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लोकसभा चुनाव के पहले चरण की कार्यवाही आज से शुरू हो गई सभी 91 लोकसभा सीटों पर मतदान के लिए पोलिंग पार्टियां आज रवाना कर दी गई. सवेरे 7:00 बजे से मतदान की प्रक्रिया आरंभ हो जाएगी जो शाम 5:00 बजे तक लगातार चलेगी. लेकिन आज सबसे बड़ा झटका प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को लगा जब सुप्रीम कोर्ट ने सरकार की दलील खारिज करते हुए राफेल डील की पुनर्विचार याचिका पर मंजूरी दे दी. इस केस में परिणाम चाहे कुछ भी लेकिन कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के हाथ एक बटेर जरूर लग गई है. जिस तरीके से कहावत है अंधे के हाथ बटेर लगना. ठीक उसी तरह लोकसभा 2019 के चुनाव में राहुल गांधी के हाथ यह वही बटेर होगी जो लोकसभा चुनाव 1989 में विश्वनाथ प्रताप के हाथ बोफोर्स तोप के रूप में लगी थी. जिस प्रकार वोफोर्स तोप के हमले में अब तक की सबसे ज्यादा सीटें हासिल कर बनी राजीव गांधी सरकार चरमरा कर चुनाव हार गई थी. जबकि राजीव गांधी के साथ देश का युवा खड़ा हुआ था आज फिर वही सिचुएशन बनती चली जा रही है. राफेल मुद्दा लोकसभा चुनाव से पहले एक बार फिर गर्म हो गया है.
जहां सुप्रीम कोर्ट की 3 सदस्सीय बेंच ने इस मामले पर सुनवाई की मंजूरी दे दी है उधर अमेठी में अपना परिचय फाइल करते समय राहुल का सीना चौड़ा हो गया. आज राहुल गांधी ने अमेठी लोकसभा से अपना पर्चा दाखिल कर दिया है जबकि केरल की बाढ़ लोकसभा सीट से पहले ही पर्चा दाखिल कर चुके हैं.
2014 के लोकसभा चुनाव में जिस तरह नरेंद्र मोदी का प्रचार धीरे-धीरे अपनी गति पकड़ता जा रहा था. ठीक उसी तरह इस बार का प्रचार धीमा पढ़ता भी नजर आ रहा है. सरकार ने अपने घोषणा पत्र में कई ऐसे मुद्दों का जिक्र किया है. जो पिछली बार भी इनके घोषणा पत्र के अहम अंगूठी जिन में राम मंदिर मुद्दा धारा 370 कश्मीरी पंडितों का विस्थापन युवाओं को रोजगार किसान की बदहाल हालत गन्ना किसानों का भुगतान समेत कई अन्य बातें भी ऐसी थी जो बीजेपी ने 5 साल में पूरी नहीं की लेकिन वही सब मुद्दे इस बार के घोषणा पत्र में स्थान पा गई है अब जनता 72000 की ओर भागेगा या मोदी की बातों का विश्वास करके और फिर वोट करेगा.
यह सवाल तो अभी गर्त में छिपा हुआ है. लेकिन एक बात बिल्कुल साफ है देश को एक साफ सुथरी सरकार की बहुत जरूरत है. जिस तरह युवा रोजगार की बात जो हो रहा है किसान अपने विकास की ओर देख रहा है सरकार ने चलते चलते अभी किसान को एक तोहफा देने का प्रयास किया है कितनों को मिल पाएगा और सरकार का यह कदम कितना कारगर साबित होगा इस पर भी अभी पर्दा पड़ा हुआ है.
हम आपको एक बात और बताएंगे कि जिस तरह 2004 में अटल बिहारी वाजपेई सरकार शाइनिंग इंडिया का नारा लेकर अपनी उपलब्धियां बता रही थी और जब चुनाव का मौका आया तो यह नारा उस चुनाव से गायब दिख रहा था. नरेंद्र मोदी का नारा अच्छे दिन का भी अपना स्थान खो चुका है. बाजपेई जी भी उस समय राष्ट्रवाद का नारा लेकर चुनाव में उतरे थे नरेंद्र मोदी भी राष्ट्रवाद का नारा लेकर अप चुनाव मैदान में कूद पड़े देखना यह होगा जनता को रोजगार चाहिए या राष्ट्रवाद चाहिए देश में ऐसा माहौल चाहिए जिसमें सभी लोग अपना जीवन यापन सुख पूर्वक कर सके या फिर हम इसी तरह आपसी भाईचारे को तोड़कर चुनाव लड़ते रहे जब लोकसभा चुनाव आता है. बड़े-बड़े घोषणा पत्र छापे जाते हैं लेकिन 5 साल के दौरान घोषणा पत्रों को कोई भी राजनीतिक पार्टी खोल कर पढ़ना भी मुनासिब नहीं समझती है वरना छात्र समय कुछ बातें लिखते समय भी हाथ कांपने चाहिए यह वादा तो हमने पिछली बार के घोषणापत्र में भी किया था.
लेकिन वोटर का हाथ ईवीएम का बटन दबाते समय कभी नहीं रुकता है और अगली 5 साल के लिए एक नई सरकार की नई उम्मीद के साथ एक नई योजना के साथ एक नई उमंग के साथ बना लेता है. सरकार 5 साल उसका दोहन करें या उसका विकास करें या उसका विनाश करें वह विकास की बात जोहता जोहता अगले चुनाव तक इंतजार करता है और फिर एक समय के बाद नए चुनाव की रणभेरी बज जाती है. फिर लग जाता है,किस पर लगेगी उसकी मोहर और चला जाता है मतदान केंद्र पर. वोट जरूर करें लेकिन सोच समझकर यह आपके अगले 5 साल फिर ना खराब हों.