राष्ट्रीय

क्या है भूकंप से निपटने की हमारी तैयारी - ज्ञानेन्द्र रावत

Special Coverage News
26 Sep 2019 5:37 AM GMT
क्या है भूकंप से निपटने की हमारी तैयारी - ज्ञानेन्द्र रावत
x
निष्कर्ष यह कि भूकंप से बचा जा सकता है लेकिन इसके लिए समाज,सरकार,वैज्ञानिक और आम जनता सबको प्रयास करने होंगे।

बीती 24 सितम्बर को पाक अधिकृत कश्मीर में आये 5.8 रिएक्टर पैमाने के भूकंप से भारी तबाही हुई। भूकंप का केन्द्र पाक अधिकृत कश्मीर में पंजाब प्रांत के मीरपुर के समीप पहाड़ी शहर झेलम के निकट जमीन से 10 किलोमीटर गहराई में स्थित था। इसमें जानकारी के अनुसार तकरीब 23 से अधिक लोगों की मौत हो गई और 300 से ज्यादा घायल हुए हैं। इसमें सबसे ज्यादा नुकसान मीरपुर जिले में हुआ। बहुतेरे मकान ढह गए, सड़कें बुरी तरह फट कर छतिग्रस्त हो गईं, उनमें कई-कई फीट की चैड़ी दरारें आ गईं, कई वाहन पलट गए और कारें सड़कों में आई दरारों में समा गईं। नतीजतन आपात स्थिति की घोषणा करनी पड़ी।

इससे दिल्ली एनसीआर समेत जम्मू कश्मीर, उत्तराखण्ड, हरियाणा, पंजाब, हिमाचल प्रदेश, उत्तर प्रदेश सहित कई राज्यों में तकरीब आठ से दस सैकेंड तक भूकंप के भारी झटके महसूस किये गए। वह बात दीगर है कि यहां जानमाल का कोई नुकसान नहीं हुआ। भूकंप से अफगानिस्तान या भारत में भले ही जानमाल का नुकसान न हुआ हो लेकिन इतना तय है कि भारत में भूकंप के खतरे से मुंह नहीं मोड़ा जा सकता। इसे किसी भी कीमत पर दरगुजर नहीं किया जा सकता। इसमें कोई दो राय नहीं भले दावे कुछ भी किये जायें असलियत यह है कि भूकंप के खतरे से निपटने की तैयारी में हम बहुत पीछे हैं। दरअसल भूकंप! एक ऐसा नाम है जिसके सुनते ही रोंगटे खड़े हो जाते हंै। उसकी विनाश लीला की कल्पना मात्र से दिल दहलने लगता है और मौत सर पर मंडराती नजर आती है।

गौरतलब है कि आज से कुछेक बरस पहले संप्रग सरकार के तत्कालीन केन्द्रीय शहरी विकास मंत्री जयपाल रेड्डी ने कहा था कि इस आपदा का कभी भी सामना करना पड़ सकता है और हालात यह हैं कि अभी स्थानीय प्रशासन-सरकार उसका पूरी तरह मुकाबला करने में अक्षम है, ने देशवासियों की नींद हराम कर दी थी। तब से देशवासी वह हर पल यही सोचते रहते हैं कि यदि एैसा हुआ तो उन्हें कौन बचायेगा? जाहिर सी बात है कि इन हालात में सरकार तो उन्हें बचा पाने में कतई सक्षम नहीं है। कारण उसने तो पहले ही हाथ खड़े कर दिए हैं और चेतावनी देकर अपने कर्तव्य की इतिश्री कर ली है। मौजूदा सरकार भी इस बारे में कुछ खास कर पाने में नाकाम रही है।

यह कटु सत्य है कि मानव आज भी भूकंप की भविष्यवाणी कर पाने में नाकाम है। अर्थात भूकंप को हम रोक नहीं सकते लेकिन जापान की तरह उससे बचने के प्रयास तो कर ही सकते हैं। जरूरी है हम उससे जीने का तरीका सीखें। हमारे देश में सबसे बड़ी विडम्बना यह है कि लोगों को भूकंप के बारे में बहुत कम जानकारी है। फिर हम भूकंप को दृष्टिगत रखते हुए विकास भी नहीं कर रहे हैं। बल्कि अंधाधुंध विकास की दौड़ में बेतहाशा भागे ही चले जा रहे हैं। दरअसल हमारे यहां सबसे अधिक संवेदनशील जोन में देश का हिमालयी क्षेत्र आता है। हिन्दूकुश का इलाका, हिमालय की उंचाई वाला और जोशीमठ से उपर वाला हिस्सा, उत्तरपूर्व में शिलांग तक धारचूला से जाने वाला, कश्मीर का और कच्छ व रण का इलाका भूकंप की दृष्टि से संवेदनशील जोन-5 में आते हैं।

इसके अलावा देश की राजधानी दिल्ली, जम्मू और महाराष्ट्र् तक का देश का काफी बड़ा हिस्सा भूकंपीय जोन-4 में आता है जहां हमेशा भूकंप का काफी खतरा बना रहता है। देखा जाये तो भुज, लातूर और उत्तरकाशी में आए भूकंप के बाद यह आशा बंधी थी कि सरकार इस बारे में अतिशीघ्र कार्यवाही करेगी। लेकिन हुआ क्या? देश की राजधानी दिल्ली सहित सभी महानगरों में गगनचुम्बी बहुमंजिली इमारतों, अट्टालिकाओं कीध्ण् श्रृंखला शुरू हुई जिसके चलते आज शहर-महानगरों-राजधानियों और देश की राजधानी में कंक्रीट की आसमान छूती मीनारें ही मीनारें दिखाई देती हैं और यह सब बीते पंद्रह-बीस सालों के ही विकास का नतीजा है। जाहिर सी बात है कि इनमें से दो प्रतिशत ही भूंकप रोधी तकनीक से बनायी गई हैं। क्या इनके निर्माण में किसी नियम-कायदे-कानूनों का पालन किया गया है। इस बारे में सरकार क्या स्पष्टीकरण देगी। यही बहुमंजिली आवासीय इमारतें आज भूकंप आने की स्थिति में हजारों मानवीय मौतों का कारण बनेंगी।

गौरतलब है कि समूची दुनिया की तकरीब 90 फीसदी जनता आज भी भूकंप संभावित क्षेत्र में गैर इंजीनियरी ढंग यानी पुराने तरीके से बने मकानों में रहती है जिसकी वजह से भूकंप आने की दशा में सर्वाधिक जनधन की हानि होती है। इसलिए भूकंप से बचने की खातिर ऐसे मकानों की सुरक्षा सर्वोच्च प्राथमिकता होनी चाहिए। हमारे यहां जहां अशिक्षा, गरीबी, भुखमरी, बढ़ती आबादी, आधुनिक निर्माण सम्बंधी जानकारी, जागरूकता व जरूरी कार्यकुशलता का अभाव है, इससे जनजीवन की हानि का जोखिम और बढ़ गया है। ऐसी स्थिति में पुराने मकान तोड़े तो नहीं जा सकते लेकिन भूकंप संभावित क्षेत्रों में नये मकानों को हल्की सामग्री से बना तो सकते हैं। जहां बेहद जरूरी है, वहां न्यूनतम मात्रा में सीमेंट व स्टील का प्रयोग किया जाये, अन्यत्र स्थानीय उपलब्ध सामग्री का ही उपयोग किया जाये, पांरपरिक निर्माण पद्धतियों में केवल वही मामूली सुधारों का समावेश किया जाये जिनको स्थानीय कारीगर आसानी से समझकर प्रयोग में ला सकंे। भवन निर्माण से पहले भूकंपरोधी इंजीनियरी निर्माण दिशा-निर्देशिका का बारीकी से अध्ययन करें व भवन निर्माण उसके आधार पर करें। इसमें मात्र 5 फीसदी ही अधिक धन खर्च होगा, अधिक नहीं। यह जान लें कि भूकंप नहीं मारता, मकान मारते हैं। इसलिए यह करना जरूरी हो जाता है।

संकट के समय खतरों के बारे में जानना व उसके लिए तैयार रहना चाहिए। उसके लिए सबसे पहले सरवायवल किट तैयार रखें, घर की नीवों व ढांचों की जांच करें, पानी के टिनों, सिलिन्डरों व ऊंचे फर्नीचरों को पीछे से बांधकर रखें, चिमनियों, फायर प्लेसिज को घर के अन्य सामान के साथ सुरक्षित करें व यह जांच लें कि ढलान स्थल तथा रुकाव करने वाली दीवारें टिकाऊ हैं। इनके साथ कुछ जरूरी वस्तुएं जैसे टार्च, मोमबत्तियां, माचिस, ट्रांजिस्टर, रेडियो, प्राथमिक उपचार की किट हमेशा तैयार रखें, खाद्य सामग्री व पीने के पानी का भंडार रखें तथा कांच की खिड़की और गिरने वाली सभी वस्तुओं से दूर रहें। भूकंप आने पर तुरंत खुले स्थान की ओर भागें, यदि न भाग सकें तो दरवाजे की चैखट के सहारे बीच में, पलंग, मेज के नीचे छिप जायें ताकि ऊपर से गिरने वाली वस्तु की चोट से बच सकें। यदि वाहन पर सवार हैं तो उसे सड़क किनारे खड़ाकर उससे तब तक दूर खड़े रहें जब तक कि आप आश्वस्त न हो जायंे कि अब खतरा टल गया है। भूकंप वाले क्षेत्र को देखने न जायें, कारण वहां ध्वस्त ढांचा कभी भी गिर सकता है और आप उसकी चपेट मे आ सकते हैं, घायल हो सकते हैं और दबकर मौत के मुंह में भी जा सकते हैं। इसमें दो राय नहीं कि भूकंप से हुए विध्वंस की भरपाई असंभव है।

भूकंप के बाद के हल्के-सामान्य झटके धीरे-धीरे खत्म हो जाते हैं लेकिन उसके बाद गैस के रिसाव होने, धमाके होने और भूजल के स्तर में बदलाव, सामान्य प्रक्रिया के तहत मलेरिया, अतिसार आदि अनेकों बीमारियों को जन्म देता है। उनका उपचार जरूरी होता है लेकिन अस्पताल इसके लिए तैयार नहीं होते। यह एक आम बात है। इसलिए स्वास्थ्य सम्बंधी एहतियात बरतना जरूरी होता है। पानी जब भी पियें, उबाल कर पियें, उसमें क्लोरीन की गोलियों का इस्तेमाल करें। समीप के हैंडपंप आदि जल स्रोतों को साफ रखें ताकि भूजल प्रदूषित न हो सके। बच्चों को रोग निरोधी टीके लगवायें व साफ शौचालयों का इस्तेमाल करें। इस बात का ध्यान रखें कि देश ही नहीं दुनियां में संयुक्त राष्ट्र के नियमों के मुताबिक बचाव नियमों का पालन नहीं हो पा रहा है और देशवासी मौत के मुहाने पर खड़े हैं। इसलिए उन्हें खुद कुछ करना होगा, सरकार के बूते कुछ नहीं होने वाला, तभी भूकंप के साये से कुछ हद तक खुद को बचा सकेंगे। स्थिति की भयावहता को सरकार खुद स्वीकार भी कर चुकी है। निष्कर्ष यह कि भूकंप से बचा जा सकता है लेकिन इसके लिए समाज,सरकार,वैज्ञानिक और आम जनता सबको प्रयास करने होंगे।

ज्ञानेन्द्र रावत वरिष्ठ पत्रकार एवं पर्यावरणविद्अ ध्यक्ष, राष्ट्र्ीय पर्यावरण सुरक्षा समिति,

Tags
Special Coverage News

Special Coverage News

    Next Story