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मुख्यमंत्री पद के लिए भाई-भाई में दरार कितनी गंभीर?
महाराष्ट्र चुनाव के परिणाम आने के बाद वहां की राजनीति ने तूल पकड़ लिया है. एक साथ चुनाव लड़ने वाली भाजपा और शिवसेना सत्ता पर काबिज होने के लिए कुटनीति का सहारा लेने लगी हैं. यहां दोनों दलों की राजनीति शुरुआती दौर से साथ-साथ चलने की रही है, कभी किसी तरह की बातें उभर कर सामने आयीं तो इन दोनों दलों ने दूर होकर भी देख लिया है. इस बार फिर से सत्तारुढ़ तो होने के करीब हैं मगर सबसे बड़ी बात ये है कि मुख्यमंत्री की कुर्सी के लिए पेंच फंसी हुई है. इस तरह दोनों दलों के खींचतान में निर्दलीय विधायकों की चांदी हो गई है. दोनों तरफ से लुभावने वादे किए जाने की बातों से इंकार नहीं किया जा सकता है.
लेकिन सवाल ये उठता है कि क्या सिर्फ निर्दलीयों को मिलाकर सरकार बन जाएगी, क्या सरकार बनाने के बाद गठबंधन की तोहमत नहीं दी जाएगी. जैसे कई सवाल महाराष्ट्र की राजनीति की दशा दिशा कुछ अलग ही नजर आ रही है. अब ऐसी परिस्थति में ये भी माना जा रहा है कि सत्ता पाने के लिए एनसीपी के करीब भी हो सकती है भाजपा.
मुख्यमंत्री पद को लेकर भाजपा और शिवसेना के बीच खींचतान जारी है
एक तरफ शिवसेना चुनाव परिणाम आने के बाद से ही ढाई-ढाई साल के फॉर्मूले पर सरकार बनाने का वादा मांग रही है. वहीं दूसरी तरफ भाजपा, जो विधायकों के लिहाज से सबसे बड़ी पार्टी होने का हवाला देते हुए इस फॉर्मूले पर अपनी सहमति नहीं जता रही है. इसलिए अपनी कुर्सी बचाने के लिए दोनों ही दल विधायकों को अपने पक्ष में करने के लिए नूरा कुश्ती कर रहे हैं. हलांकि भाजपा के समर्थन में तीन निर्दलीय विधायकों गीता जैन, राजेंद्र राउत और रवि राणा ने घोषणा कर दी है. वैसे गीता जैन पहले भाजपा से टिकट की मांग कर रही थीं, इनकी जगह भाजपा ने नरेंद्र मेहता को उतारा था. गीता जैन टिकट नहीं दिए जाने के कारण निर्दलीय चुनाव लड़ी थीं. सफलता मिलने के बाद फिर से भाजपा को समर्थन देने के लिए देवेंद्र फडणवीस को आश्वस्त कर चुकी हैं.
भाजपा और शिवसेना के बीच समझौते को लेकर अभी कोई आधिकारिक बयान सामने नहीं आया है. शिवसेना नेता दिवाकर राओते के बाद मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी से मिल चुके हैं. मुख्यमंत्री पद को लेकर भाजपा और शिवसेना के बीच खींचतान जारी है. लेकिन किसी भी पक्ष से कोई भी बात सामने नहीं आ रही है. इस पूरे मसले पर गौर करें तो शिवसेना ने 50-50 के फॉर्मूले को प्रस्तुत कर पत्ते तो खोल दिए हैं, मगर भाजपा अभी भी दम साधे हुए है. शिवसेना को लिखित तौर पर मुख्यमंत्री पद के लिए उसे आश्वासन चाहिए. परंतु भाजपा की तरफ से इस पर कोई सूचना नहीं प्राप्त हुई है. खबर ये भी सुनने को मिल रही है कि शिवसेना आदित्य ठाकरे को मुख्यमंत्री के रूप में देखना चाहती है.
महाराष्ट्र में मुख्यमंत्री फडणवीस ने तो एक कार्यक्रम में इतना तक कह दिया कि राज्य में गठबंधन की एक स्थिर सरकार बनेगी. लेकिन कैसे बनेगी इसका अब तक खुलासा नहीं कर पाए हैं. उन्होंने ये भी कहा कि राज्य में हम गठबंधन में सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरे हैं. इसलिए आने वाले पांच साल हम राज्य में भाजपा के नेतृत्व वाली स्थिर सरकार देंगे. अब ऐसे में गौर करने वाली बात ये है कि महाराष्ट्र की 288 सदस्यीय विधानसभा के लिए हुए चुनाव में वर्ष 2014 पर नजर दौड़ाएं तो उस समय की तुलना में भाजपा को 17 सीटों का घाटा हुआ है. शिवसेना को जहां 2014 में 63 सीटें मिली थीं वहीं 2019 में 56 सीटों पर इसको सब्र करना पड़ा. इन सबसे इतर अगर बात करें एनसीपी की तो उसके पास भी 54 सीटे हैं. कहीं ऐसा न हो कि भाजपा की एनसीपी के साथ सांठ गांठ बढ़ रही हो. अगर ये दोनों साथ आ जाते हैं तो भी सरकार बनने में कोई परेशानी नहीं होगी. जबकि दूसरे एंगल से सोचें तो शिवसेना को भाजपा से अलग होकर एनसीपी, कांग्रेस को मिलाना होगा तब जाकर महाराष्ट्र में सरकार बना सकती है.
लेकिन सवाल ये उठता है कि क्या ये तीनों अगर मिले तो क्या ठाकरे के मुख्यमंत्री बनने पर सहमति जता देंगे. बड़ी पार्टी होने के नाते अगुवाई कर सकते हैं. राजनीतिक पंडितों की मानें तो महाराष्ट्र में सरकार अंततोगत्वा भाजपा-शिवसेना की ही बनेगी. क्योंकि इन दोनों का माइंडसेट भी एक है. अब आगे देखना दिलचस्प होगा कि इन दोनों दलों के बीच माथापच्ची पर विरामचिन्ह कब लगता है. और भाजपा-शिवसेना की सरकार यानि भाजपा के मुख्यमंत्री के नेतृत्व में सरकार कब बनती है.