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तीन तलाक, धारा 370 और राम मंदिर पर खामोश मुस्लिम ने क्यों दे दिया मोदी अमित शाह को बड़ा मौका !
एक मान्यता है कि चाहे जितना बलशाली शत्रु हो मगर उसे अपने ही चुने मैदान में लड़ने के लिए मजबूर कर देने से उस शत्रु को बहुत ही आसानी से धूल चटाई जा सकती है। मगर नागरिकता के नए कानून पर देशभर में हिंसक / अहिंसक आंदोलनों की झड़ी लगा कर खुश हो रहे विपक्ष को शायद इस मान्यता की जानकारी कभी किसी ने दी नहीं इसलिए हर बार की तरह मुद्दा एक बार फिर हिन्दू- मुसलमान बना देने के लिए वह खुदबखुद मोदी-शाह की जोड़ी के जाल में आ फंसा। जबकि कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों को मजबूर करके मुद्दा हिन्दू-मुसलमान या राष्ट्रवाद पर ले आने की ऐन यही रणनीति मोदी-शाह की जोड़ी देश में हुए साल 2014 के चुनावों से ही लगातार अपनाती आई है। फिर भी मजे की बात देखिए कि हर बार विपक्ष वही करता भी है, जिसे करने के लिये उसे मोदी-शाह की जोड़ी मजबूर करती आई है।
इसी तरह तो अपने ही चुनावी मुद्दों के मैदान में बुलाकर मोदी-शाह ने पहले तो विपक्ष से ही घमासान करवाया और अंततः उससे उपजे साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण का फायदा उठाकर न सिर्फ देश बल्कि देशभर में तमाम राज्यों की सत्ता हथिया ली थी। इसके बावजूद, साल 2014 में मोदी-शाह के उभार से लेकर आज तक इस जुगल जोड़ी के चुने हुए मुद्दों के अलावा किसी अन्य मुद्दे पर कोई बड़ा आंदोलन विपक्ष ने कभी खड़ा किया हो, ऐसा कम से कम मुझे तो याद नहीं पड़ता।
इस बार भी विपक्ष मुस्लिमों के प्रति भेदभाव की नीति को केंद्र बनाकर मुस्लिम संगठनों और मुस्लिम शिक्षण संस्थानों का सहारा लेकर मुस्लिम बाहुल्य इलाकों में जैसा आंदोलन देशभर में खड़ा कर चुका है, ठीक यही वह गलती है, जो मोदी-शाह विपक्ष से करवाना भी चाहते थे। विपक्ष की नासमझी का ही नतीजा है कि इस मुद्दे पर हुए आंदोलन ने तकरीबन हर बड़े राज्य से विदा हो कर मृत शय्या पर पड़ी भाजपा को फिर से संजीवनी बूटी प्रदान कर दी है। एक आम हिन्दू, जो अभी तक भाजपा से इस बात के लिए नाराज दिख रहा था कि उसने देश की अर्थव्यवस्था चौपट कर दी है, अब वही हिन्दू एक बार फिर विपक्ष द्वारा मुद्दा हिन्दू-मुसलमान बनाने के कारण कट्टर भाजपाई होता दिखने लगा है।
तीन तलाक, धारा 370 और राम मंदिर पर खुद मुस्लिम आबादी ने बेहद शांत रहकर मोदी-शाह की इस रणनीति को ध्वस्त कर दिया। हालांकि विपक्ष ने उन सभी मुद्दों पर भी अपनी तरफ से कोशिश की जरूर थी कि देशभर में इन मुद्दों पर हंगामा हो। मगर मुस्लिम आबादी से उसे खास समर्थन न मिल पाने के कारण मायूसी हुई...और शायद उससे भी कहीं ज्यादा या असली मायूसी खुद मोदी-शाह को हुई होगी क्योंकि इतने बड़े कदम उठाकर भी देश में हिन्दू उनके पक्ष में लामबंद होते नजर नहीं आये। आते भी कैसे, जब मुस्लिम आबादी ने ऐसी कोई उकसावे वाली क्रिया ही नहीं की, जिसकी प्रतिक्रिया में हिन्दू भी एकजुट हो जाते।
बहरहाल, इस बार विपक्ष ने बिल्कुल वही किया है, जो खुद मोदी-शाह ने चाहा है। इसमें उसे देश की मुस्लिम आबादी के कुछ हिस्से का भी समर्थन मिला है और इससे विपक्ष उत्साहित भी है। मगर अब उन्हें यह कौन समझाए कि जितने मुस्लिम विपक्ष की तरफ लामबंद हुए हैं, उससे कहीं बड़ी तादाद में एक बार फिर हिन्दू भी मोदी-शाह के पीछे लामबंद हो गए हैं। जाहिर है, चुनाव संख्या का खेल है...इसलिए बहुसंख्यक समुदाय ही तय करेगा कि ध्रुवीकरण की इस लोकतांत्रिक रणनीति का विजेता कौन बनकर उभरेगा...