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रात जब एक तस्वीर दिखी तो आंसू निकल पड़े, सोचता हूँ कि क्या ये लोग घर पहुँच चुके होंगे, कुछ खाकर सो गए होंगे?
मनीष सिंह
सुबह हो गयी। रात जब एक तस्वीर दिखी, लगा उनके साथ ही चल रहा हूँ। सुबह फिर दिख गईं। सोचता हूँ कि क्या ये लोग घर पहुँच चुके होंगे। कुछ खाकर सो गए होंगे?? या अब भी चल रहे होंगे.. यह सोचकर कि धूप चढ़ने के पहले, जितनी दूर निकल जाएं।
कोई राजा, किसी राजकुमारी से जिद जीत चुका है। वहां उल्लास होगा, शाबाशियों का दौर होगा। वो निर्मोही, हार्टलेस, मगरूर, पापी, ढोंगी शायद उठकर बंगले में मवेशियों को चारा दे रहा होगा, उनके पुट्ठे सहला रहा होगा। उंसके राज में मवेशियों की तरह घिसटते लोग, चारे, दाना पानी की उम्मीद भी नही कर रहे।
उस बच्ची को देखिए, जो छोटे भाई या बहन को गोद मे बिठाए चली जा रही है। शायद कहीं सारे थककर बैठे हों। पुरानी कुछ पंक्तियां दिमाग के किसी कोने में गूंजने लगती हैं।
माँ सुनाओ मुझे वो कहानी, जिसमें राजा ना हो ना हो रानी
माँ सुनाओ मुझे वो कहानी, जिसमें राजा ना हो ना हो रानी
जो हमारी तुम्हारी कथा हो, जो सभी के ह्रदय की व्यथा हो
जो हमारी तुम्हारी कथा हो, जो सभी के ह्रदय की व्यथा हो
गंध जिसमें भरी हो धरा की, बात जिसमें ना हो अप्सरा की
हो ना परियाँ जहाँ आसमानी, माँ सुनाओ मुझे वो कहानी
जिसमें राजा ना हो ना हो रानी, माँ सुनाओ मुझे वो कहानी
वातावरण किसी हॉरर शो में बदल चुका है। इसमे कुछ लोग बेहद अच्छा कर रहे हैं। उनकी बातें पढना अच्छा लग रहा है। कोई सुकूनभरी, मानवीय करुणा और मदद की पोस्ट हो तो मुझे मेंशन करने का कष्ट करें। आभार होगा। सबके लिए शेयर भी करूँगा।
इस दौरान ग्रामीण इलाकों में रोजी रोजगार की अलग ही जद्दोजहद जारी है। जो मजदूर किसी तरह घर पहुंच चुके है, उनको भुखमरी से बचाना एक अलग लड़ाई है। सन्सद में खिल्ली उड़ाई गयी रोजगार गारंटी, आज बड़ा सहारा है। सरगुजा में एक मित्र की संस्था लोगो को मनरेगा में रजिस्टर करवा रही है, काम दिलाने में मदद कर रही है। दीवार पर लिखा नारा मेरा कम्पोज किया हुआ है।