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क्या दुनिया को बिजली से बैटरी तक देने का श्रेय माइकल फैराडे को जानते है!
सकारात्मक सोच एवं विस्तृत सोच के साथ आपमे निरंतर सीखने और अनवरत परिश्रम करने की ललक व लगन है, तो आप अप्रत्याशित रूप से वह कर जाएंगे जो दूसरों के लिये चमत्कार से कम नही होगा। फैराडे के नियम तो आप सभी ने पढ़े होंगे, यदि पढ़े नहीं हैं तो सुने जरुर होंगे। इस नियम के जन्मदाता एवं अविष्कारक माइकल फैराडे हैं जिन्होंने गरीबी के तमाम पहलू और संघर्ष को जिया है। बचपन में अभावों और गरीबी की मार ऐसी कि स्कूल की क्लास तो दूर की बात है, स्कूल की दहलीज में भी कदम नहीं रख पाए। किन्तु मेहनत और लगन के बल पर माइकल फैराडे प्रसिध्द भौतिक विज्ञानी एवं रसायन शास्त्री बन गए। जो फैराडे कभी किताब की दुकान पर जिल्द चढ़ाने का काम करते थे, अल्बर्ट आइंस्टीन जैसे प्रसिध्द वैज्ञानिक भी उस शख्सियत की तस्वीर अपने टेबल पर रखकर प्रेरणा लेते थे। धुन एवं लगन से कार्य कर, महान वैज्ञानिक की सफलता प्राप्त करने का इससे अच्छा उदाहरण वैज्ञानिक इतिहास में न मिलेगा। दुनिया को बिजली से बैटरी तक देने का श्रेय माइकल फैराडे को जाता है। फैराडे ने पहला ट्रांसफॉर्मर और पहला इलेक्ट्रिक जनरेटर बनाया। इलेक्ट्रोड, कैथोड और लियोन जैसे शब्द देने का श्रेय भी उन्हें ही जाता है। इलेक्ट्रिक क्षमता की यूनिट फैराड उन्हीं के नाम पर है।
माइकल फैराडे का जन्म 22 सितंबर 1791 हुआ। इनके पिता एक गरीब लोहार थे। आर्थिक तंगी की वजह से कभी स्कूल तक नही जा पाए। बचपन में पेपर बेचने का काम किया, इसी दौरान उन्होंने किताबें पढ़ना सीख लिया। बाद में एक किताब की दूकान में जिल्दसाज (बुक-बाईंडर) का काम करने लगे। यहां इनको तरह-तरह की किताबें पढ़ने को मिलने लगीं। पुस्तकों पर जिल्द चढ़ाते समय महत्वपूर्ण बातें और जानकारियां अक्सर पढ़ा करते थे। एक दिन जिल्द चढ़ाते समय उनकी नजर एक विद्युत संबंधी लेख पर पड़ी। उन्होंने दुकान के मालिक से एक दिन के लिए वह पुस्तक मांग ली और रात भर में उस लेख के साथ ही पूरी पुस्तक भी पढ़ डाली। पुस्तक का उन पर गहरा असर पड़ा। इस विषय में उनकी ललक बढ़ गई। ललक इतनी बढ़ी कि जिल्द चढ़ाने का काम करते-करते भौतिक शास्त्र एवं रसायन शास्त्र से सम्बन्धित हजारों किताबें पढ़ डाले और इतना अनुभव अर्जित कर डाले कि उनकी जिज्ञासा प्रयोग करने में बढ़ने लगी और धीरे-धीरे वह अध्ययन एवं परीक्षण के लिए विद्युत संबंधी छोटी-मोटी चीजें इधर-उधर से जुटाने लगे। उनकी रुचि देखकर एक व्यक्ति उनसे बहुत प्रभावित हुआ, एक दिन उसने फैराडे को अपने साथ भौतिकशास्त्र के प्रसिद्ध विद्वान डेवी का भाषण सुनाने ले गया।
फैराडे ने डेवी की बातें ध्यान से सुनीं और उन्हें नोट भी किये। इसके बाद उन्होंने उनके भाषण की समीक्षा करते हुए अपने कुछ परामर्श लिखकर डेवी के पास भेज दिए। डेवी को बालक की सलाह बहुत पसंद आई। उन्होंने उसे अपने यंत्र व्यवस्थित करने के लिए अपने पास रख लिए। फैराडे उनके साथ रहने लगे और वे सहयोगी और नौकर दोनों की भूमिका निभाने लगे। फैराडे को सीखने और करने की लगन इतनी थी कि दिनभर कठिन मेहनत के बाद भी देर रात तक अध्ययन करते थे। थकान होने पर भी चेहरे में शिकन तक नहीं आती थी। वह भौतिकी के क्षेत्र में खासकर विद्युत के क्षेत्र में बहुत कुछ करना चाहते थे।
उन्होंने संकल्प और लगन के साथ मेहनत करके अपने जीवनकाल में अनेक खोजें की। उनकी सबसे बड़ी उपलब्धि विद्युत चुंबकत्व और बिजली के विकास में थी। सन् 1831 में विद्युत चुम्बकीय प्रेरण के सिद्धांत की महत्वपूर्ण खोज की। चुंबकीय क्षेत्र में एक चालक को घुमाकर विद्युत्-वाहक-बल उत्पन्न किया। इस सिद्धांत पर भविष्य में जनित्र (generator) बना तथा आधुनिक विद्युत इंजीनियरिंग की नींव पड़ी। इन्होंने विद्युद्विश्लेषण पर महत्वपूर्ण कार्य किए तथा विद्युद्विश्लेषण के नियमों की स्थापना की, जो फैराडे के नियम कहलाते हैं। विद्युद्विश्लेषण में जिन तकनीकी शब्दों का उपयोग किया जाता है, उनका नामकरण भी फैराडे ने ही किया। क्लोरीन गैस का द्रवीकरण करने में भी ये सफल हुए। परावैद्युतांक, प्राणिविद्युत्, चुंबकीय क्षेत्र में रेखा ध्रुवित प्रकाश का घुमाव, आदि विषयों में भी फैराडे ने योगदान किया। इन्होंने सम्बंधित विषय पर अनेक पुस्तकें लिखीं, जिनमें सबसे उपयोगी पुस्तक 'विद्युत में प्रायोगिक गवेषणाएँ'।
उन्होने विद्युत-धारा के चुम्बकीय प्रभाव का आविष्कार किया। साथ ही विद्युतचुम्बकीय प्रेरण का अध्ययन करके उसको नियमवद्ध किया। और डायनेमों तथा विद्युत मोटर का निर्माण हुआ। डायनेमो या जेनरेटर के बारे में जानकारी रखने वाले यह जानते हैं कि यह ऐसा यंत्र है जिसमें चुम्बकों के भीतर तारों की कुंडली या कुंडली के भीतर चुम्बक को घुमाने पर विद्युत् बनती है। एक बार फैराडे ने अपने सरल विद्युत् चुम्बकीय प्रेरण के प्रयोग की प्रदर्शनी लगाई। कौतूहलवश इस प्रयोग को देखने दूर-दूर से लोग आए। दर्शकों की भीड़ में एक औरत भी अपने बच्चे को गोदी में लेकर खड़ी थी। एक मेज पर फैराडे ने अपने प्रयोग का प्रदर्शन किया। तांबे के तारों की कुंडली के दोनों सिरों को एक सुई हिलानेवाले मीटर से जोड़ दिया। इसके बाद कुंडली के भीतर एक छड़ चुम्बक को तेजी से घुमाया। इस क्रिया से विद्युत् उत्पन्न हुई और मीटर की सुई हिलने लगी। यह दिखाने के बाद फैराडे ने दर्शकों को बताया कि इस प्रकार विद्युत् उत्पन्न की जा सकती है।
यह सुनकर वहाँ बैठे कई लोगों ने फैराडे का मजाक बनाया, कुछ ने तो यहां तक बोल दिया कि ये आदमी पागल हो गया है। जो, सम्भव ही नही उसकी बातें कर रहा है। वहीं एक महिला क्रोधित होकर चिल्लाने लगी – "यह भी कोई प्रयोग है!? यही दिखाने के लिए तुमने इतनी दूर-दूर से लोगों को बुलाया! इसका क्या उपयोग है?" यह सुनकर फैराडे ने विनम्रतापूर्वक कहा– "मैडम, जिस प्रकार आपका बच्चा अभी छोटा है, मेरा प्रयोग भी अभी शैशवकाल में ही है। आज आपका बच्चा कोई काम नहीं करता अर्थात उसका कोई उपयोग नहीं है, उसी प्रकार मेरा प्रयोग भी आज निरर्थक लगता है। लेकिन मुझे विश्वास है कि मेरा प्रयोग एक-न-एक दिन बड़ा होकर बहुत महत्वपूर्ण सिद्ध होगा।" यह सुनकर वह महिला चुप हो गई। फैराडे अपने जीवनकाल में विद्युत् व्यवस्था को पूरी तरह विकसित होते नहीं देख सके लेकिन अन्य वैज्ञानिकों ने इस दिशा में सुधार खोज करते-करते उनके प्रयोग की सार्थकता सिद्ध कर दी।
फैराडे से पहले यह माना जाता था कि हर स्रोत से प्राप्त विद्युत अलग होती है लेकिन फैराडे ने अपने प्रयोगों से यह निष्कर्ष निकाला कि सभी तरह की विद्युत की प्रवर्ति एक जैसी होती है, केवल उसकी त्रीवता अलग होती है। अपने कार्य में रत रहते हुए 1840 के दशक के शुरूआत में, फैराडे का स्वास्थ्य बिगड़ना शुरू हो गया था और 25 अगस्त 1867 को हैम्पटन कोर्ट में निधन हो गया। विज्ञान के इतिहास में माइकल फैराडे और थॉमस अल्वा एडिसन ऐसे महान अविष्कारक हैं, जो गरीबी और लाचारी के कारण ज़रूरी स्कूली शिक्षा भी नहीं प्राप्त कर सके। लेकिन मेहनत, लगन और परिश्रम के बल पर दुनिया को वो दिया जिसकी कल्पना भी नही की जा सकती थी। फैराडे सम्पूर्ण समाज के लिए प्रेरणास्रोत तो हैं ही, साथ ही उन्होंने अपने जीवन संघर्ष, परिश्रम और लगन द्वारा असम्भव को सम्भव करके यह सन्देश दे दिया कि महान कार्य करने के लिए डिग्री की नहीं बल्कि आपकी विस्तृत सोच और सकारात्मक दृष्टिकोण की आवश्यकता है।
सत्यम सिंह बघेल लेखक