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नेहरूवादी निकले नीति आयोग के प्रथम उपाध्यक्ष!

Special Coverage News
2 Aug 2017 6:42 AM GMT
नेहरूवादी निकले नीति आयोग के प्रथम उपाध्यक्ष!
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अरविंद पनगढ़िया ने उपाध्यक्ष पद से इस्तीफ़ा देकर नीति आयोग को अमान्य कर दिया
नीति आयोग के उपाध्यक्ष अरविंद पनगढ़िया ने इस्तीफ़ा दे दिया है। उन्होंने इस्तीफ़ा देने के जो कारण बताए हैं, उन्हें पढ़ कर लगा कि अरविंद जी को अपनी ही नीतियों में यक़ीन नहीं है जिसकी वकालत वे दूसरों के लिए करते हैं।
अरविंद जी ने कहा है कि चालीस साल के होते तो कहीं नौकरी मिल जाती लेकिन 65 साल की उम्र कोलंबिया यूनिवर्सिटी में जिस तरह की नौकरी मिल रही है वो उन्हें कहीं नहीं मिलेगी।
यह किस तरह की नौकरी है? ज़ाहिर है स्थायी है। उन्होंने कहा है कि कोलंबिया यूनिवर्सिटी में जब तक दिमाग़ और शरीर काम करता है तब तक नौकरी होती है। इसलिए जा रहे हैं। यानी तनख़्वाह तो अच्छी होगी ही, पेंशन के लिए भी टेंशन नहीं।
अब नौकरी में स्थायित्व तलाशने वाले अरविंद जी और उनकी संस्था की बनाई नीतियों को देखिये। सुधार के नाम पर कम कर्मचारी भर्ती करने, जल्दी रिटायर करने, पेंशन ख़त्म करने और आसानी से निकाल देने की नीतियाँ बनाते रहे हैं। यही लोग घूम-घूम कर, लिख-लिख कर इस व्यवस्था का प्रचार करते हैं और 65 साल की उम्र में भी अपने लिए स्थायित्व का जुगाड़ कर रहे होते हैं। मुझे तो लगा था कि इस राष्ट्रवादी आँधी में अरविंद पनगढ़िया दो रोटी कम खा लेंगे लेकिन राष्ट्र निर्माण में लगे प्रधानमंत्री मोदी को छोड़ कर नहीं जाएँगे। नीति आयोग के उपाध्यक्षरहते हुए कम से कम कोलंबिया यूनिवर्सिटी जैसी स्थायित्व वाले सिस्टम ही बनाने में लग जाते। उसी पर एक पेपर लिखते। भारत में आकर ये लाखों शिक्षकों से ठेके पर नौकरी करवाने की वकालत करते हैं और अपने लिए अमरीका में स्थाई नौकरी बचाने के लिए पत्राचार करते हैं ।
आप लोग ऐसे लोगों की नीतियों को बाज़ारवादी बताकर समर्थन में तीर तलवार निकाले रहिए, भाई साहब को नीति आयोग से भी अच्छा जुगाड़ मिल गया है।
एक निष्कर्ष और:
नेहरूवादी योजना आयोग को ख़त्म कर नीति आयोग बना। इसके प्रथम उपाध्यक्ष बने राष्ट्रवादी दक्षिणपंथी अर्थशास्त्री अरविंद पनगढ़िया। मगर अरविंद जी निकले भीतर से नेहरूवादी। सोशलिस्ट मानसिकता के तहत आजीवन नौकरी वाली जगह पर जा रहे हैं। बजाए अपनी योग्यता का बायोडेटा लेकर मार्केट में नौकरी खोजने के उन्होंने नौकरी में सुरक्षा को महत्व दिया है।
प्रधानमंत्री ने क्यों जाने दिया? क्या उन्हें भी अपने देश के सिस्टम पर भरोसा नहीं जिसके लिए अरविंद पनगढ़िया जैसे महान परंतु औसत अर्थशास्त्री को रोका जा सकता था। फिर वे किस दम पर लोगों से आह्वान करेंगे कि अपनी प्रतिभा लेकर भारत आइये। ब्रेन ड्रेन से देश को बचाइये।
अरविंद पनगढ़िया ने उपाध्यक्ष पद से इस्तीफ़ा देकर नीति आयोग को de legitimize कर दिया है। अमान्य कर दिया।
रवीश कुमार
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