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उत्तर भारत का एकमात्र ऐसा मंदिर, जहां होती है दशानन 'रावण' की पूजा-अर्चना, ये है वजह
नई दिल्ली : बुराई पर अच्छाई की जीत का पर्व दशहरा पूरे देश में शनिवार को हर्षोल्लास के साथ मनाया जा रहा है। मान्यता है कि नवरात्र के दसवें दिन भगवान राम ने रावण का वध किया था, इसलिए इस विजयदशमी मनाई जाती है। और इसके ठीक 20 दिन बाद भगवान राम अयोध्या लौटे थे तब दीवाली मनाई गई थी।
आज के दिन भगवान श्रीराम की पूजा और आराधना हो रही है, वहीं कानपुर में एक ऐसा मंदिर भी है जहां लोग दशानन रावण की पूजा करते हैं। जी हां, आम भारतीयों के मन में वैसे तो रावण एक खलनायक की तरह हैं, लेकिन कानपुर के शिवाला इलाके में स्थित देश के एकलौते दशानन मंदिर में शनिवार सुबह से ही लोग रावण की पूजा अर्चना करने के लिए उमड़ रहे हैं।
दशानन मंदिर में शक्ति के प्रतीक के रूप में रावण की पूजा होती है और श्रद्धालु तेल के दिए जलाकर मन्नतें मांगते हैं। यह मंदिर साल में एक बार विजयादशमी के दिन ही खुलता है और लोग सुबह-सुबह यहां रावण की विधिवत पूजा करते हैं। दशहरा पर बुराई के प्रतीक को जलाने की तैयारियों की धूम के बीच यह एक दिलचस्प तथ्य है।
परंपरा के अनुसार आज सुबह आठ बजे मंदिर के कपाट खोले गए और रावण की प्रतिमा का साज श्रृंगार किया गया। इसके बाद आरती हुई। रावण की आरती घी के दीपक से नहीं बल्कि सरसों के तेल के दीपक जलाते है। और आज शाम मंदिर के दरवाजे एक साल के लिए बंद कर दिए जाएंगे। पूरे उत्तर भारत में सम्भवत: यही एकमात्र ऐसा मंदिर है जहां रावण की पूजा होती है।
एक मान्यता ये भी है कि, जब रावण ने नौ गृह को अपने कब्जे में किया था, तब शनि ने रावण को सभी ग्रहों को छोड़ने की बात कही थी। तब गुस्से में रावण ने शनि को भी उलटा लटका दिया था। जिसके बाद उनके क्रोध को देखते हुए शनि ने कहा था कि जो भी मनुष्य आपकी पूजा पूरे विधिविधान से करने के साथ सरसों के तेल में दीपक जलाकर आरती करेगा, उनपर शनि का कभी प्रभाव नहीं होगा।
रावण के इस मंदिर के संयोजक के मुताबिक कैलाश मंदिर परिसर में मौजूद विभिन्न मंदिरों में शिव मंदिर के पास ही रावण का मंदिर है। इसका निर्माण 120 साल पहले महाराज गुरू प्रसाद शुक्ल ने कराया था। मान्यता हैं कि रावण प्रकांड पंडित होने के साथ-साथ भगवान शिव का परम भक्त था। इसलिये शक्ति के प्रहरी के रूप में यहां कैलाश मंदिर परिसर में रावण का मंदिर बनाया गया।