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कल बन रहा है नागपंचमी का दुर्लभ संयोग, जानिए नागपंचमी का महत्व और पूजा की विधि

Sujeet Kumar Gupta
4 Aug 2019 11:29 AM GMT
कल बन रहा है नागपंचमी का दुर्लभ संयोग, जानिए नागपंचमी का महत्व और पूजा की विधि
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दक्षिण अफ्रीका में कई जातियों में नाग कुलदेवता के रूप में पूजा जाता है। ऐसा समझा जाता है कि कुल की रक्षा का भार सर्पदेव पर है।

नाग पंचमी हिन्दुओं का एक प्रमुख त्योहार है। हिन्दू पंचांग के अनुसार सावन माह की शुक्ल पक्ष के पंचमी को नाग पंचमी के रूप में मनाया जाता है। इस दिन नाग देवता या सर्प की पूजा की जाती है और उन्हें दूध से स्नान कराया जाता है। लेकिन कहीं-कहीं दूध पिलाने की परम्परा चल पड़ी है। इस बार नाग देवता की पूजा को समर्पित त्योहार नाग पंचमी पांच अगस्त को सोमवार के दिन पड़ रही है। मान्यता है कि नाग पंचमी के साथ सोमवार के दुर्लभ संयोग पर पर्व का महत्व कई गुणा बढ़ जाता है। ज्योतिष के अनुसार कालसर्प दोष निवारण और पितृ दोष की मुक्ति के लिए यह श्रेष्ठ दिन है।

नाग पंचमी के दिन नाग देवता की पूजन-अर्चना की जाती है। इस त्योहार को मनाने के पीछे पर्यावरणीय तर्क यह भी दिया जाता है कि भारत कृषि प्रधान देश है, और चूहे वगैरह से खेती में बहुत नुकसान होता है। नाग चूहों का सफाया करके फसलों की सुरक्षा कर प्रकृति का संतुलन कायम करते हैं। ऐसे में नागों को संरक्षण याद दिलाने के लिए भी संभवतया यह पर्व मनाया जाता है ।

जानिए नागपंचमी का महत्व और पूजा की विधि:-

पौराणिक महत्ता:- शेषनाग के फन पर पृथ्वी टिकी है। भगवान विष्णु क्षीरसागर में शेषनाग की शैय्या पर सोते हैं। शिवजी के गले में सर्पों का हार है। कृष्ण जन्म पर नाग की सहायता से ही वासुदेवजी ने यमुना पार की थी। यहां तक कि समुद्र-मंथन के समय देवताओं की मदद भी वासुकी नाग ने ही की थी। लिहाजा नाग देवता के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने का दिन है- नागपंचमी। वर्षा ऋतु में वर्षा का जल धीरे-धीरे धरती में समाकर सांपों के बिलों में भर जाता है। इसलिए श्रावण मास में सांप सुरक्षित स्थान की खोज में अपने बिल से बाहर निकलते हैं। संभवतः उस समय उनकी रक्षा करने और सर्पभय व सर्पविष से मुक्ति पाने के लिए भारतीय संस्कृति में इस दिन नाग के पूजन की परंपरा शुरू हुई।

ऐसे मनाते हैं नागपंचमी:-

नागपंचमी के दिन कुछ लोग उपवास रखते हैं। नागपूजन के लिए दरवाजे के दोनों ओर गोबर या गेरुआ या ऐपन (पिसे हुए चावल व हल्दी का गीला लेप) से नाग बनाया जाता है। पटरे या जमीन को गोबर से लीपकर, उस पर सांप का चित्र बना के पूजा की जाती है। गंध, पुष्प, कच्चा दूध, खीर, भीगे चने, लावा आदि से नागपूजा होती है। जहां सांप की बाबी दिखे, वहां कच्चा दूध और लावा चढ़ाया जाता है। इस दिन सर्पदर्शन बहुत शुभ माना जाता है। नागपूजन करते समय इन 12 प्रसिद्ध नागों के नाम लिये जाते हैं- धृतराष्ट्र, कर्कोटक, अश्वतर, शंखपाल, पद्म, कम्बल, अनंत, शेष, वासुकी, पिंगल, तक्षक और कालिय। साथ ही इनसे अपने परिवार की रक्षा के लिए प्रार्थना की जाती है। इस दिन सूर्यास्त के बाद जमीन खोदने की मनाही होती है।

इस दिन क्या करें:-

इस दिन नाग देवता पर या मंदिर में सर्प की मूर्तियों पर दूध चढ़ाने की परंपरा है। सुगंधित फूल और चंदन से पूजा करनी चाहिए। कई जगहों पर नागपंचमी से एक दिन पहले ही भोग और पकवान बना लिया जाता है और दूसरे दिन इसे बासी खाया जाता है। कहा गया है कि ॐ कुरुकुल्ये हुं फट् स्वाहा का जाप करने से सर्प दोष दूर होता है।

नागपंचमी के दिन ये काम ना करें:-

इस दिन नाग को मारना नहीं चाहिए। साथ ही नागों को दूध पिलाने का कार्य भी नहीं करना चाहिए। दरअसल, दूध पिलाना नागों की मृत्यु का कारण बनता है। ऐसे में नागपंचमी के दिन नागों को दूध पिलाना अपने हाथों से अपने देवता की जान लेने के समान है। इसलिए ऐसा करने से बचना चाहिए।

दक्षिण अफ्रीका में नागपूजा का महत्व:-

नागपूजा या सर्पपूजा किसी न किसी रूप में विश्व में सब जगह की जाती है। दक्षिण अफ्रीका में कई जातियों में नाग कुलदेवता के रूप में पूजा जाता है। ऐसा समझा जाता है कि कुल की रक्षा का भार सर्पदेव पर है। कई जातियों ने नाग को अपना धर्मचिह्न स्वीकार किया है। ऐसा भी मान्यता है कि पूर्वज सर्प के रूप में अवतरित होते हैं। शिव की आराधना भी नागपंचमी के पूजन से जुड़ी है। पशुओं के पालनहार होने की वजह से शिव की पूजा पशुपतिनाथ के रूप में भी की जाती है। शिव की आराधना करने वालों को पशुओं के साथ सहृदयता का बर्ताव करना जरूरी है।

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