नई दिल्ली
एक ऐसा प्रयोग जिसने सत्ता में बैठे पार्टियों में बौखलाहट ला दी है। एक ऐसा विचार जिसने विचलित कर दिया है भ्रस्ट नेताओं और अफ़सरों को।
स्वराज अभियान की लोक उम्मीदवार चयन प्रक्रिया का असर देखिये।
20 अप्रैल को उम्मीदवारों के बीच खुली बहस होती है। 21 अप्रैल को भी होती है खुली बहस, जनता के मुद्दों पर, जनता की आँखों के सामने। लेकिन जैसे ही इस प्रयोग का असर दिखना शुरू होता है। जैसे ही बीजेपी, कॉंग्रेस और आम आदमी पार्टी से जुड़े लोग भी हमारे लोक-उम्मीदवार चयन प्रक्रिया में रजिस्टर करने लगते हैं, खुली बहसों में हिस्सा लेने लगते हैं, तो सत्ता में बैठी पार्टियां घबरा जाती हैं। और 21 अप्रैल की बहस को पुलिस अस्म्बैधानिक तरीके से रोक देती है, हमारे बैनर्स हटवा देती है, साउण्ड और लाइट्स ऑफ करवा देती है।
बाद में हमें पता चलता है कि दिल्ली पुलिस को नहीं बल्कि केशवपुरम के एसएचओ को आपत्ति थी, व्यक्तिगत आपत्ति! ये वही एसएचओ है जिसने स्वराज अभियान के तीन वॉलंटियर्स को लोकल विधायक के साथ मिलकर इल्लीगली डिटेन कर लिया था, जब अरविन्द केजरीवाल जी उसी इलाके में "रंगारंग कार्यक्रम" करने गए थे। डिटेन किये गए हमारे तीन वॉलंटियर्स वही जो 2-3 अप्रैल की रात को स्वराज अभियान के पोस्टर्स बैनर्स फाड़े जाने और आम आदमी पार्टी के गुंडों द्वारा धमकी दिए जाने की शिकायत करने गए थे।
तो ये खेल चल रहा है दोस्तों! आम आदमी पार्टी और बीजेपी के रोज़ के झगड़े और नाटक सिर्फ टीवी के लिए है, अख़बारों के लिए है। लेकिन जब आम लोगों को परेशान करने की बात आये, मिल बाँट कर पैसे खाने की बात आये और आम आदमी की आवाज़ दबाने की बात आये तो आप विधायकों और लोकल एसएचओ से ज़्यादा मजबूत सेटिंग किसी में भी नहीं है।
योगेन्द्र यादव की वाल से