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हार से घबराई भाजपा कैसे देगी इन तीन सवालों का जवाब?

Special Coverage News
12 Dec 2018 10:28 AM GMT
हार से घबराई भाजपा कैसे देगी इन तीन सवालों का जवाब?
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माजिद अली खां (राजनीतिक संपादक)

पांच विधानसभा चुनाव परिणाम आ चुके हैं, जिसमें तीन राज्यों राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में कांग्रेस ने वापसी की है जबकि तेलंगाना में टीआरएस ने बाज़ी मारी और मिज़ोरम में मिज़ो नेशनल फ्रंट की सरकार बनना तय है गया है। इन चुनावों के परिणाम में खास बात यह है कि केंद्र सरकार चला रही भाजपा सरकार काफी नुकसान उठाना पड़ा है। भाजपा के नुक़सान उठाने का जिम्मेदार कौन है इस पर चर्चा होनी चाहिए।

भाजपा की हार में विलन कौन

उत्तर भारत के तीन राज्यों में भाजपा की हार के लिए कौन जिम्मेदार है, क्या सीटिंग मुख्यमंत्री, या भाजपा का केंद्रीय नेतृत्व या दूसरे फैक्टर। इन तीनों बिंदुओं पर गौर किया जाए तो पता चलता है कि मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और रमन सिंह के खिलाफ बहुत ज्यादा नाराज़गी कभी राज्यों में दिखाई नहीं दी। हां राजस्थान में जरूर वसुंधरा राजे के बारे में नाराज़गी के स्वर जरूर दिखाई दे रहे थे। रमन सिंह और शिवराज सिंह चौहान अपनी सत्ता क्यों नहीं बचा पाए जबकि पिछले पंद्रह सालों से वह सत्ता बचाए हुए थे। छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश व राजस्थान में हुई हार में संघ परिवार का पूरा दखल रहा है। इन चुनावों को 2019 के संसदीय चुनावों का सेमीफाइनल माना जा रहा था। संघ परिवार ने नरेंद्र मोदी से पीछा छुड़ाने के लिए इन चुनावों में हार होने को जरूरी समझा। ऐन चुनाव प्रचार के समय राम मंदिर मुद्दा उछाल दिया और मंदिर निर्माण के लिए कानून बनाने का दबाव मोदी सरकार पर बनाने के लिए कोशिश शुरू हो गई। संघ परिवार के इस दबाव में भाजपा की केंद्र सरकार असहज महसूस कर रही थी और केंद्रीय मंत्री सुप्रीम कोर्ट के फैसले का इंतजार करने की बात कह रहे थे जिस पर सिर्फ यह मैसेज जनता में गया कि मोदी सरकार का हिंदुत्ववादी एजेंडा सिर्फ एक छलावा है और सिर्फ बेवकूफ बनाने वाली सरकार है। इस संदेश ने लोगों को भाजपा से दूर किया जिस पर लोगों ने कांग्रेस तरफ रुख किया। ये वह तीसरा फैक्टर है जिसने सबसे अधिक नुकसान भाजपा का किया।

इवीएम मशीन की भूमिका

इवीएम मशीन की चर्चा इस चुनाव परिणाम में बिल्कुल नहीं हो रही है। इवीएम मुद्दा तब उठता है जब गैर भाजपाई पार्टी हार जाती है तो क्या इस चुनाव में इवीएम मशीन बिल्कुल ठीक रही। जबकि बहुत सारी ख़बरें ऐसी भी आई कि जहां तहां इवीएम मशीनें बरामद होती रही। तो क्या भाजपा के हार जाने से इवीएम मशीन की बात नहीं हो पाएगी। बात अब भी होनी चाहिए। जिस प्रकार के परिणाम राजस्थान और मध्य प्रदेश से आ रहे हैं ऐसा लगता है कि इवीएम ने बिल्कुल अपना काम दिखाया है। वोटों का अंतर और सीटों का अंतर देखिए तो बिल्कुल ऐसा लगता है कि जैसे मामले इतने सैट हों कि हार तो हो लेकिन इज्जत के साथ हो। इससे सबसे बड़ा फायदा होगा कि संसदीय चुनाव में विपक्षी पार्टियां खासतौर से कांग्रेस इवीएम पर कोई सवाल नहीं उठा पाएगी। विपक्ष को चाहिए कि इवीएम पर अभी भी सवाल उठाने चाहिए तथा संसदीय चुनाव में इवीएम मशीन की जगह बैलेट पेपर से चुनाव कराने की मांग पूरे ज़ोर के साथ करनी चाहिए

हार को कैसे पचा पाएगी भाजपा

सबसे बड़ा और अहम सवाल यह है कि इस हार को भाजपा और मोदी सरकार कैसे पचा पाएगी। इस चुनावों को आने वाले लोकसभा चुनाव का सेमीफाइनल समझा जा रहा है तो इस हार का मतलब है कि संसदीय चुनाव में भी भाजपा को हारना पड़ेगा और मोदी सरकार किसी सूरत में हारना नहीं चाहेगी। तो चुनाव जीतने के लिए रास्ता क्या होगा। अगर विकास के मुद्दे पर चुनाव लड़ा जाए तो इस पर मोदी सरकार पहले ही घिरी हुई है और विकास के नाम पर जनता को ठगने का आरोप झेल रही है। इसके अलावा हिंदुत्व कार्ड पर चुनाव लड़ना भी बहुत रिस्की हो सकता है। इसकी वजह यह है कि देश में आर्थिक मंदी की वजह से पहले ही लोग परेशान हैं। क्या हिंदुत्व के लिए लोग उसी जोश और जज़बे से खड़े हो सकते हैं। लेकिन हिंदुत्व के अलावा और कोई रास्ता मोदी सरकार के पास है ही नहीं। इसके लिए मोदी सरकार आने वाले दिनों में हिंदू अतिवादी संगठनों से माहौल खराब कराने की कोशिश करे जिससे लोगों को काफी जानी व माली नुकसान होगा। सांप्रदायिक दंगे भी कराए जा सकते हैं। राम मंदिर निर्माण के लिए अध्यादेश लाना भी मोदी सरकार की मजबूरी बन सकता है। ऐसा होने से देश के संवैधानिक ढांचे पर चोट पहुंचेगी।



मुसलमानो की भूमिका

इन चुनावों में मुसलमानो की भूमिका क्या रही है इस पर ज्यादा बहस करनी ठीक नहीं। क्योंकि इस चुनाव में मुसलमान मुद्दा ही नहीं थे। दरअसल एक सच्चाई है कि छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश में चल रही भाजपा की सरकारों में पिछले पंद्रह सालों में मुसलमान समुदाय को बिल्कुल दिक्कत नहीं हुई। दंगे और हिंसा से बिल्कुल महफूज़ रहे। किसी भी तरह के सांप्रदायिक मामले में नहीं घिरे। लेकिन कांग्रेस की सरकारें बनने के बाद यह खतरा भी है कि कांग्रेस खुद को हिंदुओं का बड़ा मसीहा बनने के चक्कर में मुसलमानो की बलि देना न शुरू कर दे और इसके अलावा यह भी हो सकता है कि भाजपा अपने हिंदुत्व को धार देने के लिए कांग्रेस शासित राज्यों को न चुने और दंगों से या दूसरी घटनाओं से माहौल को खराब करे जिससे कांग्रेस के लिए असहज स्थिति न पैदा हो जाए। कांग्रेस के साथ सबसे बड़ी त्रासदी रही है कि वह मुस्लिम तुष्टिकरण के इल्ज़ाम से डरने लगती है जिसके बदले में वह मुसलमानो को आतंकवाद के झूठे मुकदमों तथा सांप्रदायिक दंगों का शिकार होने देती है। इससे उसे हिंदूवादी बनने में आसानी हो जाती है। नये राज्यों में सरकारें बनाने के बाद कांग्रेस के लिए सबसे बड़ी चुनौती होगी।


अब देखना यह है कि आने वाले वक्त में राजनीति क्या क्या करवटें लेती है इसका इंतजार करना होगा.

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