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Ramadan 2019:एक नेकी के बदले 70 नेकिया मिलती है रमजान में, इबादत का महीना रमजान के पहला असरा पूरा
बाराबंकी
पवित्र माह रमजान का पहला असरा पूरा हो गया। ये असरा रहमत का होता है। इस दौरान हर तरफ रमजान की रहमते व् बरकते साफ़ तौर पर दिखाई देती है हर तरफ एक नूरानी माहौल नमाज रोजा कुरआन की तिलावत और अल्लाह के जिक्र में मसगूल मोमीनो की जमाते अल्लाह की रहमत की ख़ास गवाह बनती है। अब शुक्रवार (जुमा) से दूसरा असरा जो की मगफिरत का है शुरू हो रहा है। रमजान के पहले असरे के दौरान सहरी से लेकर इफ्तारी तक सुबह की नमाज से लेकर रात की तरावीह तक और कुरआन की तिलावत व् तस्बीह (जाप) और खाने पीने की सामग्री हर जगह रहमत ही रहमत नजर आती है। रमजान में सैतानो के कैद होने के साथ बुराई में भी जबरदस्त कमी अ जाती है। पहला असरा मुकम्मल होने के साथ ही रमजान की इबादतो में और तेजी अ गयी है । शुक्रवार से शुरू हो रहे मगफिरत (माफ़ी) के असरे में अलाह पाक ने अपने बन्दों से मगफिरत (माफी) का वादा किया है। इस दौरान दिनों में मोमिनो को ज्यादा से ज्यादा अल्लाह ताला से अपने गुनाहो की माफ़ी मंगनी चाहिए । ये असरा रोजा इफ्तार रोजा कुसाइ और कुरआन की नूरानी महफ़िलो का भी असरा है। इस दौरान मस्जिदों में नमाजे तरावीह के दौरान क़ुरआने पाक की तिलावत के दौर यानी (तरावीह) मुकम्मल होते है। इसके अलावा घरो में रोजा इफ्तार व् नए बच्चों का रोजादारो की सफ (लाइन) में सामिल करने यानी रोजा कुसाइ का मौसम अब शुरू हो जाएगा । 14 व् 15 रमजान को लोग बहुत ज्यादा तादाद में अपने मासूम बच्चों को रोजा रखवाते है । रमजान का पाक महीना मुसलमानो के लिए ख़ास मायने रखता है। इस माह में हैसियत के मुताबिक दान पूण्य (जकात फितरा) भी खूब बांटते है। माह रमजान की 16 तारिख को पैगम्बर हजरत मोहम्मद साहब की सरीके हयात (धर्म पत्नी) फातिमा की वालिद का देहांत हुआ था 15 रमजान को जनाब मोहम्मद साहब के बड़े नवासे हजरत इमाम हुसैन अलैहुसल्लाम का जन्म हुआ था । बताते है कि 19 रमजान को हजरत मोहम्मद साहब के दामाद हजरत अली साहब का उस वक्त शहीद (क़त्ल) कर दिया गया था जब वह रोजा रख कर ईराक के शहर कूफा की 1 मस्जिद में फजिर की नमाज अता कर रहे थे। इस दौरान अब्दुल रहमान इब्ने मलजिम में जहर लगी तलवार से हमला कर दिया था ।
रमजान शरीफ की आखिरी 10 दिनों में सबे कद्र 27 रमजान को कुरआन पाक नाजिल हुआ था इस लिए ये माह तारीखों का महीना भी माना जाता है ।
44 पार पहुचा पारा भी नही डिगा सका रोजेदारो की हिम्मत, लू के थपेड़ों और चिलचिलाती धूप हुई बेअसर
बाराबंकी
एक तरफ 44 डिग्री सेल्सियस का तपता गर्मी का पारा और लू के थपेड़े है। तो दूसरी तरफ मजबूत आस्था के साथ हिम्मत और हौसलो की ताकत है। रोजों की पाकीज़ा इबादत की तासीर में क्या बच्चे बूढ़े जवान बीमार सब डूबे है। "हिंदुस्तान" ने ऐसे लोगो से समझा कि आखिर वो कौन सी ताकत है जो ऐसे रोजेदार को ऊर्जा दे रही है। तो उनका कहना था कि इबादत हो या तपस्या, मन को इतना मजबूत कर देती है कि उसका शरीर पर असर कम हो जाता है।
बीमारी को आड़े नही आने दिया इबादत जारी
अनीश अफजाल की उम्र 60 साल है हार्ड जैसी घातक बीमार का इलाज चल रहा है। लेकिन इस्लाम के 5 फर्जों में से एक रोजा भी है को वह कभी नही छोड़ते । इनका मानना है कि मेडिकल साइंस भी कहती है कि संयमित दिनचर्या से स्फूर्ति मिलती है। पैंतालीस वर्ष तक तो शरीर में मौजूद पानी की मात्रा व अव्यय दिन भर ऊर्जावान रखता है। उससे ज्यादा उम्र के लोग आत्मबल व सकारात्मकता से दिन निकाल ले जाते हैं। बताया कि अल्लाह ने जिश्म में रूह बख्शी है। उसकी राह में मौत भी गवारा है। लेकिन रोजे छोड़ना मंजूर नही।
...ताकि हम नेक इंसान बन सके
मारिया 12 व फारिया 10 कहती है कि अम्मी ने कहा है कि बेटी रोजा रखोगी तो अल्लाह पाक खुश होंगे । और नेक इंसान बना देगे । जल्दी पढ़ लिख जाओगी और जिंदगी भर मुसीबते परेशानियां आपके करीब नही आएगी। बेटियों ने बताया कि अब्बू तुफैल ने बताया है कि इस उम्र में रोजे और नमाज की मदद डालो क्यों कि एक निश्चित उम्र में बंदों पर अल्लाह ने फर्ज करार दिए है । कहा है कि ईद में बड़ो से बढ़िया मनपसंद कपड़े और ईदी भी खूब मिलेगी ।
नियती और मजबूत इरादों से भीषण गर्मी पर भारी है इबादत
हाजी वैश उम्र के 70 साल के पड़ाव पर खड़े है कहते है कि जिंदगी में कभी रोजे नही छोड़े । बताया कि नियति और मजबूत इरादों से हर मंजिल पाई जा सकती है। कहा उन गरीबो से पूछो जो जिनका हर दिन रोजो में बीत जाता है। हमे तो अल्लाह पाक ने सब कुछ बख्शा है। रोजे रखने से गरीबो, मजलूमो की जिंदगी का अहसास होता है। बताया कि वह अपना जकात , फितरा निकाल कर गरीबो को तकसीम करते है। दिन भर गर्मी से बचाव का जतन करते हुए अपने रोजों को सफल बना लेते हैं। वैसे भी मन की शक्ति के आगे सारी बीमारियां बेअसर हो जाती है।
इबतदत की मदद में मशगूल नन्हा रोजेदार
तीन साल की फारिया भी अपना कामयाब रोजा पूरा किया तो घर मे सबकी लाडली बन गयी परिवार के सदस्यों ने रोजा रखा तो फारिया ने भी रोजा रखा। नन्ही बिटिया कुरान को माथे पर लगाकर खुदा की इबादत करती है। बढ़ो को देख कर नमाज अदा करने के तरीको निभाती है। इनके घर वालो ने बताया कि हम लोग जब सुबह सहरी करने को उठते है तो ये भी जाग जाती फिर खुद रोजा रखने की जिद करती है। मासूम की ख्वाहिशो को नजरअंदाज नही किया जाता । सायं कालीन उसे भूख प्यास परेशान जरूर करती है लेकिन हम लोग उसका धयान भटका कर कभी किताबो का सबक याद करने लगते कभी कहानी किस्सो में वक्त निकाल देते है।
रमजान की इबतात एक पाकीजा मौका है
व्यवसायी इस्तिखार अहमद कहते है कि इबादत से बढ़कर कुछ नहीं। शरीर अल्लाह ने दिया है तो वे ही ताकत देते हैं। बताया कि कई बार पानी का लेवल कम-अधिक हो जाता है, मगर जब तक शरीर रहेगा, साधना करते रहेंगे। फिर भले ही इबादत में यह जिंदगी ही क्यों न चली जाए। बताया रोज मर्रा की जिंदगी में काफी तनाव व्यस्तता रहती है लेकिन रमजान के पाकीजा माह का हमे सिद्दत से इंतिजार रहता है।
रोजों से नई ऊर्जा मिलती है । बताया, कि रोजों में दिनभर भूखे-प्यासे रहने से शरीर के अनावश्यक तत्व प्रभावहीन हो जाते हैं। शरीर का डाइजेशन अच्छा रहता है। भोजन का संयम हमें नई ऊर्जा देती है। मेडिकल साइंस भी मानता है कि संयम से स्फूर्ति और ताजगी मिलती है।