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वैज्ञानिक भी चिंतित: क्या डायनासोर की तरह ही खत्म हो जाएंगे इंसान? जानिए इन 8 सवालों में सब कुछ
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बता दें कि 1.5 किलोमीटर चौड़ा एक एस्टेरॉयड यानी उल्कापिंड बहुत तेज़ी से पृथ्वी की राह में आने को है। यह इतना खतरनाक है कि इसकी टक्कर से धरती पर जीवन पूरी तरह खत्म हो सकता है। फिलहाल ये उल्कापिंड सूरज के पीछे छिपा हुआ है। पिछले 8 सालों में वैज्ञानिकों के नजर में आए एस्टेरॉयड में सबसे बड़ा और बहुत खतरनाक है। इसलिए ही इसे प्लैनेट किलर यानी ग्रहों का हत्यारा नाम दिया जा रहा है। वैसे तो इसका साइंटिफिक नाम 2022 AP7 है।
जाने इससे जुड़े हर सवाल का जवाब जानिए…।
सवाल-1 : उल्कापिंड या एस्टेरॉयड आख़िर होते क्या हैं?
जवाब : एस्टेरॉयड ग्रहों की तरह ही सूरज के चारों ओर घूमने वाली चट्टानें होती हैं। हालांकि ये ग्रहों के मुकाबले मे तो बहुत छोटे होते हैं। इन्हें प्लैनेटॉइड्स या माइनर प्लैनेट्स भी कहा जाता सकता है। एस्टेरॉयड कई बार ग्रहों के गुरुत्वाकर्षण से बंधकर उनके चंद्रमा भी बन जाते हैं और उनका यह चक्कर लगाने लगते हैं। जैसे ज्यूपिटर के कुछ चंद्रमा।
अमेरिकी की बड़ी स्पेस एजेंसी NASA के मुताबिक एस्टेरॉयड हमारे सौर मंडल के बनने के दौरान ही बने थे। इनका आकार इतना छोटा होता है कि इन पर गुरुत्वाकर्षण बहुत ही कम होता है। इसी वजह से न ही इनका आकार पूरी तरह गोल हो पाता है, न ही इन पर कोई वातावरण होता है। कोई भी दो एस्टेरॉयड एक जैसे नहीं होते हैं। अब तक नासा लाखों एस्टेरॉयड का पता चल चुका है, जिनके आकार सैकड़ों किलोमीटर से लेकर कुछ मीटर तक भी है।
ज्ञात हो वैज्ञानिकों ने अब तक लगभग 10 लाख से अधिक एस्टेरॉयड की पहचान की है।
सवाल-2 : धरती के लिए ये कितने खतरनाक और क्यों होते हैं?
जवाब : वैसे तो सभी एस्टेरॉयड पृथ्वी के लिए खतरनाक नहीं होते हैं, क्योंकि ये सभी एस्टेरॉयड पृथ्वी के रास्ते पर कभी नहीं होते हैं। वैज्ञानिकों के मुताबिक धरती के आस-पास अलग-अलग आकार के करीब 30,000 एस्टेरॉयड हैं।
इनमें एक किलोमीटर से ज्यादा व्यास वाले एस्टेरॉयड लगभग 850 से ज्यादा हैं। इन सब को नियर अर्थ ऑब्जेक्ट्स भी कहा जाता है। इनमें से किसी के भी धरती से अगले 100 साल में टकराने की कोई आशंका नहीं है। ऐसे में अगर अचानक कोई ऐसे एस्टेरॉयड को खोज लिया जाता है तो वो अपने आकार के हिसाब से खतरनाक होगा।
सवाल-3 : क्या कभी पहले भी धरती से टकरा चुके हैं?
जवाब : ज्यादातर एस्टेरॉयड बहुत ही छोटे होते हैं और वे धरती से टकराते ही उनके घर्षण से अपने आप खत्म हो जाते हैं और इनके बारे में हमें पता भी नहीं चल पता है। लेकिन कुछ ऐसे भी होते हैं जिनके गिरने से कई बड़े गड्ढे तक भी बन गए हैं।
माना जाता है कि करोड़ों साल पहले पृथ्वी पर से डायनासोर खात्मा भी इन्ही एस्टेरॉयड, यानी क्षुद्र ग्रहों के टकराने की वजह से ही हुआ था। यानी एक भारी-भरकम क्षुद्र ग्रह के टकराने से विशालकाय डायनासोर पूरी तरह लुप्त हो सकते हैं तो फिर एक दूसरी टक्कर से पृथ्वी पर जीवन भी नष्ट हो सकता है।
महाराष्ट्र : एस्टेरॉयड गिरने से बनी लोनार लेक
महाराष्ट्र के बुलढाणा जिले में 5.70 लाख साल पहले ऐसे ही एस्टेरॉयड के गिरने से ही एक 490 फीट गहरा गड्ढा बन गया था। इसे लोनार क्रेटर के नाम से भी जानते हैं। यह कुल 1.13 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्रफल में फैला है। अब यहां पर एक झील बन गई जिसे लोनार लेक कहते हैं।
रूस : टुंगुस्का में 8 करोड़ पेड़ एक साथ नष्ट हो गए थे
30 जून 1908 को साइबेरिया के टुंगुस्का में एक ऐसे ही क्षुद्र ग्रह धरती से टकराने से पहले जलकर नष्ट हो गया था। इसकी वजह से करीब 100 मीटर बड़ा एक आग का गोला बना था। इसकी चपेट में आकर 8 करोड़ पेड़ नष्ट हो गए थे।
रूस : चेल्याबिंस्क में एक ऐसे ही एस्टेरॉयड के शॉक वेव से 1 लाख खिड़कियों के शीशे टूट गए थे
15 फरवरी 2013 को रूस के चेल्याबिंस्क में एक इसी प्रकार के एस्टेरॉयड टकराया था। हालांकि, यह पृथ्वी से 24 किलोमीटर पहले ही वह नष्ट हो गया था। 5 मंजिला बिल्डिंग (करीब 60 मीटर) जितने बड़े इस स्टेरॉयड से 550-किलोटन विस्फोट जितना शॉक वेव उस समय पैदा हुआ था। इस दौरान लगभग एक लाख खिड़कियों में लगे शीशे टूट गए थे। इस दौरान एक हजार से अधिक लोग घायल भी हो गए थे। जबकि अमेरिका ने जापान के हिरोशिमा में जो परमाणु बम गिराया था वो 15 किलोटन का था। यानी चेल्याबिंस्क में जो एस्टेरॉयड टकराया था वो हिरोशिमा से भी 36 गुना ज्यादा ताकतवर था।
सवाल-4 : तो वैज्ञानिकों ने अब कौन सा एस्टेरॉयड खोजा है?
जवाब : कई देशों की वैज्ञानिकों की एक टीम ने सूरज के पीछे छिपे लगभग 3 एस्टेरॉयड तलाशे हैं। इनमें से यही एक प्लैनेट किलर है। यह अंतरिक्ष के उस इलाके में है जहां सूरज बहुत ज्यादा तेज चमकता है। इसी वजह से वहां अब किसी भी चीज को देखना मुश्किल है।
लैटिन अमेरिकी देश चिली के विक्टर एम ब्लांको टेलीस्कोप में डार्क मैटर की स्टडी के लिए इस्तेमाल होने वाले हाइटेक इक्विपमेंट की मदद से इस प्लैनेट किलर एस्टेरॉयड को देखा गया। इसे देखने के लिए वैज्ञानिकों को सूर्यास्त के समय हर रोज सिर्फ 2 से 10 मिनट का समय ही मिलता था। केवल इसी दौरान सूरज की रोशनी बहुत हल्की रहती थी।
कई ऑब्जरवेटरी यानी बड़ी दूरबीनों को ऑपरेट करने वाले अमेरिकी रिसर्च ग्रुप NOIRLab ने बताया कि यह एस्टेरॉयड पिछले 8 सालों में ही खोजा गया सबसे बड़ा चट्टानी आब्जेक्ट है जो काफी ज्यादा खतरनाक है। 31 अक्टूबर को यह रिसर्च द एस्ट्रोनॉमिकल जर्नल में पब्लिश हुई है।
सवाल-5 : नए एस्टेरॉयड को प्लैनेट किलर क्यों कहा जा रहा है?
जवाब : वाशिंगटन के कार्नेगी इंस्टीट्यूशन फॉर साइंस के अंतरिक्ष विज्ञानी स्कॉट शेपर्ड इस रिसर्च का ही प्रमुख ऑथर हैं। शेपर्ड कहते हैं कि 2022 AP7 का रास्ता पृथ्वी की ऑर्बिट से गुजरता है जो इसे खतरनाक किलर एस्टेरॉयड बनाता है।
सवाल-6 : क्या ये एस्टेरॉयड धरती से टकराने वाला है?
जवाब : स्कॉट शेपर्ड का कहना है कि पृथ्वी से टकराने का खतरा अगली सदी तक बना ही रहेगा। यों तो अगली सदी तक इसके टकराने की संभावना है। लेकिन शेपर्ड कहते हैं कि कई ग्रहों का गुरुत्वाकर्षण खेल को कभी भी बिगाड़ सकता है और ऐसे एस्टेरॉयड का रास्ता कभी भी बदल सकता है। ऐसे में लंबे समय के लिए सुरक्षा की गारंटी बिलकुल नहीं दी जा सकती है।
सवाल-7 : यह अगर धरती से टकरा गया तो क्या होगा?
जवाब : अंतरिक्ष विज्ञानी स्कॉट शेपर्ड कहते हैं कि यदि इस एस्टेरॉयड की धरती से टक्कर हो गई तो इसके बहुत विनाशकारी नतीजे होंगे। शेपर्ड बताते हैं कि एस्टेरॉयड के टक्कर से इतनी धूल उड़ेगी की धरती पर सूरज की रोशनी भी नहीं पहुंचेगी। धीरे-धीरे पृथ्वी पर इतनी ठंडी हो जाएगी कि जीवन बचाना लगभग मुश्किल हो जाएगा।
सवाल-8 : क्या यह एस्टेरॉयड को धरती से टकराने से रोका जा सकता है?
जवाब : हां। यदि हम किसी एस्टेरॉयड का पता पहले से लगा ले तो हमें इससे बचने के लिए थोड़ा वक्त भी मिल सकता है। इस तरह के एस्टेरॉयड से बचने के लिए कोई अंतरिक्ष यान इसकी तरफ भेजा भी जा सकता है, जो इससे टकराकर अंतरिक्ष में ही पूरी तरह खत्म कर दे। या उसका रास्ता बदल दे। यदि समय कम हो, तो कोई बम भी इस एस्टेरॉयड पर फेंका जा सकता है।
बता दें सितंबर 2022 के आखिर में नासा ने प्रयोग के तौर पर एक एस्टेरॉयड को अपने यान DART यानी डबल एस्टेरॉयड रिडायरेक्शन टेस्ट से जोरदार टक्कर मारी। इस टक्कर को प्लैनेटरी डिफेंस टेस्ट नाम दिया गया। इसके जरिए वैज्ञानिक यह परखना चाहते थे कि भविष्य में धरती के लिए खतरा बनने वाले एस्टेरॉयड का रास्ता किस तरह से बदला जा सकता है। प्रयोग काफी हद तक सफल भी रहा।