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राम जब प्रधानमंत्री पद को सुशोभित किए तब हनुमान बिना पोर्टफोलियो के ही किसी भी अन्य मंत्री से ताकतवर थे, जानिए एक बड़ी कहानी
राम जी के पास पुलिसिंग व्यवस्था बढ़िया न होने की वजह से बनवास के शुरुआती दिनों में काफी संकट का सामना करना पड़ा। बाद में कही कोई प्रारब्ध और कर्म बढ़िया होने की वजह से उनको हनुमान जी जैसा बढ़िया पुलिस अधिकारी भी मिला।
हनुमान जी का इनडोर और आउट्डोर दोनो ही उत्कृष्ट कोटि का रहा। उनका पीआर से लेकर मीडिया मैनजमेंट और हथियारों पर नियंत्रण उत्कृष्ट कोटि का रहा। उनके चरित्रपंजिका में साल दर साल उनके अधिकारी कोटि उत्कृष्ट और सत्यनिष्ठा प्रमाणित लिखते चले आ रहे थे, लेकिन उनके हिस्से में इससे कही ज़्यादा ही लिखा था।भाग्य का लिखा कौन मिटा सकता था उनको तो पुलिस विभाग का आजीवन डीजी बनना लिखा था।
खैर वजह जो भी रही हो कालांतर में उनकी मुलाक़ात रामजी से हो गई थी। यह रामजी का भी सौभाग्य था कि उनको इतना दक्ष इतना निपुण व्यक्ति पुलिसकर्मी के रूप में मिला, जो इतना विवेकशील था।जिसकी पुलिसिंग लोकोन्मुख थी।यद्यपि पुलिस रिफार्म की बात उस समय भी चल रही होंगी लेकिन हनुमान जी के पद ग्रहण के बाद तत्कालीन कर्मचारियों के हर तरह के भत्तों ,बैरकों और ट्रांसफर-पोस्टिंग तक मे सुधार हुआ।
बाद में राम जब प्रधानमंत्री पद को सुशोभित किए तब हनुमान बिना पोर्टफोलियो के ही किसी भी अन्य मंत्री से ताकतवर थे, यद्यपि उन्होंने कभी भी अपने पॉवर का दुरुपयोग ना ही किया न होने दिया।इतना बल होने के और उससे भी ज्यादा सहनशीलता और उदारता कोई उनसे सीखे!
मनुष्य के बाद अगर मनुष्यों ने किसी अन्य स्पेसीज का अगर सबसे ज्यादा सम्मान किया तो वह हनुमान जी की ही प्रजाति थी! खैर इसके लिए स्वयं हनुमान जी को सीना तक फाड़ कर दिखाना पड़ा।वैसे भी मनुष्यों की यही फितरत है वह इस तरह स्वामिभक्ति की परीक्षा लेता ही रहता है।स्वयं हनुमान भी इसके अपवाद नही थे।
सीता को रावण हर ले गया था, राम भी अपने राज्य में नही थे और न ही कोई कानून की एकसम्मत किताब थी।कानून का भय और मुकदमा लिख जाने का डर प्राणिमात्र में विद्यमान नही था।खैर रावण तो इन सबसे ऊपर था ,एक विजेता था और विजेता को तो हर समाज बहुत छूट देता था साथ मे बाहुबली भी था,फिर कौन बोलता उसे।नीति की बात भी कहने वाले लोग रावण के दरबार मे ना के बराबर ही रहे होंगे।
खैर राम को तो सीता का पता लगाना था, सर्विलांस और मोबाइल की सुविधा नहो थी।सारी फोर्स मुखबिर और मैनवुल ही किसी घटना का अनावरण करती थी।राम तो बिना पुलिस बल के थे।लेकिन उन्होंने मुखबिर बनाने शुरू कर दिए थे और उनके मुखबिर तो पशु-पक्षी सभी बनने लगे थे, और फिर क्या एक दिन राम और हनुमान मिल ही गए।
हनुमान के अंदर गुरु को पा लेने की तीव्र इच्छा शक्ति रही होगी तभी उन्हें राम मिले नही तो लाखों रुपए ट्यूशन फीस जमा करने के बाद भी गुरु की तलाश पूरी नही होती।हनुमान पदेन पूरी दुनिया के फोर्स का और सनातनियों के तो सौ प्रतिशत डीजी थे।उन्हें तो बस आर्डर मिलने की देरी थी ,आज के पुलिस से भी ज्यादा कठोर कार्रवाई करते थे।
न जाने कितने भवन गिराए होंगे इनका कोई हिसाब किताब उनके पास भी नही था।बिना गैंगस्टर के मुकदमे और नगर निगम या विकास प्राधिकरण के अनुमति के ही दंगाई-बलवाई या अपराधियो का घर उन्होंने फूंक दिया था।अपराधियो को प्रश्रय देने वालो की भी उनके समय खैर न थी।लंका इसका बड़ा उदाहरण थी।नोएडा के ट्विन टावर से पहले उन्होंने सोने की लंका भस्म कर दी थी।
साल दर साल सनातनी इसका रिवीजन करते रहते हैं और समाज को उनके कृत्यों की नज़ीर देते हैं और हम पुलिस वालों को गाहे बगाहे अपना आशीर्वाद भी हनुमान जी देते रहते हैं।हम सनातनी पुलिस भी इसलिए अपने गुरु का एक मंदिर अपने थाना परिसर या आसपास अवश्य रखते हैं।यह हमसबके संकट मोचक हैं।
खैर ये तो अब की बात है।अब त्रेता युग मे एंट्री करते है।मंच का पर्दा धीरे धीरे हट रहा है।नीचे दर्शक दीर्घा में जनता भाव विभोर हो कर राम के दुःख से दुःखी है।यह नैतिकता ही है जब पत्नी किसी की गायब त्रेता में हो और हम कलियुग में बैठकर आंसू बहा रहे हो।यह भारतीय संस्कृति की अनवरत परम्परा का हिस्सा है।
सभी लोग की नज़र पुलिस महकमे पर है कि यही विभाग सीता मां को ढूढ लाएगा।जीवन मे पुल और सड़क निर्माण से भी जरूरी चीज है विश्वास का निर्माण। यह वर्दी की ज़िम्मेदारी है।खैर हनुमान जी तो हमेशा सक्रिय रहने वाले पुलिस थे।
हनुमान जी को सीता मां का पता लगाने की ज़िम्मेदारी मिली और फिर क्या वह बिना किसी देरी के अपनी रवानगी सीता की सुरागरसी और पतारसी में करा लिए, मुखबिर तो पहले से ही मामूर थे।उधर रावण के एजेंट भी चौकन्ना ही थे।सर्विलांस प्रणाली नही थी लेकिन रावण के पास सेंसिंग तकनीकि काफी उन्नत अवस्था मे थी।
लेकिन हनुमान तो पवनसुत थे । उड़ते उड़ते वह लंका पहुंच ही गए और वहां पर उनकी मुलाकात राम के पहले से ही भक्त विभीषण से हुई और फिर क्या भक्त से भक्त मिलकर भक्ति की धारा बही जिसमें से हल निकालना स्वाभाविक था।क्योंकि भक्ति में एक समर्पण होता है, यह समझने की भूल कलियुग में कुछ लोग कर रहे हैं और उसका खामियाज़ा भी भुगत रहे हैं।
हनुमान ने सीता मां का एड्रेस लिया और उसके वेरिफिकेशन के लिए वही पहुंच गए। अशोक वाटिका में तभी रावण भी पहुंचा और अपहृता सीता को धमकी चमकी दे ही रहा था लेकिन रावण के महिलाएं बहुत ही सभ्य और उच्च कोटि की नैतिकता वाली थी, जिन्होंने सीता के साथ कुछ भी अनैतिक करने की रावण की ज़िद को पूरा न होने दिया।
खैर रावण के जाने के बाद हनुमान सीता से मिलते है जैसे कोई पुत्र अपनी मां से मिल रहा हो लेकिन वह सीता को अपने कंधे पर बिठा कर नही ले आते।त्रेता की नैतिकता का लेवल अलग था।समस्या के समूल नाश करने का आचरण विद्यमान था कलियुग में नियम बदल गया और हर कृत्य पर दंड को निर्धारित कर दिया गया।आज सीता के अपहरण हो जाने पर मात्र अपहरण के दंड से ही दण्डनीय बनाया जाएगा।
पुलिस मंच के चारों ओर फैल चुकी है।मंच पर त्रेता युग तो ग्राउंड पर कलियुग का प्रदर्शन चल रहा है।लेकिन इसी बीच कविता का प्रवेश होता है।कविता ऐसी ही है जो जोड़ने का कार्य करती है।त्रेता से कलियुग कविता से जुड़ जा रही है।भारतीय संस्कृति हज़ारों साल से ऐसे ही गतिमान है ।समय बदलता चला गया लेकिन भक्ति के इस धरातल पर लोकमंगल की भावना से सब जुड़ते चले जाते है।
राम की भेजी मुद्रिका सीता को जैसे ही मिलती है, सीता भावुक हो उठती है लेकिन एक बार को उनके मन में संशय भी उठता है कि क्या यह राम ने ही भिजवाया है या फिर यह माया है। और इधर कलियुग की जनता जिसमें से ऐसे तमाम अभी अपनी पत्नियों को चूल्हा चौका के लिए या फिर दारू के लिए मार पीट , कर झगड़ा- झंझट कर आए होंगे ,वे लोग भी शामिल है।ऊपर सीता दुःखी है नीचे जनता कलप रही है।खैर तभी हनुमान जी को भूख लग जाती है और वह अशोक वाटिका को खाने के नाम पर तहस नहस कर देते है।
राजा की प्रिय चीज़ों का नुकसान तो हनुमान कर ही रहे है स्टेज से कलियुगी जनता को देखकर एक्साइटेड भी हो उठते है।नीचे से जनता हनुमानजी को देखकर जय जय हनुमान का उदघोष कर रही है।छोटे छोटे बच्चे भी अपने प्रिय हनुमान से चिल्ला चिल्ला कर फल मांग रहे है।त्रेता और कलियुग मिल रहे है।हनुमान ने त्रेता से केला सेव उठाकर कलियुग में फेंक दिया है।
लोग फलों को लूट रहे हैं और उधर दशानन गुस्से से पागल हुए जा रहे है।हनुमान पर नियंत्रण कर कैसे भी लंका नरेश के दरबार मे लाया जाता है।
इधर लंका नरेश रावण ने अपने मजिस्ट्रेटियल पॉवर का प्रयोग करते हुए हनुमान जी के पूँछ में आग लगाने का आदेश दे दिया।नीचे कलियुगी जनता राम का जय जय कार कर रही है।उधर हनुमान की पूंछ में आग लग गई है।राजतंत्र है ,हनुमान कही अपील नही कर सकते लेकिन हर साल दशहरा में जनता के सामने हनुमान की अपील गूंजने लगती है।यद्यपि कोई कितना भी बड़ा लगाने वाला हो रावण के सामने उसकी कोई हैसियत नही।रावण ठहाका लगा रहा है।हनुमान अपने जलती पूंछ को लेकर लंका में कूद पड़े हैं।
हनुमान स्टेज से नीचे उतर रहे हैं, नीचे जनता है जो जनार्दन के लिए भाव विभोर है।हनुमान को देखते ही जनता उनकी ओर दौड़ पड़ती है।एक युग दूसरे युग से मिल रहे है।हम पुलिस वाले हनुमान जी की सुरक्षा के लिए दौड़ पड़ते है।कलियुग है यहां सबको सुरक्षा चाहिए।हनुमान को अब चारो तरफ से पुलिस ने घेर रखा है।हनुमान जी के साथ सेल्फी खिंचाने के लिए भीड़ परेशान है।हनुमान जी बहुतो के लिए क्यूट हो गए है।
संकटमोचन को लेकर हम पुलिस वाले लंका की ओर कूच कर गए हैं।हनुमान जी खुश हैं।लंका में पुलिस प्रशासन के सहयोग से आग लगा दी गई है।लंकेश की बेचैनी बढ़ गई है।उसका किला ढह रहा है।एक बंदर ने सबसे शक्तिशाली शासक को चुनौती दे डाला है।
सब कुछ चलता जा रहा है ।स्टेज पर रोज ही रावण के खानदान की हत्या हो रही है।लंकापति दुःखी है जनता खुश है।आज मेघनाद का मर्डर होने वाला है।यह पहले से तय है।वह वीरगति को प्राप्त करेगा, ऐसा होते आया है।
लेकिन तभी पुलिस स्टेज के पीछे पहुंचती है वहां उसकी मुलाकात राजस्थान के एक व्यापारी से होती है।जिसके पास रावण के खानदान को मारने का टेंडर मिला है।पूरे पांच लाख में रावण के खानदान का सफाया।सोने की लंका, कुम्भकर्ण, मेघनाद और रावण के हत्या की सुपारी इस साल मात्र पांच लाख की ही लगी।
खैर यह बात मैने रावण को नही बताई ।रावण ने अपना मरना भी मर्यादा पुरुषोत्तम राम के हाथों स्वीकार किया था लेकिन कलियुग आते आते हर गली मुहल्ले उसके हत्या की सुपारी बटने लगी।कुछ व्यापारी है जो मर्यादा पुरुषोत्तम नही है लेकिन हर बार रावण का वध करने का टेंडर समाज उनको दे दे रहा है।पूंजीपति कलियुग में मजबूती से खड़े है, उनके गुनाहों का कोई लेखा जोखा तैयार नही किया जा रहा।
रावण आज शाम मार दिया जाएगा।शाम तक का ही मारने का टेंडर बटा हुआ है। कौन मारेगा अब यह तय नही है ! हां अब कौन मरेगा यह सुनिश्चित हो चुका है।
है।
अभिषेक प्रकाश जी के द्वारा लिखी गई