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नवरात्र के प्रथम दिन सृष्टि के रचियता ब्रह्मा जी ने सृष्टि की रचना की शुरुआत की

Special Coverage News
7 April 2019 6:09 AM GMT
नवरात्र के प्रथम दिन सृष्टि के रचियता ब्रह्मा जी ने सृष्टि की रचना की शुरुआत की
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चैत्रीय नवरात्रि के साथ नववर्ष नवसंवत्सर का शुभारंभ हो गया है और इस पावन पुनीत वेला पर हम अपने सभी सुधीजन पाठकों शुभचिंतकों को बधाई एवं शुभकामनाओं के साथ सभी के सुख समृद्धि एवं खुशहाली की कामना करते हैं। सनातनी हिन्दू संस्कृति के मुताबिक नवरात्र के प्रथम दिन इस सृष्टि के रचियता ब्रह्मा जी ने सृष्टि की रचना की शुरुआत की थी और नवरात्र के अंतिम चरण नवमी के दिन ही विष्णु अवतार भगवान राम का अपने चारों भाइयों के साथ अयोध्या जी में मानव रूप में अवतरण हुआ था।


चैत्रीय नवरात्रि के अंतिम दिन भगवान का जन्म तो शारदीय नवरात्रि के अंतिम दिन भगवान राम ने रावण का वध करने में सफलता प्राप्त की थी।चैत्रीय नवरात्रि के साथ नववर्ष एवं नव संवत्सर की शुरुआत के समय सम्पूर्ण वातावरण में खुशहाली रहती है और किसानों के घरों में अन्न एवं धन के आगमन का शुभारंभ हो जाता है। वृक्षों का पतझड़ी सूनापन समाप्त होकर वह नयी कपोलों एवं फल फूलों से शोभायमान होने जाते हैं।नवरात्रि की शुरुआत होते ही शुभ कार्यों की शुरुआत हो जाती है क्योंकि नवरात्र के नौ दिन आदिशक्ति जगत जननी के मुख्य नौ स्वरूपों के माने जाते हैं।नवरात्रि के प्रथम दिन को नववर्ष के रूप में मनाने की परम्परा आदिकाल से चली आ रही है जबकि जाड़े के माघ पूस महीने यानी पहली जनवरी को नववर्ष मनाने की शुरुआत अंग्रेजों के जमाने ईसाई संस्कृति में हुयी है।


जनवरी के महीने में जानलेवा कड़ाके की सर्दी पड़ती है और बूढ़ों बच्चों ही नहीं बल्कि आम लोगों को ठंड से जान बचाने में लाले पड़ जाते हैं।इतना ही नहीं लोग इस मनहूस जाड़े के मौसम से बेहाल रहने के साथ ही उनकी जेबें खाली रहती हैं एवं चेहरे मुरझाए रहते हैं और कोई मांगलिक कार्य नही होती हैं।एक समय था जबकि भारत अपनी संस्कृति के बल पर दुनिया का गुरु माना जाता था लेकिन दुख के साथ कहना पड़ रहा है कि हम खुद अपनी संस्कृति को भूलकर पश्चिमी संस्कृति को अपना कर चैत की जगह नवसंवत्सर की जगह जनवरी में नववर्ष मनाने एवं पैंट शूट स्कर्ट एवं जींस पहनने में गर्व महसूस करने लगे हैं।जहां पर अहिंसा परमो धर्मः एवं विश्व बंधुत्व का पाठ पढ़ाया जाता था वहाँ पर जाति धर्म सम्प्रदाय अलगाव वाद एवं आतंंकवाद की शिक्षा दी जाने लगी है।जहाँ पर राक्षसों प्रवृत्ति का सर्वनाश करने के ईश्वर की नारीशक्ति ने अपने विभिन्न स्वरुप धारण किये थे उसी धरती पर इस समय राक्षसी प्रवत्तियों का बोलबाला होता जा रहा है और गली गली आसुरी शक्तियों को राजनैतिक एवं शासन सत्ता का संरक्षण मिलने लगा है।


धर्म एवं राष्ट्र विरोधी ताकते एक सोची समझी रणनीति के चलते चंड मुंड जैसे आसुरी अत्याचार करने लगे हैं और बलात नारी शक्ति का चीरहरण ही नहीं बल्कि उनका शीलहरण होने लगा है।भगवान राम ने उस रावण को मारने के लिए मनुष्य रूप धारण किया था जिसने सीताजी का अपहरण करने के बाद कभी उनके शरीर में हाथ लगाने को कौन कहे अपने महल नहीं ले गया था।इतना ही उसने उन्हें आबादी के बाहर अपनी बाग में महिला बंदी रक्षकों के साथ रखा तथा कभी बिना अपनी पत्नी को साथ लिये उनसे मिलने नहीं गया था।इतना ही नहीं बल्कि उनसे कभी जोर जबरदस्ती नहीं की और अपने साथ शादी करने के लिए सोचने समझने का एक माह का समय दिया था।चंड मुंड के महाराजा महिषासुर ने भी जगत जननी से पहले विनम्र प्रणय निवेदन किया था और निवेदन ठुकराने पर जोर जबरदस्ती की शुरुआत की थी।आजकल जिस तरह से नारी शक्ति का अपमान किया जा रहा है उसे देखते हुए हम भगवान राम एवं जगत जननी से पुनः अवतरित होकर इनके विनाश करने की कामना करते हैं।

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