धर्म-कर्म

महाशिवरात्रि और शिवमहिमा पर विशेष

Special Coverage News
4 March 2019 2:35 AM GMT
महाशिवरात्रि और शिवमहिमा पर विशेष
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आज चहुंओर सभी दिशाओं में देवाधिदेव महादेव अजर अमर शिवशंकर के बम बम भोलेनाथ हर हर महादेव एवं ऊँ नमः शिवाय के गगनभेदी जयकारों से सारा वातावरण गुंजायमान हो रहा है।चाहै भगवान शिव के प्रादुर्भाव वाले शिवधाम हो चाहे गाँव गली मुहल्ले के शिव मंदिर हो या फिर चाहे खेत नदी खलिहान चौबारे हो हर जगह गौरीशंकर पार्वतीशंकर के जलकारे तथा गुणगान हो रहे हैं।देश के कोने कोने से शिवभक्त काँवड़िये भगवान सदाशिव का अभिषेक करने के लिए गंगाजल लेकर सैकड़ों कोस पैदल चलकर शिवधाम पहुंच चुके है।


इतना ही तमाम भक्त साइकिल मोटरसाइकिल से गंगाजल लेकर विभिन्न शिवलिंगों पर पहुंच चुके है और यह सिलसिला पूरे दिन चलता रहैगा क्योंकि आज महाशिवरात्रि का पावन यहापर्व है।इस पावन पुनीत मौकै पर हम अपने सभी सुधीजन पाठकों शुभचिंतकों को इस महापर्व की शुभकामनाएं देते हुए आप सभी के उज्जवल मंगलमय भविष्य की कामना करते है। वैसे तो भगवान भोलेनाथ हमेशा अपने भक्तों पर अपनी दया दृष्टि बरसाते रहते हैं और कभी अपने भक्तों को कष्ट नहीं देते हैं यही कारण है कि भगवान भोलेनाथ को औढरदानी वरदानी कहा जाता है। भगवान भोलेनाथ खुद भले ही हिमालय पर रहते हो लेकिन वह अपने भक्तों को कभी भी बिना भवन के नहीं रखते हैं और उनका भंडार भरते रहते हैं। भगवान शिव के बारे में कहा जाता है कि उनका स्वभाव क्षणे रुष्टा क्षणे तुष्टा वाला है और जरा सी आराधना से यह खुश होकर क्षण भर में बड़े से बड़े द्रोही भक्त को भी माफ कर देते हैं।रावण इसका प्रत्यक्ष प्रमाण है जो उनकी अर्द्धांगिनी जगत जननी का हरण करने कैलाश पर्वत पर पहुंच गया था और भगवान भोलेनाथ ने कैलाश पर्वत को अपने पैर के अगूंठे से दबाकर उसै मरणासन्न बना दिया था लेकिन उसकी क्षणिक आराधना से खुश होकर उसे चन्द्रहास वरदान में दे दिया था।


इसीलिए भगवान सदाशिव को सकल समाज के लोग अपना आराध्य मानते हैं और वह अपने भक्तों में कभी भेदभाव नहीं करते हैं। महाशिवरात्रि के दिन भगवान भोलेनाथ के जलाभिषेक एवं फूल बेलपत्र आदि चढ़ाने का विशेष महत्व माना गया है और कहा गया है कि इस अवसर पर अगर महापापी भूल से भी उनकी शिवलिंग पर बेलपत्र आदि चढ़ा देता है वह उसके सारे पापो को भुलाकरलललललँ उसका कल्याण कर देते हैं। महाशिवरात्रि का पर्व मनाने के पीछे अलग अलग कथाएं प्रचलित है और माना जाता है कि माता सती द्वारा भगवान राम पर संदेह व्यक्त करते हुए माता सीता का स्वरूप धारण करने के बाद अपने पिता दक्ष के यहां यज्ञ में अपने शरीर को भस्म कर के हिमवान के के घर पार्वती के रूप में अवतरित हुई थी और पुनः भगवान शिव की अर्धांगिनी आज के ही दिन बनी थी। भगवान भोलेनाथ का माता पार्वती के साथ विवाह आज ही के दिन महाशिवरात्रि के अवसर पर हुआ था और तभी से उनकी शादी का यह पावन दिन महाशिवरात्रि के रूप में मनाया जाता है।

महाशिवरात्रि के दिन भगवान भोलेनाथ का जलाभिषेक सुबह शाम दोपहर ही नहीं बल्कि रात चारो पहर में किया जाता है। महाशिवरात्रि के पर्व पर भगवान भोलेनाथ और माता पार्वती अपने भक्तों पर विशेष कृपा दृष्टि करती हैं और जो भी उन्हें दिल से याद करता है उसे वह मालामाल कर उनकी दैविक देहिक भौतिक सारी समस्याओं एवं दुखों का निवारण करके उसके सारे संताप समाप्त कर देते हैं। आज के दिन भगवान भोलेनाथ को खुश करने के लिए लोग भांग, बेर, बर्रे का फूलफल, जौ की बाली, गन्ने का रस एवं टुकड़े इत्यादि उनकी शिवलिंग पर अर्पित करते हैं। महाशिवरात्रि के दिन इन वस्तुओं का एक विशेष महत्व माना गया है और जो व्यक्ति कभी भी भगवान भोलेनाथ की भक्ति नहीं करता है लेकिन शिवरात्रि के दिन उनके शिवलिंग की पूजा-अर्चना कर देता है वह उसका कल्याण कर उसे अपनी भक्ति प्रदान कर देते हैं। महाशिवरात्रि के अवसर पर भगवान भोलेनाथ का ऊँ नमः शिवाय अखंड पाठ विशेष महत्त्व रखता है क्योंकि भगवान गौरी शंकर इस मांगलिक अवसर पर रात दिन विचरण करते रहते हैं और हमेशा प्रसन्नचित रहते हैं।

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