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भाजपा की जीत में इन धुरंधरों का था हाथ, लेकिन मलाल नहीं पा सके मंत्रीमंडल में स्थान!
2019 के लोकसभा चुनाव में चेहरा भले मोदी का रहा हो और रणनीति अमित शाह की, मगर परदे के पीछे रहकर बीजेपी के राष्ट्रीय संगठन के कई महारथियों ने पार्टी को प्रचंड जीत दिलाने में अहम भूमिका निभाई. मगर इनमें से किसी को जीत के इनाम के तौर पर मोदी सरकार में शामिल होने का मौका नहीं मिला है. कुछ नेताओं को इसकी कसक है. हालांकि कोई कुछ बोलने को तैयार नहीं. सबका यही कहना है कि उन्हें संगठन के लिए काम करना अच्छा लगता है और मंत्री बनने की कोई महत्वाकांक्षा नहीं है.
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक यूं तो मोदी सरकार की मंत्रिपरिषद में एक रिटायर्ड ब्यूरोक्रेट, तीन पूर्व मुख्यमंत्री और तीन प्रदेश अध्यक्ष शामिल हैं. मगर विभिन्न राज्यों में बतौर प्रभारी लोकसभा चुनाव का संचालन करने वाले कई राष्ट्रीय पदाधिकारियों को मंत्रिपरिषद में जगह नहीं मिली है.
2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने अकेले दम पर पिछली बार की 282 की जगह 303 सीटें जीतीं. 20 राज्यों में शानदार प्रदर्शन के पीछे संगठन की ताकत को श्रेय दिया गया. संगठन मजबूत इसलिए हुआ, क्योंकि 2014 के बाद से बीजेपी के राष्ट्रीय उपाध्यक्षों, महासचिवों और राज्यों के प्रभारियों ने लगातार काम किया. पार्टी के प्रवक्ताओं ने भी मोदी को ब्रांड के रूप में स्थापित करने और बीजेपी की छवि चमकाने का काम किया. मगर अब कुछ बीजेपी के संगठन पदाधिकारी निराश हैं कि उन्हें अपनी मेहनत और पार्टी की जीत का इनाम नहीं मिला है.
बीजेपी के राष्ट्रीय उपाध्यक्षों की बात करें तो विनय सहस्त्रबुद्धे, प्रभात झा और ओपी माथुर राज्यसभा के सदस्य हैं. वहीं महासचिव भूपेंद्र यादव, सरोज पांडेय और अनिल जैन भी उच्च सदन के सदस्य हैं. जबकि मीडिया सेल हेड अनिल बलूनी और प्रवक्ता जीवीएल राव भी राज्यसभा सांसद हैं. इनमें से किसी के भी नाम का मंत्री पद के लिए विचार नहीं किया गया.
अमित शाह, रवि शंकर प्रसाद और स्मृति ईरानी के लोकसभा चुनाव जीतने पर राज्यसभा से इस्तीफा देने पर खाली होने वाली सीटों से एस जयशंकर और लोजपा मुखिया राम विलास पासवान को संसद भेजने की अटकलें लग रहीं. पार्टी महासचिव कैलाश विजयवर्गीय और अरुण सिंह ने क्रमशः पश्चिम बंगाल और ओडिशा जैसे उन राज्यों में पार्टी के लिए लोकसभा चुनाव में अच्छी संख्या में सीटें जोड़ीं, जहां जनाधार पहले काफी कम रहा. पश्चिम बंगाल में 42 में से 18 सीटें बीजेपी ने जीतीं, वहीं ओडिशा मे 21 में से आठ जीतीं. पश्चिम बंगाल के चुनाव में व्यस्तता के कारण विजयवर्गीय ने तो अपनी गृह क्षेत्र की इंदौर सीट से लोकसभा का चुनाव भी नहीं लड़ा. वहीं अरुण सिंह का नाम पिछले साल मार्च में राज्यसभा की खाली हुई 58 सीटों के दौरान उछला था.
वहीं एक और महासिव राम माधव ने बीजेपी को जम्मू-कश्मीर और पूर्वोत्तर में जनाधार बढ़ाने में मदद दी, जिससे पूर्वोत्तर के ज्यादातर राज्यों में बीजेपी की सरकार बनी. पी मुरलीधर राव कर्नाटक के इंचार्ज रहे. जहां पार्टी ने 28 में से 25 सीटें जीतीं. पार्टी महासचिव भूपेंद्र यादव बिहार और गुजरात के प्रभारी हैं. जहां पार्टी ने शानदार प्रदर्शन किया. मध्य प्रदेश में प्रभारी विनय सहस्त्रबुद्ध रहे, वहां बीजेपी ने 29 में 28 सीटें जीतीं. राष्ट्रीय महासचिव सरोज पांडेय महाराष्ट्र की प्रभारी रहीं, जहां बीजेपी-शिवसेना गठबंधन को 48 में से 41 सीटें मिलीं.
अनिल जैन छत्तीसगढ़ और हरियाणा के प्रभारी रहे, जहां दिसंबर में हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के हाथों सत्ता गंवाने वाली बीजेपी ने जबर्दस्त तरीके से 11 में से नौ सीटें जीतकर वापसी की. हरियाणा में बीजेपी ने क्लीन स्वीप किया राजस्थान में अविनाथ राय खन्ना प्रभारी रहे. बीजेपी ने 25 में से 24 सीटें जीतीं. वहीं श्याम जाजू के प्रभार वाले दि्ली और उत्तराखंड मे बीजेपी ने सभी सीटें जीतीं.
सिर्फ मणिपुर प्रभारी प्रह्लाद पटेल और आंध्र प्रदेश प्रभारी वी मुरलीधरन ही मंत्रिपरिषद में मौका पाने में सफल रहे. यहां तक कि उत्तर प्रदेश के प्रभारी रहे और पिछली सरकार में मंत्री रहे जेपी नड्डा का भी नाम इस बार मंत्रिपरिषद में नहीं रहा. हालांकि इनमें से लगभग सभी नेताओं का कहना है कि उन्हें मंत्री बनने का शौक नहीं है. वे केवल पार्टी के लिए काम करना चाहते हैं.