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सोनिया-राहुल उद्धव के शपथ ग्रहण में क्यों नहीं गए?

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29 Nov 2019 10:49 AM GMT
सोनिया-राहुल उद्धव के शपथ ग्रहण में क्यों नहीं गए?
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28 नवंबर को उद्धव ठाकरे जब एनसीपी और कांग्रेस के समर्थन से मुख्यमंत्री पद की शपथ ले रहे थे तो इस समारोह में कांग्रेस प्रमुख सोनिया गांधी और राहुल गांधी नहीं पहुंचे. सोनिया और राहुल के नहीं आने से सवाल उठने लगे कि क्या कांग्रेस शिव सेना को समर्थन देकर भी सामना करने से परहेज़ कर रही है.

बीजेपी प्रवक्ता जीवीएल नरसिम्हा राव ने ट्वीट कर कहा, ''क्या राहुल डरे हुए हैं कि उद्धव ठाकरे को गले लगाना गले से लटकने के बराबर है? शिव सेना सत्ता के लिए आवश्यक है लेकिन कांग्रेस-यूपीए के लिए अछूत. सल्तनत के ग़ुलाम के रूप में स्वीकार्य हैं पर साथी के रूप में नहीं. कुमारस्वामी का सम्मान, उद्धव का अपमान. यह बालासाहेब ठाकरे जी का अंतिम अपमान है!''

एक और ट्वीट में जीवीएल ने शिव सेना और कांग्रेस पर निशाना साधते हुए कहा, ''महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने वाले 'गोडसे भक्त' उद्धव ठाकरे को बधाई. आप और आपके विधायकों ने सल्तनत के प्रति वफ़ादारी दिखाई है. इस समर्पण को देखते हुए सामना का नाम सोनियानामा कर लेना चाहिए. आपके तीसरे दर्जे के अख़बार की बकवास संपादकीय वो बर्दाश्त नहीं कर पाएंगे.''

कांग्रेस और राहुल गांधी पर उद्धव ने कई आपत्तिजनक बयान दिए हैं. मिसाल के तौर पर-

राहुल गांधी बेवकूफ़ हैं. राहुल को काफ़ी वक़्त मिला लेकिन वो ख़ुद को साबित नहीं कर पाए.

मणिशंकर अय्यर दिखे तो मैं जूते मारूंगा.

आपके नेता बैंकॉक गए हैं इसलिए कांग्रेस नेता घर बैठे.

कांग्रेस के टिकट पर कोई भी चुनाव नहीं लड़ना चाहता है. राहुल के दावों पर सोनिया गांधी भी भरोसा नहीं करती हैं.

राहुल गांधी दिमाग़ी संतुलन खो चुके हैं.

28 नवंबर को उद्धव ठाकरे जब कांग्रेस के समर्थन से मुख्यमंत्री की शपथ लेने गए तो उन्हें पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह, कांग्रेस प्रमुख सोनिया गांधी और राहुल गांधी ने बधाई दी. राहुल गांधी को भी उद्धव ने शपथ ग्रहण समारोह में शामिल होने के लिए आमंत्रित किया था लेकिन वो नहीं आए.

राहुल ने उद्धव को भेजे पत्र में लिखा है, ''आपने मुझे आमंत्रित किया इसके लिए बहुत शुक्रिया. महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री बनने के लिए आपको बहुत बधाई देता हूं. मुझे खेद है कि मैं शपथ ग्रहण समारोह में शामिल नहीं हो पाया. बीजेपी लोकतंत्र को खोखला करने में लगी है ऐसे में यह साझी सरकार बनी है. मुझे उम्मीद है कि यह सरकार धर्मनिरपेक्षता, स्थिरता और ग़रीबों के हक़ में काम करेगी.''

सोनिया गांधी को भी उद्धव ने शपथ ग्रहण समारोह में शामिल होने के लिए आमंत्रित किया था लेकिन वो भी नहीं गईं. सोनिया ने भी नहीं आने के लिए खेद जताया और कहा कि शिव सेना, एनसीपी और कांग्रेस वैसी स्थिति में साथ आई हैं जब मुल्क बीजेपी के कारण ख़तरे में है.

सोनिया ने लिखा है, ''यह असाधारण स्थिति है जब हमें साथ आना पड़ा है. राजनीतिक माहौल ज़हरीला हो गया है. अर्थव्यवस्था चौपट हो रही है और खेती-किसानी संकट में है. शिव सेना, कांग्रेस और एनसीपी में न्यूनतम साझा कार्यक्रम पर सहमति बनी है. मैं इस चीज़ को लेकर आश्वस्त हूं कि तीनों पार्टियां इस पर मिलकर काम करेंगी.''

शिव सेना, एनसीपी और कांग्रेस गठबंधन की नई सरकार के न्यूनतम साझा कार्यक्रम में धर्मनिरपेक्ष शब्द को भी शामिल किया गया है. शिव सेना ने इसे कबूल भी कर लिया है.

दिलचस्प है कि साल 2015 में शिव सेना नेता और राज्यसभा सांसद संजय राउत ने संविधान से धर्मनिरेपक्ष और समाजवाद शब्द हटाने की मांग की थी.

शपथ लेने के बाद उद्धव ने कैबिनेट की बैठक की. बैठक के बाद वो मीडिया के सामने आए. प्रेस कॉन्फ़्रेंस के दौरान ही एक पत्रकार ने पूछा कि क्या शिव सेना अब धर्मनिरपेक्ष हो गई है? इस पर उद्धव थोड़े ग़ुस्से में आ गए और कहा कि संविधान में जो है सो है.

सोनिया गांधी के बयान से साफ़ है कि कांग्रेस शिव सेना के साथ मन से नहीं गई है बल्कि बीजेपी को सत्ता से बाहर रखने के लिए गई है. कांग्रेस के लिए बीजेपी सबसे बड़ी चुनौती है और शिव सेना की भी बीजेपी से दोस्ती दुश्मनी में बदल गई है. एनसीपी को भी महाराष्ट्र में चुनौती बीजेपी से ही मिल रही थी. मतलब तीनों पार्टियों की दुश्मन बीजेपी बन गई थी इसलिए विपरीत विचारधारा के बावजूद शिव सेना के साथ आने में इन्हें दिक़्क़त नहीं हुई.

उद्धव ठाकरे के बेटे आदित्य ठाकरे सोनिया और राहुल को आमंत्रण देने मुंबई से दिल्ली आए थे. इसके बावजूद सोनिया और राहुल नहीं आए. ऐसे में सवाल उठना लाज़िमी है कि इस गठबंधन में शिव सेना या कांग्रेस ख़ुद को कितना सहज पाएगी?

एक बात तो तय है कि कांग्रेस के साथ रहकर शिव सेना को हिन्दुत्व पर मद्धम पड़ना होगा. यहां झुकना शिव सेना को होगा क्योंकि सीएम की कुर्सी उसके पास है. ऐसे कई मौक़े आएंगे जब शिव सेना को हिन्दुत्व के सवाल पर असहज होने होंगे. 28 नवंबर को राहुल गांधी ने साध्वी प्रज्ञा और गोडसे को 'आतंकवादी' कहा लेकिन शिव सेना के लिए ऐसा कहना या इससे सहमत होना आसान नहीं होगा.

एनसीपी और कांग्रेस में विचार को लेकर कोई टकराव नहीं है. एनसीपी कांग्रेस से ही बाहर निकली है. अलग होने का आधार कोई वैचारिक नहीं था बल्कि महत्वाकांक्षा थी. शरद पवार की महत्वाकांक्षा भी अब ख़त्म हो चुकी है और बीजेपी की मज़बूती को देखते हुए ये ज़रूरी है कि दोनो साथ रहें.

महाराष्ट्र में बीजेपी के उभार के बाद से ही यह बात कही जा रही थी कि यहां के मराठा ख़ुद को उपेक्षित महसूस कर रहे हैं. शिव सेना को भी लगने लगा था कि हिन्दुत्व के मुद्दे पर बीजेपी साथ रहना उसके लिए नुकसानदेह साबित हो रहा है और क्षेत्रीय मुद्दे पीछे छूटते जा रहे हैं. महाराष्ट्र में शिव सेना के लिए मराठी अस्मिता की राजनीति अहम रही है लेकिन बीजेपी के साथ सत्ता में आने के बाद से ये मुद्दे अप्रासंगिक होते जा रहे थे.

सोनिया गांधी और कांग्रेस के लिए सबसे बड़ी चुनौती है कि वो बीजेपी के ख़िलाफ़ विपक्ष को एकजुट करें. जब राहुल गांधी के हाथ में कांग्रेस की कमान थी तब ऐसा नहीं हो पाया था. लोकसभा में बुरी तरह से हार के बाद राहुल गांधी ने इस्तीफ़ा दे दिया था. अब पार्टी की कमान सोनिया के पास है और महाराष्ट्र में बीजेपी को सत्ता से बाहर रखने में कामयाब रहीं. झारखंड में भी बीजेपी के ख़िलाफ़ कांग्रेस विपक्ष को एकजुट करने में कामयाब रही.

महाराष्ट्र के वरिष्ठ पत्रकार निखिल वाग्ले ने ट्वीट कर कहा है, ''सोनिया गांधी और मनमोहन सिंह ने उद्धव ठाकरे के शपथ ग्रहण समारोह में शामिल नहीं होकर एक मौक़ा खो दिया है. अगर दोनों शपथ ग्रहण समारोह में शरीक हुए होते तो एक संदेश जाता कि विपक्ष को एक मंच पर लाने के लिए कांग्रेस प्रतिबद्ध है.''

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