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चंदन श्रीवास्तव
हाईकोर्ट ने दयाशंकर सिंह की याचिका पर यूपी सरकार से पूछा है कि आपको दयाशंकर को गिरफ्तार करने की आवश्यकता क्यों है? ऐसी कौन सी पूछताछ आप करना चाहते हैं जो हिरासत में ही हो सकती है? दरअसल दयाशंकर पर लगी धाराएं ऐसी नहीं हैं जिसमें गिरफ्तारी की आवश्यकता हो।
लेकिन टीवी चैनलों ने खबर यह चलाई कि दयाशंकर को कोर्ट ने राहत देने से इंकार कर दिया है। शाम को एक टॉप वाले चैनल के पत्रकार ने फोन किया, इसी मामले के एक दूसरे ऑर्डर के बारे में समझने के लिए। तो मैने उनसे पूछा कि महाराज यह क्या खबर आप टीवी वाले चला रहे हो? उन्होंने कहा, ठीक तो है। राहत कहां दी? मैने कहा, पर राहत से इंकार भी तो नहीं किया। और फिर सरकार से जो यह पूछा है कि तुम लोग ये गिरफ्तारी के लिए क्यों इतना बौराए हो, देखा जाए तो यह दया के फेवर वाली बात है।
पत्रकार साहब ने कहा, अच्छा। लेकिन सतीश मिश्रा ने जो बाइट दी, वह हमने चला दिया। मैने कहा, लेकिन सतीश मिश्रा न सिर्फ बसपा नेता हैं बल्कि बसपा पक्ष के वकील भी हैं। सिर्फ उनके बताए को आप पूर्ण सत्य कैसे मान सकते हो?
अच्छा, इस पर तुर्रा ये कि बहन जी ने भी इसे ही सही मानकर ललकार लगा दी कि जल्दी पकड़ो दयवा को, भाजपा को हाईकोर्ट ने सीख दे दी।
आप समझिए, टीवी में ऐसे हमारे सामने खबरें परोसी जाती हैं। होता कुछ है बताया कुछ जाता है। हालांकि कल के अखबार में यह खबर सुधरी मिलेगी।
उधर नसीहत तो वाकई हाईकोर्ट ने बसपा नेताओं को दी है। एक पीआईएल को सुनवाई के लिए स्वीकार करते हुए, बसपा के प्रदर्शन में गाली गलौज पर कोर्ट ने पूरे आठ पेज बोलने के सलीके पर खर्च किए हैं। पैट्रिक डेलनी से लगाए कबीरदास तक को कोट करते हुए, न्यायालय ने मार्गदर्शन किया है। गाली-गलौज करने वाले नेताओं को इसे जरूर पढ़ना चाहिए।