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बिहार के मिथिलांचल इलाके में अजीबो-गरीब परंपरा दूल्हों के इस बाजार में शादी से पहले दुल्हन करती है इस अंग की जांच सैकडो साल पुरानी परंपरा जानिए
शादी एक ऐसा बंधन है जो दो लोगों के साथ साथ दो घरों को भी जोड़ देता है. शादी के पहले सभी जरूरी काम घरवाले करते हैं. जैसे दोनों परिवार एक दूसरे से मिलकर पूरी जांच-पड़ताल करते हैं. इसके बाद लड़का-लड़की को एक दूसरे से मिलवाते हैं और जब सब सहीं लगता है तब कहीं शादी पक्की होती है. आज हम आपको एक जगह के बारे में बताते हैं जहां पर दूल्हों का मेला लगता है. यहां लड़का लड़की को नहीं बल्कि दुल्हन अपने लिए वर चुनती है
बता दें कि बिहार के मिथिलांचल इलाके में 712 सालों से दूल्हे का बाजार लगता है, जिसमें हर धर्म और जाति के दूल्हे आते हैं. इसमें दुल्हन अपने लिए दूल्हा चुनती है, जिसकी बोली ऊंची दूल्हा उसका है. यहां लड़कियां लड़कों को देखती हैं. साथ ही घर वाले भी दूल्हे के बारे में सारी जानकारी पता करते हैं. यही नहीं दोनों का मिलन होता और फिर लड़के के जरूरी अंगों की जाँच की जाती है, जैसे उसके हाथ-पैर, आंखे आदि अंगों की जाँच के बाद, लड़के और लड़की जन्मपत्री मिलाई जाती है. इस तरह पात्र दूल्हे का चयन करके दोनों का ब्याह कर दिया जाता है.
1310 ईस्वी में हुई थी शुरूआत
मिली जानकारी के अनुसार, इस मेले की शुरुआत 1310 ईस्वी में की गई थी. 712 साल पहले कर्णाट वंश के राजा हरिसिंह देव ने इसे शुरू किया था. इसका मकसद था कि शादी एक ही गोत्र में न हो, जबकि दूल्हा-दुल्हन के गोत्र अलग-अलग हों. हालांकि अगर 7 पीढ़ियों तक ब्लड रिलेशन और ब्लड ग्रुप मिलता है तो शादी नहीं की जाती है.
यहां पर बिना दहेज और बिना किसी तामझाम के लड़कियां अपने पसंद के लड़कों का चुनाव करती हैं और शादी करती हैं. ये प्रथा मिथिलांचल में आज भी बहुत प्रसिद्ध है और हर साल इसका आयोजन किया जाता है जिसमें हजारों युवा आते हैं.
इस रस्म को शुरू करने के पीछे आखिर क्या कारण था इस मेले को शुरू करने का मकसद इतना था कि दुल्हन के परिवार को शादी के लिए ज्यादा परशानी करना पड़े. यहां पर हर वर्ग के लोग अपनी लड़की की शादी के लिए आते हैं और ब्याह के लिए न तो दहेज देना होता है और न ही हजारों-लाखों रु खर्च करने पड़ते हैं.