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24 सालों से अपने ही बसपा विधायकों से 'धोखा' खा रही है मायावती
लखनऊ. राजस्थान (Rajasthan) में बसपा (BSP) के सभी 6 विधायक हाथी का साथ छोड़कर कांग्रेस (Congress) का हाथ थाम लिया है. हालांकि मायावती (Mayawati) ने बसपा विधायकों के टूटने की भड़ास कांग्रेस पर निकालते हुए उसे धोखेबाज पार्टी करार दिया है. लेकिन बड़ा सवाल यह है कि आखिर बसपा के विधायक पार्टी और पार्टी नेतृत्व पर 'विश्वास' क्यों नहीं कर पा रहे. दरअसल यह सवाल इसलिए भी खड़ा हो रहा है क्योंकि ऐसा पहली बार नहीं हुआ है. 24 साल पहले कांशीराम (Kanshiram) के बाद मायवती ने जब बसपा की बागडोर संभाली तभी से यह सिलसिला जारी है.
2008 में भी राजस्थान बसपा विधायक टूटे
उत्तर प्रदेश के बाहर के राज्यों में बसपा के विधायक पार्टी में ज्यादा दिन नहीं टिक पाते. हरियाणा में भी बसपा विधायक ने बीजेपी का दमन थाम लिया था. इससे पहले 2008 में भी राजस्थान में बसपा विधायकों ने कांग्रेस ज्वाइन कर ली थी. उस वक्त भी सूबे के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ही थे. अब एक बार फिर सभी बसपा विधायकों ने मायावती को झटका दिया है. बता दें बसपा विधायकों के टूटने का सिलसिला 1995 में ही शुरू हुआ था. तब राज बहादुर समेत अन्य विधायकों ने मायावती के नेतृत्व को स्वीकारने से मना कर दिया था.
टूटने के कई कारण
राजनीतिक जानकारों के मुताबिक यूपी से बाहर अन्य राज्यों में बसपा विधायकों के टूटने के कई कारण हैं. इसकी पहली वजह यह है कि सभी राज्यों में चुनाव लड़ने के बावजूद पार्टी सत्ता में नहीं आ पाती. कुछ प्रत्याशी जीतते हैं तो वह उनकी अपनी छवि होती है. इसके अलावा चुनाव में ज्यादा पैसा खर्च कर सिर्फ विपक्ष में बैठने उनके मुश्किल होता है. यही वजह है कि वे पार्टी छोड़कर सत्ता पक्ष के साथ चले जाते हैं.
कांशीराम तक नेताओं की निष्ठा पार्टी के प्रति रही
वरिष्ठ पत्रकार राजेंद्र कुमार कहते हैं कि बसपा एक राष्ट्रीय पार्टी हैं. लेकिन यूपी छोड़कर सभी राज्यों में उसका संगठन नहीं है. मायावती का भी मूल चरित्र पैसा लो टिकट दो. ऐसे में जो राष्ट्रीय पार्टी होने के नाते टिकट चाहते हैं वे पैसा देकर टिकट तो ले लेते हैं और जितने के बाद उनका भरोसा पार्टी के प्रति नहीं होता. लाजमी है उनका रुझान सत्ता पक्ष की तरफ रहता है और वे छोड़कर चले जाते हैं. राजेंद्र कुमार कहते हैं इसके साथ ही पार्टी विधायकों की निष्ठा दलित उत्थान की तरफ भी नहीं होती. इसकी वजह ये है कि कांशीराम जब तक जीवित रहे तब तक पार्टी उनके विचार के साथ थी. लेकिन मायावती ने कांशीराम के विचारों को तो आगे बढ़ाया लेकिन कभी भी जमीन पर उतरकर दलितों के लिए संघर्ष नहीं किया. वह सिर्फ कांशीराम के मूवमेंट का लाभ लेती रही. इतना ही नहीं मायावती खुद जब गठबंधन करके तोड़ देती हैं तो उनके पार्टी के विधायक क्यों नहीं टूट सकते.
यूपी में भी समय-समय पर टूटे हैं
राजेंद्र कुमार बताते हैं कि 1995 में भी जब मायावती ने मुलायम सरकार से समर्थन वापस लिया था तो उस वक्त भी कांशीराम इस फैसले से खुश नहीं थे. यही वजह थी कि 6 विधायक उस वक्त टूट गए थे और मायावती के नेतृत्व को स्वीकार को इनकार कर दिया था. इसके अलावा कल्याण सिंह के समय भी बसपा के दो विधायक टूट गए थे जिसकी वजह से उनकी सरकार बाख गई थी. इसके बाद 2003 में भी बसपा के 15 से अधिक विधायक मुलायम एक साथ चले गए थे.