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बाबरी मस्जिद पर किसी भी मध्यस्था का विरोध करेगे : बोर्ड
राज्य मुख्यालय लखनऊ। जैसे-जैसे बाबरी मस्जिद और रामजन्म भूमि पर सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक फ़ैसले की तारीख़ नज़दीक आती जा रही है वैसे-वैसे ही उससे जुड़े संगठनों के लोगों में हलचल देखी जा रही है माना जा रहा है कि फ़ैसला आने के बाद के हालात क्या होगे और उसके बाद बड़ा दिल और छोटा दिल दिखाने की बात होगी। बल्कि यू कहे कि होने भी लगी दो दिन पूर्व लखनऊ में मुस्लिम बुद्धिजीवियों ने एक सेमिनार भी किया था कि अगर सुप्रीम कोर्ट का फ़ैसला मुसलमानों के पक्ष में आता है जिसकी संभावनाएँ अधिक मानी जा रही है तो मुसलमानों को बड़ा दिल दिखाते हुए ज़मीन अपने हम वतन भाइयों को दे देनी चाहिए यानी हिन्दू समाज को इसको लेकर मुसलमानों में एक राय नही है इसी को ध्यान में रखते हुए ऑल इण्डिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की बैठक में बाबरी मस्जिद मामले में किसी भी तरह की मध्यस्था का विरोध करने का फ़ैसला किया गया।
बैठक में कहा गया कि क़ानूनी प्रक्रिया पर मुसलमानों और उनके रहबरो को पूरा भरोसा है इस मामले पर पूरी दुनियाँ की नज़र है ये बहुत बड़ा मसला चला आ रहा है जिसपर अब सुप्रीम कोर्ट को फ़ैसला देना है कि जिस जगह पर मस्जिद का निर्माण हुआ था वह जगह किसकी है। मुस्लिम रहनुमाओं को यक़ीन है कि कोर्ट हमारे हक में फ़ैसला देगा क्योंकि कोर्ट में हमारी दलीलें मजबूत रही है हमें कोर्ट और उसकी इमानदारी पर शक नही कोर्ट जो भी फ़ैसला देगा हमें मंज़ूर है। मुस्लिम पक्ष की ओर से बाबरी मस्जिद मामले की पैरवी कर रहे सुप्रीम कोर्ट के जाने माने एडवोकेट राजीव धवन की की दलीलों पर बोर्ड ने संतुष्टि और ख़ुशी जताई अन्य वकीलों की टीम को भी धन्यवाद ज्ञापित किया।
ऑल इण्डिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की बैठक में यूनिफ़ॉर्म सिविल कोड देश की विविधता के लिए खतरा बताया बोर्ड किसी भी बदलाव का डटकर विरोध करेगा तीन तलाक के कानून की वैज्ञानिकता को कोर्ट में चुनौती देगा।उधर बाबरी मस्जिद और रामजन्म भूमि विवाद पर देश की सर्वोच्च न्यायालय में रोजाना सुनवाई हो रही है और जल्द ही फैसला आने की उम्मीद है।इसी बीच मुस्लिमों के एक संगठन ने अयोध्या मामले का अदालत के बाहर समाधान निकालने की वकालत की थी लोगों का मानना है कि ये कोई संगठन की सोच नही है ये सब सरकार के इसारे पर मुसलमानों पक्ष में फ़ैसला आने के बाद का माहौल तैयार किया जा रहा है इस मामले में अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति लेफ्टिनेंट जनरल (रिटायर्ड) जमीरउद्दीन शाह ने बड़ा बयान दिया था उन्होंने कहना है कि सुप्रीम कोर्ट को अपना स्पष्ट फैसला देना चाहिए ताकि इस मामले का शांति पूर्ण निपटारा हो सके।
उन्होंने कहना था कि यदि फैसला मुस्लिमों के पक्ष में आता है तो मुस्लिम भाईयों को देश में शांति स्थापित करने के लिए यह जमीन हिंदू भाईयों को सौंप देनी चाहिए।बीते गुरुवार को विभिन्न मुस्लिम तंजीमों के नवगठित छात्र संगठन 'इंडियन मुस्लिम्स फॉर पीस' के बैनर तले एक कार्यक्रम के दौरान अयोध्या मामले पर अपनी राय रखते हुए उन्होंने ये बातें कीं उन्होंने कहा, सुप्रीम कोर्ट को स्पष्ट फैसला देना चाहिए, यह फ़ैसला पंचायती बिलकुल नहीं होना चाहिए। उन्होने यहां तक कहा था कि अगर कोर्ट मुसलमानों के पक्ष में निर्णय देता है, तो क्या वहां मस्जिद बनाना संभव होगा ? यह असंभव है ?
यदि फैसला मुसलमानों के पक्ष में आता है तो देश में स्थायी शांति के लिए मुसलमानों को भूमि हिंदू भाइयों को सौंप देनी चाहिए। एक समाधान होना चाहिए, वरना हम लड़ते ही रहेंगे। मैं कोर्ट के निपटारे का पुरजोर तरीके से समर्थन करता हूं। इस कार्यक्रम में कई मुस्लिम बुद्धिजीवियों ने शिरकत की थी। संगठन की बैठक में प्रस्ताव पारित इंडियन मुस्लिम्स फॉर पीस के संयोजक कलाम खान ने बताया कि संगठन की बैठक में पारित प्रस्ताव में कहा गया है कि वह अयोध्या विवाद का अदालत के बाहर हल निकालने का पक्षधर है।उत्तर प्रदेश सुन्नी वक्फ बोर्ड ने भी हाल ही में अयोध्या विवाद का हल अदालत के बाहर करने का प्रस्ताव रखा था।
प्रस्ताव के अनुसार देश के धर्मनिरपेक्ष और लोकतांत्रिक ताने-बाने तथा हिन्दुओं के साथ (मुसलमानों) के सदियों पुराने सम्बन्धों की खातिर संगठन की राय है कि मुस्लिम पक्ष विवादित जमीन को उच्चतम न्यायालय के जरिये केन्द्र सरकार को सौंप दे, ताकि मुल्क में शांति और सौहार्द कायम रहे, अब सवाल यह भी है कि मुल्क में शान्ति रहे इसकी ज़िम्मेदारी मुसलमान पर है क्या ? ये ज़िम्मेदारी हिन्दूओं की नही है क्या ? कोर्ट ने सभी पक्षों को कहा है कि वह इस मामले पर बहस 17 अक्टूबर तक पूरी करे. अब 14 अक्टूबर को मुस्लिम पक्ष की तरफ से वरिष्ठ वकील राजीव धवन बहस करेंगे जबकि बाकी सभी पक्षकार 15-16 अक्टूबर को दलीलें देंगे. सुप्रीम कोर्ट के पांच जजों की बेंच अभी तक सभी पक्षों की दलीलें सुन चुकी है।