गुरु पूर्णिमा क्यों मनाई जाती है? जानिए क्या मिलेंगे लाभ
रामायण से लेकर महाभारत तक गुरू का स्थान सबसे महत्वपूर्ण और सर्वोच्च रहा है।गुरु की कृपा से सुख, संपन्नता, ज्ञान, विवेक, सहिष्णुता प्राप्त होती है
देशभर में 24 जुलाई को आषाढ़-गुरु पूर्णिमा मनाई जाएगी। सनातन धर्म में पूर्णिमा तिथि के दिन गंगा स्नान व दान बेहद शुभ फलकारी माना जाता है। मान्यता है कि आषाढ़ पूर्णिमा तिथि को ही वेदों के रचयिचा महर्षि वेदव्यास का जन्म हुआ था। महर्षि वेदव्यास के जन्म पर सदियों से गुरु पूर्णिमा के दिन गुरु पूजन की परंपरा चली आ रही है। गुरु पूर्णिमा को व्यास पूर्णिमा के नाम से भी जानते हैं। सनातन धर्म में इस तिथि को गंगा स्नान व दान बेहद शुभ होता है.हमें दान जरूर करना चाहिए.
गुरु पूर्णिमा शुभ मुहूर्त- पूर्णिमा तिथि 23 जुलाई 2021, शुक्रवार की सुबह 10 बजकर 43 मिनट से शुरू होकर 24 जुलाई 2021, शनिवार की सुबह 08 बजकर 06 मिनट तक रहेगी।
गुरु पूर्णिमा कैसे मनाई जाती है?
इस दिन देश में मन्दिरों में विशेष पूजा-अर्चना की जाती है। कई विद्यालयों और संस्थानों में इस दिन छात्र या बच्चे अपने गुरु व शिक्षकों को सम्मानित करते हैं, उनके लिए उपहार लाते हैं, कई प्रकार के कार्यक्रमों का भी आयोजन किया जाता है, माता-पिता का जीवन में एक विशेष स्थान होता है। इस दिन सुबह उनसे आशीर्वाद लिया जाता है क्योंकि ये ही तो हमारे प्रथम गुरु हैं। लोग अपने इष्ट देव की आराधना करते हैं और अपने गुरु से आशीर्वाद लेते हैं।
गुरु पूर्णिमा पर बन रहे ये शुभ योग-
इस साल गुरु पूर्णिमा पर विष्कुंभ योग सुबह 06 बजकर 12 मिनट तक, प्रीति योग 25 जुलाई की सुबह 03 बजकर 16 मिनट तक और इसके बाद आयुष्मान योग लगेगा। ज्योतिष शास्त्र में प्रीति और आयुष्मान योग का एक साथ बनना शुभ माना जाता है। प्रीति और आयुष्मान योग में किए गए कार्यों में सफलता हासिल होती है। विष्कुंभ योग को वैदिक ज्योतिष में शुभ योगों में नहीं गिना जाता है।
वैदिक मंत्र जाप से खास कृपा- वैदिक मंत्र जाप और विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करने से गुरु की खास कृपा मिलेगी।
खीर दान से मानसिक शांति- गुरु पूर्णिमा की रात खीर बनाकर दान करने से मानसिक शांति मिलती है। चंद्र ग्रह का प्रभाव भी दूर होता है।
बरगद की पूजा- याज्ञवल्य ऋषि के वरदान से वृक्षराज(बरगद) को जीवनदान मिला था। इसलिए गुरु पूर्णिमा पर बरगद की भी पूजा की जाती है।
गुरु पूर्णिमा का महत्व,
रामायण से लेकर महाभारत तक गुरू का स्थान सबसे महत्वपूर्ण और सर्वोच्च रहा है।गुरु की कृपा से सुख, संपन्नता, ज्ञान, विवेक, सहिष्णुता प्राप्त होती है।गुरु अंधकार से प्रकाश की और ले जाता है, ये कह सकते हैं कि गुरु अज्ञान से ज्ञान की और ले जाता है और जो हमें ज्ञान देता वह पूजनीय माना जाता है।गुरु को विशेष दर्जा दिया गया है, हिन्दू धर्म में गुरु को सबसे सर्वोच्च बताया गया है. इसलिए गुरु पूर्णिमा पर लोग अपने-अपने गुरु देव का पूजन कर उनका आशीर्वाद प्राप्त करते हैं।
गुरु से मन्त्र प्राप्त करने के लिए भी यह दिन श्रेष्ठ है।इस दिन गुरुजनों की यथा संभव सेवा करने का बहुत महत्व है।इस दिन को लेकर कई पौराणिक मान्यताएं भी हैं, जिनमें से एक कथा के अनुसार इसी दिन ऋषि वेद व्यास जी का जन्म हुआ था। भारत के कई राज्यों में इस दिन को व्यास पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन लोग गुरु व्यास जी की पूजा करते हैं। कई लोग इस दिन अपने गुरु, इष्ट देव की भी आराधना करते हैं और काफी हर्षोउल्लास से इस पर्व को मनाते हैं
पूजा करने की विधि
-गुरु पूर्णिमा के दिन सबसे पहले स्नान कर लें
-इसके बाद अपने गुरू की पूजा की तैयारी करें
-अपने गुरू को फूल-माला, तांबूल, श्रीफल, रोली-मोली, जनेउ, सामथ्र्य के अनुसार दक्षिणा और पंचवस्त्र चढ़ाएं
-उसके बाद अपने गुरु के चरणों को धुलकर उसकी पूजा करें
-उन्हें अपने सामथ्र्य के अनुसार फल-फूल, मेवा, मिष्ठान और धन आदि देकर सम्मानित करें।