्वास्थ्य, परिवार कल्याण और संसदीय मामलों के मंत्रालय का जिम्मा संभाला.




2009 में सुषमा स्वराज मध्य प्रदेश के विदिशा से लोकसभा पहुंचीं. 15वीं लोकसभा में वे नेता प्रतिपक्ष बनाई गईं. उनसे पहले इस पद पर उनके राजनीतिक गुरु लालकृष्ण आडवाणी थे. 2014 में वे एक बार फिर विदिशा से लोकसभा पहुंचीं. इसके बाद उन्होंने भारत की पहली पूर्णकालिक महिला विदेश मंत्री होने की उपलब्धि अपने नाम की.

भारत में विदेश मंत्री अक्सर प्रधानमंत्रियों की छाया में दबे दिखते हैं. जवाहरलाल नेहरू से लेकर पीवी नरसिम्हा राव और नरेंद्र मोदी तक ज्यादातर प्रधानमंत्रियों की विदेश नीति पर अपनी मजबूत राय रही है. इसलिए कहा भी जाता है कि भारत में विदेश मंत्रालय पीएमओ से चलता है. लेकिन सुषमा स्वराज ने अपनी एक अलग पहचान बनाई. जैसा कि रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने भी उन्हें श्रद्धांजलि देते हुए कहा है कि विदेश मंत्री के रूप में वे मंत्रालय की कार्यप्रणाली में एक नयी तरह की संवेदनशीलता लेकर आईं.




सुषमा स्वराज से पहले तक विदेश मंत्रालय को एक रूखी जगह माना जाता था जो आम आदमी से कहीं दूर था, लेकिन उन्होंने यह छवि तोड़ी. इराक से लेकर यमन तक तमाम जगहों पर मुश्किलों में फंसे भारतीयों की मदद में उन्होंने व्यक्तिगत दिलचस्पी ली. ऐसा भी उदाहरण है कि किसी ने तड़के तीन बजे अपनी मुश्किल बताते हुए ट्वीट किया और सुषमा स्वराज ने उसका जवाब दिया.

यही वजह थी कि कई बार लोगों को उनकी इस असाधारण सक्रियता पर यकीन नहीं होता था. एक बार तो सुषमा स्वराज से एक ट्विटर यूजर ने पूछा भी कि क्या उनकी जगह उनका कोई जनसंपर्क अधिकारी ट्वीट करता है. इस पर उनका जवाब था, 'निश्चित रहें. ये मैं ही हूं, मेरा भूत नहीं है.' उनकी यह हाजिरजवाबी जब-तब दिखती रहती थी. एक बार किसी यूजर ने उनसे पूछा कि उसका फ्रिज खराब है और क्या विदेश मंत्री उसकी मदद कर सकती हैं. इस पर सुषमा स्वराज का जवाब था, 'भाई, मैं फ्रिज के मामले में आपकी मदद नहीं कर सकती. मैं मुश्किल में फंसे लोगों की मदद में बहुत व्यस्त हूं.' एक बार तो किसी ने मजाक में उन्हें ट्वीट किया कि वह मंगल ग्रह पर मुश्किल में है. सुषमा स्वराज ने जवाब दिया, 'आप मंगल पर ही क्यों न हों, वहां मौजूद भारतीय दूतावास आपकी मदद करेगा.'




विदेश मंत्री के रूप में सुषमा स्वराज ने और भी मोर्चों पर मजबूत छाप छोड़ी. अमेरिका से लेकर चीन तक तमाम देशों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के दौरों से पहले वे इन देशों में गईं और प्रधानमंत्री के दौरों के लिए मजबूत बुनियाद बनाई. कुलभूषण जाधव मामले की गूंज अगर वैश्विक स्तर पर इतनी बड़ी हो सकी तो इसमें सुषमा स्वराज का भी बड़ा योगदान था. 2017 में भारत और चीन के बीच पैदा हुए डोकलाम गतिरोध को दूर करने में उनकी भूमिका को भी हमेशा याद रखा जाएगा.




2016 में सुषमा स्वराज ने अपनी दोनों किडनियां खराब होने की जानकारी दी थी. बाद में उनका किडनी ट्रांसप्लांट ऑपरेशन भी हुआ. हालांकि उनका स्वास्थ्य गिरने लगा था. 2018 में ही उन्होंने ऐलान कर दिया था कि वे अगला चुनाव नहीं लड़ेंगी. कल ही सुषमा स्वराज ने जम्मू-कश्मीर में धारा 370 अप्रभावी करने के केंद्र के फैसले पर ट्वीट किया था. उन्होंने लिखा था, 'प्रधानमंत्री जी - आपका हार्दिक अभिनन्दन. मैं अपने जीवन में इस दिन को देखने की प्रतीक्षा कर रही थी.' इसके कुछ ही घंटे बाद उनका निधन हो गया, मानो उनकी आखिरी सांस इस घड़ी का ही इंतजार कर रही थी.





Tags
Special Coverage News

Special Coverage News

    Next Story