नोएडा

स्वास्थ विभाग के कंट्रोंल में नही नोएड़ा के निजी अस्पताल, साढ़े छह लाख रुपये जमा होने के बाद भी नहीं दे रहे थे शव

Special Coverage News
21 Sep 2018 9:07 AM GMT
स्वास्थ विभाग के कंट्रोंल में नही नोएड़ा के निजी अस्पताल,  साढ़े छह लाख रुपये जमा होने के बाद भी नहीं दे रहे थे शव
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धीरेन्द्र अवाना

नोएडा। नोएडा शहर की गिनती हाइटेक शहरों में की जाती है। केन्द्र और प्रदेश सरकार द्वारा नई नई सुविधाए देने का दावा करती है लेकिन हकीकत इसके विपरीत है। यहा सुविधाओं के नाम पर लोगों को छ्ला जाता है। नोएडा में निजी अस्पतालों की भरमार है कुछ छोटे है तो कुछ बड़े।लेकिन दोनों का एक ही काम लोगों की जिन्दगी व उसकी भावनाओं से खेलना। जितना बड़ा अस्पताल उतना ही बड़े उनके रेट। ये अस्पताल कम फाइव स्टार होटल ज्यादा लगते हैं।


इन अस्पतालों में घंटों के हिसाब से लोगों से चार्ज किया जाता है। इतना ही नहीं यहां जिंदा इंसानों के साथ-साथ मुर्दों का भी रहने का चार्ज लिया जाता है।ये नोट गिनने में इतने व्यस्त हैं कि वो जिंदा व्यक्ति को भी मृत बताकर अपना चार्ज वसूलते है। इन्हें आपकी जिंदगी से, आपकी ममता से,आपके अपनों के लिए प्रेम से कोई मतलब नहीं है। ये तथाकथित अस्पताल और डॉक्टर सिर्फ नोट गिनने की मशीन बन चुके हैं। ज़िंदगियों से खिलवाड़ करने वाले बड़े निजी अस्पतालों का हालिया नमूना दिल्ली का मैक्स अस्पताल बना, जहां जिंदा बच्चे को मृत घोषित कर दिया गया। इस पर दिल्ली सरकार ने बड़ी कार्रवाई करते हुए मैक्स अस्पताल कर लाइसेंस रद्द कर दिया।


इसी तरह कुछ साल पहले नोएडा के फोर्टिस अस्पताल में भी मरीज को चार घंटे इलाज करके लाखों रूपये का बिल परिजनों को थमाया। तब भी अस्पताल मरीज की जान नही बचा पाया। कुछ साल पहले नोएडा के शिवालिक अस्पताल में एक चैनल में कार्यकत पत्रकार की पत्नी अपनी जान गंवा चुकी है। परिजनों का आरोप है कि डाँक्टर की लापरवाही से मरीज की जान गयी थी। फिर भी अस्पताल के ऊपर आज तक कोइ कारवाई नही हुयी।


ताजा मामला नोएडा के फोर्टिस अस्पताल का है जहा अरविंद शर्मा को नौ तारीख को डंपर से टक्कर लगने पर भर्ती किया गया। परिजनों का आरोप है कि 17 सितंबर तक वह होश में थे और बातचीत कर रहे थे। इलाज के लिए परिजन साढ़े छह लाख रुपये जमा करा चुके थे। अब अस्पताल 1.80 लाख रुपये और मांग रहे थे। और तो और अस्पताल सारे पैसे ऑनलाइन मांग रहा था। ट्रांजेक्शन नहीं होने पर कैश लेने को भी मना कर दिया। रात में पैसे जमा न होने से इलाज में लापरवाही शुरू कर दी गई। जिस वजह से अरविंद की मौत हो गई। हद तो तब हो जाती है जब अस्पताल बकाया राशि न देने पर मरीज की मौत से जुड़े कागज देने में आनाकानी की जाती है। इन सब के बावजूद स्वास्थ विभाग कुभकर्ण की नींद सो रहा है। आप बता दे कि स्वास्थ विभाग ऐसे मामलों में एक टीम गठित करके जाँच करता है। लेकिन इत्तेफाक ये है कि कई अस्पतालों की शिकायत होने के बावजूद जाँच कमेटी ने आज तक किसी भी अस्पताल के खिलाफ कोइ कारवाई नही की। इससे साफ पता चलता है कि स्वास्थ विभाग द्वारा अपने स्वार्थ के लिए इन्हे अभय दान दिया जाता है।

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