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राजस्थान में कांग्रेस की लड़ाई अब सडक पर, हो रही है कांग्रेस की जग हंसाई!
गांधीवादी माने जाने वाले राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत भले ही अपने पुत्र वैभव गहलोत को राजस्थान क्रिकेट एसोसिएशन (आरसीए) का अध्यक्ष बनवाने में सफल हो जाएं, लेकिन गहलोत को इसकी बड़ी राजनीतिक कीमत चुकानी पड़ रही है।
पहले कहा गया था कि आरसीए के चुनाव में सीएम के बेटे को चुनौती देने वाला कोई नहीं है, लेकिन बाद में कांग्रेस के ही दिग्गज नेता और प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष सचिन पायलट के समर्थक रामेश्वर डूडी ने आरसीए के अध्यक्ष पद पर दावा ठोक दिया। अब डूडी का आरोप है कि सीएम ने पुत्रमोह में सत्ता का दुरूपयोग कर उनका नामांकन खारिज करवा दिया। आरसीए में करीब तीस वोट हैं, इसमें से 13 वोट डूडी के साथ बतए जा रहे हैं।
यही वजह है कि डूडी गुट ने सभी पदों पर नामांकन दाखिल किया है। डूडी ने जोधपुर के रामप्रकाश चौधरी को सीएम के पुत्र के सामने खड़ा कर दिया है। सीएम गहलोत अपने पुत्र को तब आगे बढ़ा रहे हैं, जब हाल ही के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस सभी 25 सीटों पर हार गई है। तभी से प्रदेशाध्यक्ष और डिप्टी सीएम सचिन पायलट ने भी सरकार को लेकर तीखे तेवर अपना रखे हैं। क्रिकेट की पिच पर भी इस बात की चर्चा है कि रामेश्वर डूडी अपने अकेले दम पर सीएम को चुनौती नहीं दे सकते हैं। अब तो डूडी ने अशोक गहलोत को धृतराष्ट्र तक की उपाधि दे दी है। इसके बाद भी प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष सचिन पायलट चुप हैं।
सवाल उठता है कि डूडी की बगावत से क्या प्रदेश में कांग्रेस और सरकार की जगहंसाई नहीं हो रही? 2 अक्टूबर को गांधी जयंती पर जयपुर में आरसीए के कार्यालय के बाहर डूडी समर्थक कांग्रेसियों ने जिस तरह हंगामा किया उससे लड़ाई सड़कों पर आ गई। यदि डूडी को संरक्षण नहीं है तो फिर सचिन पायलट कांग्रेस की जगहंसाई क्यों करवा रहे हैं? यह माना कि डूडी की लड़ाई राजस्थान क्रिकेट एसोसिएशन में हैं, लेकिन जगहंसाई तो कांग्रेस की हो रही है। यदि डूडी कांग्रेस के नेता नहीं होते तो उनकी उम्मीदवारी का कोई महत्व नहीं था। पायलट की चुप्पी कांग्रेस की भावी राजनीति की ओर इशारा कर रही है।
नागौर के सांसद और आरएलपी के संयोजक हनुमान बेनीवाल पहले ही डूडी के समर्थन में आ चुके हैं। जब डूडी जैसा कद्दावर कांग्रेसी बगावत कर सकता है तो फिर अशोक गहलोत से नाराज चल रहे कांग्रेस संगठन के बड़े नेता बगावत क्यों नहीं कर सकते? गहलोत और पायलट माने या नहीं, लेकिन इन हालातों का असर खींवसर और मंडावा के उपचुनावों में भी पड़ेगा। सीएम गहलोत कह सकते हैं कि क्रिकेट की राजनीति से उनका कोई सरोकार नहीं है, लेकिन यदि वैभव गहलोत सीएम के पुत्र नहीं होते तो सीपी जोशी कभी भी अध्यक्ष का उम्मीदवार नहीं बनवाते। वैभव की सबसे बड़ी योग्यता यही है कि वे सीएम के पुत्र हैं। असल जिन्दगी में वैभव ने कभी क्रिकेट का बल्ला भी नहीं पकड़ा होगा। सीएम गहलोत की प्रतिष्ठा इसलिए भी दांव पर है कि वैभव गहलोत हाल ही में जोधपुर से लोकसभा का चुनाव हारे हैं। जबकि जोधपुर तो पिता-पुत्र का गृह जिला है। आरसीए के चुनाव चार अक्टूबर को होंगे।