कासगंज

प्रकृति की अनदेखी का परिणाम है पर्यावरण विनाश आज जरूरत है समाज को प्रकृति से जोड़ने की - ज्ञानेन्द्र रावत

Special Coverage News
7 Sep 2019 5:08 AM GMT
प्रकृति की अनदेखी का परिणाम है पर्यावरण विनाश आज जरूरत है समाज को प्रकृति से जोड़ने की - ज्ञानेन्द्र रावत
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कासगंज। गत दिवस कासगंज के स्थानीय सूरज प्रसाद डागा सरस्वती विद्यामंदिर कालेज में समाज को वृक्षों से जोड़ो अभियान के तहत रायुश के तत्वावधान में एक सेमिनार का आयोजन किया गया। इस दौरान कालेज के सभागार में सेमिनार में मौजूद सैकड़ों छात्रों ने अतिथियों, प्राचार्य, अपने गुरूजनों सहित पर्यावरण रक्षा, अधिकाधिक संख्या में वृक्ष लगाने, उनका पोषण करने और जल संरक्षण का संकल्प लिया गया।

इस अवसर पर छात्रों को संबोधित करते हुए अपने प्रमुख संबोधन में वरिष्ठ पत्रकार, राष्ट्रीय पर्यावरण सुरक्षा समिति के अध्यक्ष पर्यावरणविद ज्ञानेन्द्र रावत ने कहा कि आज प्रकृति की अनदेखी, प्राकृतिक संसाधनों के अतिदोहन, असंतुलित विकास और हमारी स्वार्थपरक सोच के चलते धरती का असंतुलन एक खतरनाक मोड़ पर आ पहुंचा है। इसका दुष्परिणाम प्रकृति प्रदत्त संसाधनों पर अत्याधिक दबाव और जीव -जंतुओं-वनस्पतियों की हजारों हजार प्रजातियों की विलुप्ति के रूप में हमारे सामने आया है। इससे जैव विविधता पर संकट मंडराने लगा है। इस युग में जिसमें आप और हम सब जी रहे हैं, जिसे मानव निर्मित कहें या एन्थरोपोसीन के नाम से जानें, में धरती पर हुए किसी बदलाव को देख पाना असंभव नहीं है। वह बदलाव भीषण जलसंकट, प्रदूषण की अधिकता, वह चाहे जल का हो, वायु का हो, मृदा का हो, हमारी मां के रूप में पूजे जाने वाली नदियों के अस्तित्व के संकट का हो, के रूप में हमारे सामने है। संसाधनों की दैनंदिन होती अपर्याप्तता और भयावह होते जा रहे प्रदूषण ने समस्या को और गहराने का काम किया है। इसका असर हमारे सामाजिक ढांचे और रहन-सहन पर पड़े बिना नहीं रहा। बढ़ते शहरीकरण और बेतहाशा बढ़ती आबादी का दुष्परिणाम यह हुआ कि दुनिया में लागोस, साओपाउलो, टोक्यो और दिल्ली जैसे अनेक महानगर बनेंगे। जाहिर है इसका असर धरती और पर्यावरण पर पड़ेगा ही। सही मायने में यह तथाकथित

विकास का दुष्परिणाम है जिसके पीछे आज इंसान अंधाधुंध भागे चला जा रहा है। इसे जानने -समझने और सतत प्रयासों से कम करने की बेहद जरूरत है। जलवायु परिवर्तन ने इसमें अहम भूमिका निबाही है। यह समूची दुनिया के लिए भीषण खतरा है। इसलिए इसे केवल रस्म अदायगी के तौर पर नहीं लेना चाहिए। आज हम सबका दायित्व बनता है कि इस भीषण संकट के बारे में सोचें और इससे निजात पाने के उपयोग पर अमल करने का संकल्प लें।




सबसे बड़ा सवाल जल संकट का है। दुख की बात है कि जहां नदियों का जाल बिछा हो, हर साल चार हजार अरब घन मीटर वर्षा होती हो, वहां पानी का अकाल क्यों है। कारण स्पष्ट है कि हम वर्षा जल को संचय करने में नाकाम रहे हैं और पुण्य सलिला नदियों को इतना प्रदूषित कर दिया है कि उनका जल पीने की बात तो दीगर है, आचमन लायक तक नहीं है। वह पुण्य नहीं मौत का सबब बन गया है। फिर इस संकट में पानी की बेतहाशा बर्बादी की भी अहम भूमिका है। इसलिए समय की मांग है कि हम जीवन के आधार पानी का महत्व समझें, वर्षाजल का संचय करें, दैनंदिन उपयोग में पानी की बर्बादी न करें, वृक्ष लगायें, उनका पोषण करें, देखभाल करें।यही नहीं इस हेतु दूसरों को प्रेरित भी करें। समाज को इनका महत्व बतायें। तभी हम हरित संपदा और जीवन के लिए अतिआवश्यक जल को बचाकर पर्यावरण व मानव जीवन की रक्षा कर सकेंगे, अन्यथा आने वाली पीढ़ियां हमें माफ नहीं करेंगी। आरंभ में

कार्यक्रम के संयोजक रायुश प्रमुख समाजसेवी प्रदीप रघुनंदन ने कहा कि अब सोचने का समय नहीं है, करने का है। अब समय नहीं है और न ही आरोप-प्रत्यारोप में समय बरबाद करना है। हमें जीवन में पानी और वृक्षों के महत्व को समझना होगा। समाज को वृक्षों से जोड़ना होगा। इसलिए हमें ज्यादा से ज्यादा पेड़ लगाना होगा। उनका संरक्षण-पोषण भी हमारा दायित्व होगा। यह सही है कि यदि वृक्ष रहेंगे, पानी रहेगा तो हम रहेंगे और तभी हरियाली बची रह पायेगी। यदि हम ऐसा करने में कामयाब रहे तो निश्चित है पर्यावरण की रक्षा कर सकेंगे । प्रधानाचार्य श्री भूपेन्दर सिंह ने कहा कि हमारे कंधों पर पर्यावरण की रक्षा का दायित्व है। वृक्षारोपण अभियान में हमारी बढ़-चढ़ कर भागीदारी और लगाये वृक्षों का रखरखाव समय की आवश्यकता है। ऐसा कर हम पर्यावरण संरक्षण हेतु अपना महत्वपूर्ण योगदान दे मानव जीवन की रक्षा की दिशा में महती भूमिका का निर्वहन करने में सफल रहे, तो राष्ट्र निर्माण और प्राणी मात्र की रक्षा की कड़ी में यह बहुत बड़ी उपलब्धि होगी। आज के आयोजन में इतनी बड़ी संख्या में छात्रों की शिक्षकों की सहभागिता उनके पर्यावरण प्रेम का परिचायक है। सेमिनार में पर्यावरणविद श्री ज्ञानेन्द्र रावत जी व श्री प्रदीप रघुनंदन जी की उपस्थिति और संबोधन में पर्यावरण के विभिन्न पक्षों का सिलसिलेवार तथ्यपरक वर्णन से छात्रों के ज्ञानार्जन में हुयी वृद्धि हेतु मैं कालेज, प्रबंधन व अपने सभी सहयोगियों की ओर से उनका हार्दिक आभार व्यक्त करता हूं और आशा करता हूं कि भविष्य में भी इसी भांति वह समय समय पर छात्रों का ज्ञान वर्धन करते रहेंगे। अंत में कालेज की ओर से ज्ञानेन्द्र रावत व रघुनंदन को स्मृति चिन्ह प्रदान कर सम्मानित किया गया।सेमिनार के अंत में संचालक हृदयेश द्विवेदी ने सभी उपस्थित जनों,शिक्षकों,समाजसेवियों का सेमिनार की सफलता हेतु उनके सहयोग हेतु आभार व्यक्त किया। इस अवसर पर नगर के समाजसेवी, गणमान्य नागरिकों के अलावा विजय पाल, सूर्यवीर सिंह, योगेश कुमार, सतीश वर्मा, कवेश गुप्ता, सतीश सारस्वत, दयाशंकर,महीपाल,दिनेश कुमार, हरस्वरूप सिंह, शशांक वर्मा, अशोक कुमार, राकेश कुमार व विजय प्रकाश सिंह की उपस्थिति विशेष रूप से उल्लेखनीय थी।

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