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फेसबुक पर टिप्पणी पर जो सजा कोर्ट ने दी, सुनकर हो जायेंगे हैरान

फेसबुक पर टिप्पणी पर जो सजा कोर्ट ने दी, सुनकर हो जायेंगे हैरान
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पाकिस्तान के Anti-Terrorism Court ने फेसबुक पर, इस्लाम को लेकर विवादित टिप्पणी करने वाले एक व्यक्ति को मौत की सज़ा सुनाई है. जिस व्यक्ति को फांसी की सज़ा सुनाई गई है, उसका नाम है तैमूर रज़ा. 30 वर्ष के तैमूर, पाकिस्तान में अल्पसंख्यक शिया समुदाय से ताल्लुक रखते हैं. इस व्यक्ति पर आरोप है, कि इसने कथित रूप से सुन्नी समुदाय के गुरुओं और पैगंबर मोहम्मद को लेकर फेसबुक पर आपत्तिजनक टिप्पणी की थी.

पाकिस्तान में ये पहली बार हुआ है, जब Blasphemy यानी ईशनिंदा कानून के तहत, किसी व्यक्ति को सोशल मिडिया पर आपत्तिजनक पोस्ट लिखने की वजह से मौत की सज़ा सुनाई गई है. हालांकि, इस पूरे घटनाक्रम का एक दूसरा पहलू भी है. जिसपर हमारे देश के बुद्धिजीवियों को ध्यान देने की ज़रुरत है. पाकिस्तान में अक्सर ईशनिंदा कानून का अल्पसंख्यक आबादी के खिलाफ दुरुपयोग होता रहा है. कई ऐसे मामले भी देखने को मिले हैं, जहां भीड़ ने ही ईश-निंदा के आरोप में कई लोगों की पीट-पीटकर हत्या कर दी.

इसी वर्ष अप्रैल के महीने में पाकिस्तान के अब्दुल वली खान विश्वविद्यालय में एक छात्र के साथियों ने उसकी पीट-पीटकर हत्या कर दी थी. उस वक्त ये ख़बर आई थी, कि दो नौजवानों ने फ़ेसबुक पर कथित तौर पर इस्लाम के ख़िलाफ़ आपत्तिजनक टिप्पणियां पोस्ट की थीं. इनमें से एक छात्र तो बच गया, लेकिन मशाल खान नामक दूसरा छात्र भीड़ का शिकार हो गया. हमारे पास कुछ पुराने उदाहरण भी है. वर्ष 2010 में पाकिस्तान में एक चिकित्सक को सिर्फ इसलिए गिरफ़्तार कर लिया गया था, क्योंकि उसने एक ऐसे व्यक्ति के Business Card को ज़मीन पर फेंक दिया था. जिसका नाम पैगंबर मोहम्मद के नाम से मिलता था.

वर्ष 2011 में पाकिस्तान के पंजाब प्रांत के गवर्नर सलमान तासीर की उनके बॉडीगार्ड ने गोली मारकर हत्या कर दी थी. क्योंकि उन्होंने ईशनिंदा के खिलाफ बने क़ानून को काला कानून कहा था. उसी वर्ष शाहबाज़ भट्टी नामक एक मंत्री की भी हत्या कर दी गई थी, जो इस क़ानून के ख़िलाफ थे. इस कानून की जड़ें ब्रिटिश राज से जुड़ी हैं. तब अंग्रेज़, इस क़ानून को सिर्फ इसलिए लेकर आए थे, ताकि दो समुदायों के बीच किसी प्रकार की धार्मिक कट्टरता ना फैले. लेकिन, जब भारत और पाकिस्तान का बंटवारा हुआ, तब पाकिस्तान में इस क़ानून को और भी सख़्त बना दिया गया.

वर्ष 1986 में जब ज़िया उल हक पाकिस्तान के राष्ट्रपति थे. तब ये फैसला लिया गया, कि जो भी इस्लाम के ख़िलाफ आपत्तिजनक टिप्पणी करता है, उसे मौत की सज़ा सुनाई जाए. मौजूदा समय में पाकिस्तान के कट्टरपंथी संगठन, इस क़ानून का पक्ष लेते हैं. हालांकि कई बार इसका ग़लत इस्तेमाल करके, निर्दोष लोगों को फंसाने की साज़िश भी रची जाती है.
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