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क्या आप जानते है आज से ही रातें बडी़ व दिन छोटा होने लगता हैं, जानिये सूर्य घड़ी से!
आज ज्योतिष विभाग, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय की ओर से छात्रों को शंकु से पलभा का ज्ञान कराया गया। विभाग के अध्यक्ष प्रो. विनय कुमार पाण्डेय जी ने बताया कि 23 सितम्बर व 21 मार्च को पूरे विश्व में दिन रात बराबर होते हैं। इस दिन अपने शहर का अक्षांश रेखांश को ज्ञात करते हैं। आज दिन से ही सूर्य दक्षिण गोलार्द्ध प्रवेश करता है। आज से ही रातें बडी़ व दिन छोटा होने लगता हैं।
धूप घड़ी के शंकु की उस समय की छाया की चौड़ाई जब मेष या तुला संक्रांति के मध्याह्न में सूर्य ठीक विषुवत रेखा पर होता है, उसे पलभा कहते हैं। जिसको जानने के लिए हाथी के दांत या अन्य शुद्ध परिपक्व लकड़ी जिसमें मुख्यतः शीशम की लकड़ी आदि से 12 अंगुल की नाप का एक शंकु यंत्र बनाया जाता था। शंकु के आधार पर अक्षांश की गणना और दिशा की गणना की जाती थी। शंकु की छाया को हम पलभा या अक्षभा भी कहते हैं। शंकु की छाया से अक्षभा या पलभा की गणना की जाती है। पलभा विधि से लग्न गणना करने के लिए स्वस्थान की पलभा से चरखंड बनाकर,चरखंड संस्कार द्वारा लंकोदय लग्न मानों को स्वोदय लग्न मानों में बदला जाता है।
एक समकोण त्रिभुज में लम्ब की छाया या आधार की लंबाई को पलभा कहते है। विषुव दिवस अर्थात 21 मार्च व 23 सितंबर को जब सूर्य विषुवत रेखा अर्थात भूमध्य रेखा पर लम्बवत चमकता है ,इन दिनों पर मध्यान्ह में 12 अंगुल शंकु समतल जमीन पर रखकर मध्यान्ह के समय में इस शंकु की छाया की लंबाई पलभा या अक्षभा होगी। पलभा को अंगुल,व्यंगुल,प्रतिव्यंगुल में भी लिखते है। वास्तव में स्थान विशेष पर सूर्य की किरणों का तिरछापन हम पलभा से जान सकते है।
शंकु छाया से मात्र अक्षांश व रेखांश ही नहीं बल्कि दिशा ज्ञान, सूर्य स्प भी सही रूप में किया जा सकता है। इस अवसर पर प्रमुख रूप से प्रो. गिरिजाशंकर शास्त्री, डाँ श्रीकान्त तिवारी, आदि उपस्थित रहे।