जयपुर

सम्पर्क टूटा है,संकल्प नहीं.!

Special Coverage News
10 Sep 2019 8:07 AM GMT
सम्पर्क टूटा है,संकल्प नहीं.!
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खुर्शीद पठान द्वारा

21 नवम्बर,1963 को केरल में तिरुवनंतपुरम के करीब थंबा से भारत ने पहले राॅकेट के लाॅन्च के साथ अंतरिक्ष कार्यक्रम की शुरुआत की, जहां अब्दुल कलाम आजाद जैसे युवा वैज्ञानिक कार्य कर रहे थे। उस राॅकेट को लाॅन्च पैड तक साइकिल से पहुंचाया गया था। नारियल के पेड़ों के बीच स्टेशन का पहला लाॅन्च पैड था, कैथोलिक चर्च को वैज्ञानिकों का दफ्तर बनाया गया। मवेशियों के रहने की जगह को प्रयोगशाला बनाया गया, इसके बाद भारत ने दुसरा राॅकेट लाॅन्च किया जिसको लाॅन्च पैड तक बैलगाड़ी से ले जाया गया था। आगे चलकर अंतरिक्ष शोध के क्षेत्र में काम करने हेतु

15 अगस्त 1969 को डाॅ.विक्रम साराभाई ने इसरो की स्थापना की। भारत ने पहला एसएलवी-3 स्वदेशी सैटलाइट डाॅ.ए.पी.जे. अब्दुल कलाम आजाद की अध्यक्षता में लाॅन्च किया।

​चांद का पहला मिशन

इसरो ने 22 अक्टूबर, 2008 को चंद्रयान भेजा, इस मिशन का नाम चंद्रयान रखा गया था। इस दौरान चांद पर पानी की खोज हुई। इसकी साल 2009 में नासा ने भी पुष्टि की थी। चंद्रयान-2 भारत इतिहास रचने से महज़ दो क़दम दूर रह गया. अगर सब कुछ ठीक रहता तो भारत दुनिया का पहला ऐसा देश बन जाता जिसका अंतरिक्षयान चन्द्रमा की सतह के दक्षिण ध्रुव के क़रीब उतरता.

इससे पहले अमरीका, रूस और चीन ने चन्द्रमा की सतह पर सॉफ्ट लैन्डिंग करवाई थी लेकिन दक्षिण ध्रुव पर नहीं. कहा जा रहा है कि दक्षिण ध्रुव पर जाना बहुत जटिल था इसलिए भी भारत का मून मिशन चन्द्रमा की सतह से 2.1 किलोमीटर दूर रह गया.पिछले 40 सालों की गौरव गाथा है चंद्रयान,भारत के वैज्ञानिकों के अनथक श्रम व प्रयासों का उदाहरण है चंद्रयान। हो सकता है कि चक्रव्यूह का सातवाँ चरण भेदने में थोड़ा बिलम्ब हो जाए लेकिन 6 चरणों को भेदकर विश्व भर में अपना इतिहास गढ़ना ही किसी को 'अभिमन्यु' बनाता है।

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