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- क्यों होते है अवसाद का...
हरिश्याम बाजपेयी
यूपी पुलिस के जवान बेहद तनाव से गुजर रहे हैं। अधिक वर्कलोड के कारण वह इस कदर अवसाद का शिकार है कि ड्यूटी के आगे उन्हें चिकित्सीय परामर्श तक का समय नही है। ऐसे में इन जवानों से अंजाने में कई बड़ी गलतियां भी हो जाती हैं। फलस्वरूप नागरिकों में पुलिस के प्रति नकारात्मक सोंच पनपने लगती है। पर क्या ये जो हो रहा है वह सही है? क्या सरकार को इस समस्या का सीघ्र निराकरण नही करना चाहिए। यूपी में कई हजार पुलिसकर्मियों के पद खाली हैं। औसतन 02 हजार लोगों की सुरक्षा एक कांस्टेबल के जिम्मे है।
अव्यवस्थित जीवनशैली के कारण पुलिसकर्मी डिप्रेशन का शिकार हो रहे हैं। जिसके कारण वह खुद सुसाइड के साथ ही गुस्से में अमलोगों के साथ गलत व्यवहार करते हैं। तमाम शोध और मनोवैज्ञानिकों साफ कर चुके हैं कि पुलिस समेत समस्त सुरक्षा बल सबसे अधिक तनाव से गुजर रहे हैं।
दिन-रात ड्यूटी के कारण पुलिसकर्मी चिड़चिड़ा रहने लगते है। बात-बात पर गुस्सा आता है। काम के बोझ के कारण ही उनके शरीर में मेलाटोनिन हार्मोस असंतुलित हो जाता है। शरीर की बायोलॉजिकल क्लॉक की क्रिया गड़बड़ा जाती है। नशा करने वाले पुलिसकर्मी कई बार अपने अफसर या किसी अन्य पर हमला कर देते हैं। वह इंपलशिव डिसऑर्डर के शिकार होते हैं। ऐसे में उनकी शिकायत रहती है कि ड्यूटी की कोई समय सीमा निश्चित नही है।
काम करते करते डिप्रेशन बढ़ जाता है उसके बाद शीर्ष अधिकारियों के निर्देश और ज्यादा मानसिक तनाव पैदा करते हैं। न तो अपने अधिकारों की आवाज उठा सकते हैं और न ही उच्च अधिकारियों के निर्देश को नजरअंदाज कर सकते हैं। किसी ने अगर इस अव्यवस्था का विरोध भी किया तो उसे लाइन हाजिर या फिर संस्पेंशन की कार्यवाही के दौर से गुजरना पड़ता है। विगत 03 वर्षों से पुलिस के अधिकारियों व कर्मचारियों में खुदकुशी की घटनाएं बढ़ी हैं, ऐसे में सरकार को इस समस्या के निराकरण का सकारात्मक समाधान निकालने की जरूरत है।