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लोकसभा संग्राम 98– ममता बनर्जी की स्ट्रेटेजी मोदी की भाजपा बंगाल में आ जाए विपक्ष की भूमिका में!
लखनऊ से तौसीफ़ क़ुरैशी
राज्य मुख्यालय लखनऊ। जैसे-जैसे लोकसभा संग्राम चुनाव 2019 अपने अंतिम पड़ाव सातवें चरण की ओर बढ़ रहा है वैसे-वैसे ही सियासत के रंग भी बदलते दिखाई देने लगे है। पिछले चुनाव 2014 में जिस तरह से यूपी को साम्प्रदायिकता की आग में झोंककर सत्ता प्राप्त की थी उसी तरह पश्चिम बंगाल को साम्प्रदायिकता की आग में झोंककर सत्ता में बने रहने का प्रयत्न किया जा रहा है अब देखना ये है कि क्या यूपी की तरह पश्चिम बंगाल में साम्प्रदायिकता के सहारे सत्ता में बने रहा जा सकता है क्या वहाँ ऐसा कुछ होने जा रहा है कि यूपी में हो रहे भयंकर नुक़सान की भरपाई हो जाए जिसकी संभावना न के बराबर लग रही है।
असल में हो क्या रहा है ये गोदी मीडिया जनता को बताना नही चाह रहा है सिर्फ़ वहाँ धुर्वीकरण हो जाए इस काम को अंजाम देने में लगा है नही तो सच ये है कि पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ये चाहती है कि पश्चिम बंगाल की सियासत में लाल झण्डा और कांग्रेस विपक्ष की भूमिका से बाहर हो जाए और विपक्ष की भूमिका में मोदी की भाजपा आ जाए जिसके बाद मुस्लिम वोटबैंक ममता के पाले में मज़बूती से खड़ा रहेगा और अगर कामरेड या कांग्रेस विपक्ष की भूमिका में रहते है तो मुसलमान ममता के पाले से भाग सकता है क्योंकि लाल झण्डा और कांग्रेस भी मुसलमानो की पसंद रही है ममता की पार्टी से पूर्व मुसलमान इन्हीं पार्टियों में रहते थे और वो अब भी कब चले जाए इससे इंकार नही किया जा सकता है उसी की क़िले बंदी हो रही है रही बात मोदी की भाजपा की उसके विपक्ष की भूमिका में आने के बाद एक बहुत बड़ा वोटबैंक ममता बनर्जी के पाले में सुरक्षित हो जाएगा और ममता बनर्जी का पश्चिम बंगाल की सियासत में कोई कुछ नही बिगाड़ पाएगा।
रही बात कल की भाजपा और आज की मोदी की भाजपा की तो उसका तो जन्म ही भावनाओं के साथ खिलवाड़ करने से हुआ है अगर वो धार्मिक भावनाओं की बात न करे तो उसकी स्तिथि दो सीट से ज़्यादा की नही है सत्ता में बने रहना तो ख़्वाब ही बनकर रह जाएगा तो ये खेल चल रहा है पश्चिम बंगाल को लेकर और गोदी मीडिया लगा है मोदी की भाजपा की और ममता बनर्जी की रणनीति को आगे बढ़ाने में वैसे तो 2014 के बाद से मीडिया ने अब तक जो भूमिका अदा की उससे साफ ज़ाहिर होता है कि मीडिया क्या कर रहा है आमजन का मीडिया पर जो यक़ीन हुआ करता था कि मीडिया सच बोलता है उससे अब आमजन का यक़ीन टूट गया है और ये सही भी है आज के मीडिया और इससे पहले के मीडिया में ज़मीन आसमान का फ़र्क़ हो गया है पहले मीडिया सच को सच बताने का प्रयास करता था और आज का मीडिया सच को झूट और झूट को सच साबित करने में लगा रहता है और यह ग़लीच मीडिया यही नही रूकता देश में साम्प्रदायिक माहोल बना रहे इसका भी पूरा ध्यान रखता है।
ऐसे मुद्दों पर बहस कराता है जिसकी देश को ज़रूरत ही नही है लेकिन इस तरह के कार्यक्रमों से उनके सियासी आका ख़ुश रहते है और देश बर्बादी की और जाता है लेकिन उनको इससे कोई मतलब नही कि देश कहाँ जा रहा है।जिस तरीक़े से पिछली बार यूपी को मोदी की भाजपा ने अपनी गंदी सियासत का हिस्सा बनाया था उसी तरह बंगाल में भी साम्प्रदायिक खेल खेला जा रहा है लेकिन उसके बाद भी मोदी की भाजपा सत्ता में वापिस नही आने जा रही है ऐसा सियासी पण्डित मान रहे है उनका तर्क है कि यूपी जैसा 80 सीटों वाला राज्य जहाँ से मोदी की भाजपा ने 73 सीट जीतकर केन्द्र की सत्ता की चाबी अपने हाथ में ली थी इससे हटकर भी कई राज्य थे जहाँ मोदी की भाजपा ने साम्प्रदायिकता के सहारे बहुत बढ़िया प्रदर्शन किया था जैसे मध्य प्रदेश , छत्तीसगढ़ , राजस्थान व गुजरात में जहाँ पूरी-पूरी सीटें मोदी की भाजपा ने जीतने में कामयाबी प्राप्त की थी लेकिन आज के सियासी हालात मोदी की भाजपा के वैसे नही है जैसे 2014 में थे यूपी की अगर हम बात करे तो यहाँ मोदी की भाजपा को दस सीट जीतना भारी हो रहा है यहाँ बहुजन समाज पार्टी व समाजवादी और रालोद ने गठबंधन कर मोदी की भाजपा का चुनावी गणित बिगाड़ दिया है।
इस गठबंधन के बारे में सियासी गुणाभाग करने वाले 50-60 सीट दे रहे है कुछ का तो कहना है कि गठबंधन इससे भी ज़्यादा सीट जीत सकता है और कांग्रेस भी सात से आठ सीट जीत सकती है इस हिसाब से मोदी की भाजपा मुश्किल तमाम 10-12 सीट जीत सकती है कहाँ 73 सीट और कहाँ 15 के अंदर या इससे भी कम ये हाल है यूपी में ऐसा ही हाल अन्य प्रदेशों में हो जहाँ 2014 में मोदी की भाजपा ने बढ़िया प्रदर्शन किया था ये तो नही कहा जा सकता लेकिन नुक़सान वहाँ भी होने जा रहा है जो लगभग सौ सीट से ज़्यादा बैठ रहा है उसकी भरपायी कही और से होती हुई नज़र नही आ रही है इस लिए सियासी विज्ञानिको ने ये अनुमान लगाने शुरू कर दिए है कि मोदी की भाजपा की वापसी नही होने जा रही है।कांग्रेस की न्याय योजना और क़र्ज़ माफ़ी भी मोदी की भाजपा पर भारी पड़ रही है साम्प्रदायिक खेल भी नही चल पाया ये भी नुक़सान हुआ है मोदी की भाजपा ने पूरी कोशिश की किसी तरह चुनाव साम्प्रदायिक हो जाए लेकिन जनता ने ये होने नही दिया जिसकी वजह से मोदी की भाजपा सत्ता से बाहर होने जा रही है।