जयपुर

कर्फ्यू आसमान में बैठे ईश्वर का आदेश है

Shiv Kumar Mishra
7 Jun 2020 3:45 AM GMT
कर्फ्यू आसमान में बैठे ईश्वर का आदेश है
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अन्यथा आकाश में बैठा भगवान आपका सबकुछ छीनकर तबाह और बर्बाद कर सकता है ।

महेश झालानी

जिस कर्फ्यू के नाम से लोग अक्सर खौफ खाते है, दरअसल वह ईश्वरीय आदेश है । जो कर्फ्यू की अवहेलना करेगा, ईश्वर उसके साथ बहुत अनिष्ट करता है । निश्चय ही ऐसे व्यक्ति या उसके परिजनों के साथ अप्रत्याशित दुर्घटना घटित हो सकती है । अतः हे ईश्वर की संतानों, आप पूरे मनोयोग से ईश्वरीय द्वारा दिये गए आदेश की पालना करो । अन्यथा आकाश में बैठा भगवान आपका सबकुछ छीनकर तबाह और बर्बाद कर सकता है ।

निश्चय ही आपने कर्फ्यू का नाम अवश्य सुना होगा । हो सकता है कि कर्फ्यू की यातनाओं को कभी झेला भी हो । अब तो कर्फ्यू बोलचाल का आम शब्द होगया है । देश मे कहीँ ना कहीँ कर्फ्यू से लोगो को आये दिन रूबरू होना पड़ता है । भारत मे कर्फ्यू को पोते और धारा 144 को दादा की संज्ञा दी जाए तो कतई अतिशयोक्ति नही होगी ।

आज मैं आपको कर्फ्यू दादा की उत्पत्ती की कहानी सुनाता हूँ । कर्फ्यू हिंदुस्तानी शब्द ना होकर विदेशों से आयातित है । फ्रेंच में कर्फ्यू का मतलब होता है आग को ढंकना । बाद में यह शब्द इंग्लैंड जा पहुंचा। यहां पर इसे क्यूबरफ्यू कहा गया। यही क्यूबरफ्यू आज कर्फ्यू के तौर पर दुनिया भर में जाना जाता है । कानून और व्यवस्था को बनाए रखने के लिए भारत की तरह अन्य देश भी इसको इस्तेमाल करते है ।

माना जाता है कि कर्फ्यू की शुरुआत 16वीं सदी में हुई थी । इंग्लैंड के राजा विलियम द कांगकरर ने रात आठ बजे से चर्च की घंटियां बजाने का आदेश दिया था । यानी कर्फ्यू ईश्वरवरीय आदेश की तरह होता है। आजकल सा‍माजिक सुरक्षा को बनाए रखने के लिए कर्फ्यू लगाया जाता है ।

दरअसल मध्यकालीन यूरोप में "कर्फ़्यू" एक प्रकार के नियंत्रण का साधन था जिसके द्वारा किसी निश्चित समय पर गिरजाघरों में घंटे बजाकर आग को बुझाया या दबा दिया जाता था । सायंकाल गिरजाघरों में घंटा बजाने की प्रथा अभी भी यूरोप के अनंक नगरों में चालू है। कर्फ़्यू का मूल उद्देश्य कदाचित् यूरोप जैसे शीतप्रधान महाद्वीप में अग्निकांडों को बचाना था जो असावधानीवश घरों में अग्नि को बिना बुझाए छोड़ देने के कारण घटित हो जाते थे।

एक धारणा यह भी है कि कर्फ़्यू मध्यकालीन यूरोप में सुरक्षा का साधन था। उस समय बड़े-बड़े भूस्वामी होते थे और प्रजा उनको कर देती थी। प्रजा की सुरक्षा करना भूस्वामी अपना नैतिक दायित्व समझते थे। परंतु सुरक्षा व्यवस्था करने के लिए उन्हें कोई वैधानिक प्राधिकार नहीं मिला था। इस कठिनाई को सुलझाने के लिए इन्होंने धर्म की आड़ ली ।प्रजा धर्मभीरु थी और धर्म को ही न्याय व्यवस्था समझती थी। भूस्वामियों ने प्रजा की सुरक्षा के लिए अंधविश्वास का पूर्ण लाभ उठाया ।

चूँकि सुरक्षा व्यवस्था विशेषकर रात्रि के लिए ही करनी थी और इस उद्देश्य से रात्रि में पूर्व निर्धारित समय पर गिरजाघरों में घंटे बजने लगते थे तथा लोग इसको ईश्वरीय आज्ञा समझकर उसकी अवहेलना करने से डरते थे । उनकी दृष्टि में यह पाप था। अत: निर्धारित समय से बहुत पहले ही वे लोग अपने घरों में वापस लौट आते थे और घंटा बजने पर घरों का प्रकाश बुझा देते तथा प्रात:काल पुन: घंटा बजने के उपरांत ही घरों से बाहर निकलते थे । यही घंटा कालांतर में कर्फ्यू बन गया ।

दरअसल कर्फ्यू का कोई कानूनी वजूद नही है । यह दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 144 का वृहद रूप है । कर्फ्यू सीधे लागू नही किया जा सकता है । कार्यपालक मजिस्ट्रेट, पुलिस कमिश्नर या सक्षम अधिकारी को पहले धारा 144 लगानी पड़ती है । स्थिति बेकाबू होने, आगजनी, तोड़फोड़, विध्वंश, हिंसक स्थिति की संभावना या रोकथाम के लिए कर्फ्यू लागू करना पड़ता है ।

कर्फ्यू निश्चित अवधि या निश्चित क्षेत्र के लिए लागू किया जाता है । कर्फ्यू के दौरान नागरिकों को घरों में कैद रहना पड़ता है । स्थिति गंभीर होने पर पैरा मिलिट्री या सेना को भी तलब किया जा सकता है । सेना या पुलिस को अपने बचाव या स्थिति पर नियंत्रण करने के लिए गोली चलाने का भी अधिकार हासिल होता है । जिस धारा 144 को हम लोग बहुत सामान्य दृष्टि से देखते है, उसके अंदर बहुत शक्तियां समाहित है ।

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