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राजस्थान कांग्रेस में संग्राम: अशोक गहलोत गुट और सचिन पायलट गुट आमने सामने, बाहरी विधायकों को लेकर सवाल?

Special Coverage News
5 Nov 2019 7:14 AM GMT
राजस्थान कांग्रेस में संग्राम: अशोक गहलोत गुट और सचिन पायलट गुट आमने सामने, बाहरी विधायकों को लेकर सवाल?
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राजस्थान में बहुजन समाज पार्टी (बसपा) छोड़कर कांग्रेस में का हाथ थामने वाले छह बागी विधायकों को लेकर कांग्रेस दो गुटों में बंट चुकी है. पार्टी में प्रो गहलोत गुट का मानना है कि इन नेताओं की वजह से पार्टी को मजबूती मिली और प्रदेश विधानसभा में कांग्रेस के नंबर बढ़े हैं. जिसकी वजह से सरकार में स्थिरता आई और इसीलिए इन विधायकों को मंत्री पद मिलना चाहिए.

बसपा से कांग्रेस में शामिल होने वाले विधायकों ने आजतक से खास बातचीत में कहा कि पद देना ना देना मुख्यमंत्री, प्रदेश प्रभारी के हाथ में है. उनका कहना है कि कांग्रेस में काम करने के लिए और अपने क्षेत्रों के विकास के लिए पार्टी में शामिल हुए हैं. लेकिन यह साफ है कि बसपा से आए विधायकों को लेकर कांग्रेस में गुटबाजी फिर से तेज हो गई है.

बसपा छोड़कर कांग्रेस में आए विधायक वाजिब अली ने कहा कि निकाय चुनाव सामने हैं. ऐसे में हमें मिलकर संगठन को मजबूत करके इन चुनावों का सामना करना है. आने वाले वक्त में जो क्षेत्र के विकास के कार्य हैं, वह आम जनता तक कैसे पहुंचे इन सब बातों पर विचार हुआ. हम लोग जैसे मिलकर पार्टी में शामिल हुए हैं, ऐसे ही आने वाले वक्त में सब मिलकर मजबूत कांग्रेस का साथ देंगे.

क्या चाहते हैं सचिन पायलट गुट के नेता?

दूसरी तरफ पार्टी अध्यक्ष और प्रदेश के उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट से नजदीकी रखने वाले नेताओं का मानना है कि पार्टी में पहले से काबिज नेताओं और लंबे समय से काम कर रहे विधायकों, कार्यकर्ताओं और नेताओं को प्राथमिकता मिलनी चाहिए. पायलट गुट की सोच है कि अगर गहलोत सरकार का मंत्रिमंडल का विस्तार होता है तो जो नेता पहले से कांग्रेस में काम करते आ रहे हैं, उनको तवज्जो दी जानी चाहिए. ऐसा नहीं होना चाहिए कि इनको नजरअंदाज कर बाहर से आए विधायकों को मंत्री पद या फिर अन्य बॉडीज में पद देकर पार्टी के पुराने कार्यकर्ताओं को नाराज करें.

पुराने कार्यकर्ताओं को मिले प्राथमिकता

सचिन पायलट जो प्रदेश के उपमुख्यमंत्री होने के साथ-साथ पार्टी के प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष भी हैं, पहले ही साफ तौर पर कह चुके हैं कि जो लोग पार्टी में शामिल हुए हैं वो बिना किसी इनाम की इच्छा से कांग्रेस पार्टी में आए हैं, अगर कोई विस्तार होती है, तो उसमें कांग्रेस के पुराने कार्यकर्ताओं और नेताओं को प्राथमिकता मिलनी चाहिए. यह विधायक निकाय चुनावों से पहले कांग्रेस के शीर्ष नेताओं द्वारा की जा रही बैठकों में भी शामिल हो रहे हैं. साथ ही बढ़-चढ़कर संगठन के लिए काम करने की बात भी कर रहे हैं. कहा जा रहा है कि पार्टी की ओर से इन नेताओं से कहा गया है कि निकाय चुनावों के लिए जमकर काम करें, उसके बाद उनके बारे में विचार किया जा सकता है.

बिना शर्त थामा कांग्रेस का हाथ

कांग्रेस में शामिल हुए जोगेंद्र सिंह अवाना ने कहा, जहां तक मंत्री पद का सवाल है, यह फैसला मुख्यमंत्री, प्रदेश प्रभारी और कांग्रेस अध्यक्ष का है. हम कांग्रेस पार्टी को मजबूती के साथ जिताने के लिए काम करेंगे. उन्होंने कहा कि हम बिना किसी शर्त के कांग्रेस में आए हैं. बता दें कि इस महीने होने वाले निकाय चुनावों को पिछले महीने हुए विधानसभा उपचुनावों के बाद राजस्थान की राजनीति के हिसाब से महत्वपूर्ण माना जा रहा है. माना जा रहा है कि पिछले महीने हुए विधानसभा उपचुनावों के नतीजों से कांग्रेस की उम्मीद निकाय चुनावों को लेकर काफी बढ़ी है.

गौरतलब है कि कांग्रेस प्रत्याशी ने मंडावा विधानसभा उपचुनाव में 30,000 से ज्यादा वोटों से जीत हासिल करके बीजेपी प्रत्याशी को हराया था. जबकि खींवसर के उपचुनाव में राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी के उम्मीदवार से कांग्रेस प्रत्याशी को करीबन 4500 वोटों से हार मिली थी. प्रदेश में 16 नवंबर को निकाय चुनाव होने हैं, जिनका नतीजा 19 नवंबर को आएगा.

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