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अहमदाबाद से 23 सितंबर को विस्तारा एयर लाइन में बैठे और दिल्ली आना था। सुबह गए और शाम दिल्ली में। समान था नहीं, लेकिन बोझ,अफसोस, चिंता, दिशा,मौज,गुदगुदी सब लेकर लौटे। यात्रा की खुमारी तमाम उधेड़ बुन के साथ बनी हुई है। मानस पटल से तमाम दृश्य मनुष्य की जीवनशैली को लेकर मस्तिस्क को खुरच रहे हैं। कैसे,कैसे दिन?
आप भी जानें...
एयरक्राफ्ट में सीट दो महिलाओं के बीच में मिली। यह एयरक्राफ्ट में पता चला। एक कोई 36 साल की और एक 26 या 27। दोनों अकेले दिल्ली की यात्रा कर रही थी। मैने विमान की C seat per बैठी 27 साला से अनुरोध किया कि B पर चली जाएं। उसने रिफ्यूज कर दिया। कोई और सीट खाली नहीं थी और कोई रास्ता न देख बैठ गया।
एक डर और संकोच
बैठने के बाद सीट के हत्था पतला होने के कारण संकोच ने घेरा। हत्थे पर हाथ लगते ही रगड़ या छू जाने की स्थिति असहज कर सकती है। इसलिए सिकुड़ और सिकोड़ का बैठा। शायद मेरी मन: स्थिति को कुछ समय बाद वासरूम जा रही भाभी जी ने समझ लिया था। वह सिकुड़कर बैठे इंसान को देखते और मंद मुस्कराते हुए गई और वापस आगे की सीट पर लौटी। मेरे मन में भी ख्याल आया कि पिंजरे में बंद पक्षी इसी स्थिति से गुजरता होगा।
शुक्रगुजार हूं बाईं तरफ बैठी महिला का। उन्होंने खिड़की की ओट ले ली और रास्ते भर लिया रही।
बाईं तरफ c seat पर बैठी युवती पूरी मस्ती में रही। नाक के भीतर भिनभिनती घुसती मादक परफ्यूम की गंध, तमाम रंगीन और निराले टैटू से भरे हाथ,कंधे। सुंदर,छरहरी,गोरी चित्ती,संगमरमरी कया और मोबाइल पर कान में लीड के साथ रोमांटिक मूवी,गाने। तरह की पोज़। हाथ और शरीर को इधर उधर करते,फैलाते, रगड़ते रहना। कुछ देर बाद मैने भी हत्थे पर हाथ रख दिया। यह सोचकर कि कब तक ऐसे। हाथ रखते ही उसने देखा, मूंगे रंग की लिपिस्टिक से संवारे होंठ थोड़ा खुले। झीनी मुस्कान के साथ मुस्कराई और फिर अपने में लीन। 10 या 15 मिनट के बाद धीरे से देखना और बार मेरा और संभलना कि कुछ गड़बड़ तो नहीं। चुहुल भरी शरारत के दरम्यान कुछ समझ भी न आए।
हम लैंड कर गए
मेरे लिए सुकून भरी सूचना थी कि विमान लैंड करने वाला है। राहत की बिजली दौड़ गई। विमान रनवे पर था कि मैंने बेटी को फोन लगा दिया। बेटी का बर्थ डे था तो केक आदि के बारे में जानकारी के बहाने। हालांकि इसका आन लाइन अहमदाबाद से ही ऑर्डर कर चुका था।
आप कैसे जायेंगे?
रन वे पर गेट खुलने का समय आते ही लोग खड़े होने लगे।मेरा भी मन यही था, लेकिन वह महिला ठसक मारे बैठी रही। रन वे पर चल रहे विमान के द्वारा ही किसी को फोन किया। सूचना दी कि वह दिल्ली आ गई। उधर से जवाब के बाद गुस्सा भी दिखाया।बुदबुदाकर गाली भी दी। फिर मेरी तरफ देखा।मुस्कराई। मैं घोंघूदास बना रहा। उतरने के पहले पूछा आप कैसे जायेंगे? मैने बेहूदा सा जवाब दिया कि सब पैर से जाते हैं और क्या? उसने मुंह बिचका लिया। लगा होगा, कोई खूसट है।
इशारा किया तो एक थप्पड़ रसीदने का मन हुआ
हम विमान से बाहर आए। पहले वह,बाद में मैं। मैं तेजी आगे बढ़ा। t3 पर ऊपर वाशरूम में घुस गया। थोड़ी देर बाद बाहर निकलने के लिए अभी चलाने लगा। ऊपर ही टर्निग पर स्मोकिंग एरिया है। मैं स्मोकिंग आदि से काफी दूर हूं,लेकिन टर्न लेते समय नजर पड़ी कि वह गेट के पास ही सिगरेट लिए कश लेने का ईशारा कर रही है। पहले तो मन किया कि इसे जवाब देना चाहिए,लेकिन मेरी अक्ल ने अलग की संकेत दिया। मूर्खों की तरह तेजी से बिजली की मानिंद वहां से निकला, ओला टैक्सी ली और घर आ गया।
सवाल बस छोटा सा?
यह एक 1. 35 घंटा आखिर क्या था? शराफत,शरारत, मूर्खता,असभ्यता या नासमझी का कैसा तालमेल। मेरा मन कहता है कि वह चीप थी?स्मोकिंग जोन जो बाहर से दिखा, 10या12 पुरुषों में अकेली महिला स्मोकर। मन यह भी कहता है कि मैंने विरोध क्यों नहीं दर्ज कराया।एयरपोर्ट पर सिक्योरिटी स्टाफ था? रिपोर्टर का एक सेंस कहता है कि बेटा अच्छा किया। लफड़े में नहीं पड़े, वरना विरोध दर्ज कराते और भुगतते? तमाम सवाल हैं। इन सवालों के बीच में वह मदहोश करने वाली अदाएं,जीने मुस्कान भी।
*वह टैटू और सिगरेट वाली भी। चीप,बाजार और ग्लैमर परोसता नया भारत भी।