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जौनपुर में दरोगा के तीन बेटों की मौत, तीन सगे भाइयों के एक साथ बाप ने दी मुखाग्नि तो रो पड़े सभी
गाजीपुर के केराकत थाना क्षेत्र के मई गांव आसपास के इलाके में तीन सगे भाइयों की मौत ने लोगों को दहला कर रख दिया. जब तीनों सगे भाइयों की लाशें एक साथ उठी तो मौके पर मौजूद लोगों की आंखों से आंसुओं की धारा बह निकल. फिलहाल किसी तरह से मृतकों के पिता ने कलेजे पर पत्थर रखकर मुखाग्नि तो दी लेकिन इस नजारे को देखकर एक बार फिर से लोग करुण क्रंदन करने लगे और जनसमूह गमगीन हो गया.
केराकत कोतवाली क्षेत्र के मई गांव का माहौल तो शुक्रवार की शाम उसी समय से गमगीन हो गया था, जब तीन सगे भाइयों की हादसे में मौत की मनहूस खबर आई थी, लेकिन शनिवार की सुबह जब तीनों की एक साथ शव यात्रा निकली तो मजबूत से मजबूत कलेजे वालों के भी आंखों से आंसू टपकने लगे थे, गांव के अधिकतर घरों में चूल्हे नहीं जले थे, मई गांव के सतुआ पुरवा निवासी बाबूलाल फायर बिग्रेड अकबरपुर में दरोगा के पद पर तैनात हैं. उनकी आठ संतानों में 4 पुत्र व चार पुत्रियां है. इनमें सबसे बड़े बेटे राजेंद्र उम्र 35 वर्ष ,तीसरे नंबर के बेटे मुकेश उम्र 24 वर्ष, सबसे छोटे बेटे आशीष उम्र 17 वर्ष की हादसे में मौत हो गई. दूसरे नंबर के पुत्र राकेश उम्र 28 वर्ष शेष बचे हैं. राजेंद्र की शादी हो चुकी थी. अन्य अभी पढ़ाई कर रहे हैं.
जबकि पुत्रियों में गोरी और अनीता की शादी हो चुकी है. जबकि चंचल रागिनी के हाथ पीले होने बाकी हैं. सुबह पोस्टमार्टम के बाद तीनों भाइयों की लाश जब घर आई तो मा इरामा देवी दहाड़े मार-मार कर रोते हुए बार-बार बेसुध हो रही थी. चारों बहनें भाइयों के शव से लिपटकर बिलक बिलक कर रो रही थी. जिन्हें देखकर हर किसी का कलेजा फट रहा था.
गोमती नदी के किनारे एक साथ जली तीन सगे भाइयों की चिता
आशीष को हाई स्कूल की परीक्षा दिलाने बाइक से राजेंद्र प्रसाद व मुकेश लेकर गाजीपुर जा रहे थे. चंदवक गाजीपुर रोड पर पत्रा ही बाजार में पेट्रोल पंप के पास बेकाबू स्कॉर्पियो ने तीनों को रौंद दिया. राजेंद्र और आशीष ने तो मौके पर ही दम तोड़ दिया था जबकि बुरी तरह से घायल मुकेश ने प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र की बारीबरी से रेफर किए जाने पर बीएचयू ट्रामा सेंटर पहुंचने से पहले दम तोड़ दिया. बेटों की मौत की मनहूस खबर मिलने पर रात में ही बाबूलाल अकबरपुर से गाजीपुर आ गए थे. लेकिन आंखों से आंसुओं का सैलाब थमने का नाम नहीं ले रहा था. बिलख रहे स्वजनों को ढांढस बनाने में सगे संबंधी भी आंखों से आंसू नहीं रोक पा रहे थे. गांव के पड़ोसी रो-रोकर बेहाल हो रहे थे क्योंकि बाबूलाल गांव के हर अच्छे बुरे काम में सबका साथ देते थे. गांव में ही गोमती नदी के किनारे घाट पर एक साथ तीनों भाइयों की चिता लगाई गई, लेकिन बाबूलाल ने जब तीनों जवान बेटे के शव को मुखाग्नि दी तो शमशान पर मौजूद हर किसी का कलेजा फट गया था और सब फफक फफक कर रो रहे थे. हालांकि बाबूलाल का अब सब कुछ लुट चुका था और चार बेटों में अब सिर्फ सामने एक बेटा दिख रहा था जबकि 3 चिता में समा चुके थे.